पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ पर लिखना इसलिए आवश्यक है क्योंकि वो इस युग में हमारे पड़ोस का सबसे बड़ा खलनायक रहा। एक कम अस्सी के परवेज मुशर्रफ को भूल पाना बहुत आसान काम नहीं है। परवेज की क्रूरता, उसके अंग-प्रत्यंग से टपकती थी। परवेज खुशनसीब था या नहीं, लेकिन बदनसीब जरूर था क्योंकि उसे मरने के लिए भी अपने वतन में जगह नहीं मिली।
मुझे परवेज मुशर्रफ की वर्दी और कातिलाना मुस्कान हमेशा आकर्षक लगती थी। परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान बनने से पहले अविभाजित भारत में जन्मे थे। वे खुशनसीब इसलिए थे कि उन्होंने एक निर्वाचित सरकार का तख्ता पलट कर कोई सात साल पाकिस्तान पर एकछत्र राज किया, लेकिन बदनसीब इसलिए हुए क्योंकि जब सत्ता गयी तो उन्हें मुल्क छोड़कर भागना पड़ा, क्योंकि जिस पाकिस्तान पर उन्होंने राज किया था उसी मुल्क की सबसे पड़ी अदालत ने उन्हें मौत की सजा भी सुनाई थी। कायदे से तो वे उसी दिन मर गए थे, जिस दिन उन्होंने अपना मुल्क छोड़ा था, लेकिन भौतिक रूप से उनकी मौत अब दुबई में हुई है।
परवेज मुशर्रफ की रगों में दिल्ली का नमक और पानी था। दरियागंज का ये छोरा दरियादिल कभी नहीं बन पाया। देश विभाजन के बाद कराची जाकर उसकी रगों में जहर बहने लगा। परवेज अपनी मेहनत और इच्छाशक्ति के बूते पकिस्तान के सेना अध्यक्ष पद तक पहुंचा और बाद में उसने अक्टूबर 1999 में नवाज़ शरीफ़ का तख्ता पलट करके सरकार पर कब्जा कर लिया।
मई 2000 में पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने पाकिस्तान में चुनाव करने के आदेश दिए लेकिन मुशर्रफ़ ने चुनाव करना तो दूर जून 2001 में तत्कालीन राष्ट्रपति रफीक़ तरार को हटा दिया व खुद राष्ट्रपति बन गए। अप्रैल 2002 में उन्होंने राष्ट्रपति बने रहने के लिए जनमत-संग्रह कराया जिसका अधिकतर राजनैतिक दलों ने बहिष्कार किया।
अक्टूबर 2002 में पाकिस्तान में चुनाव हुए जिसमें मुशर्रफ़ का समर्थन करने वाली मुत्ताहिदा मजलिस-ए-अमाल पार्टी को बहुमत मिला। इनकी सहायता से मुशर्रफ़ ने पाकिस्तान के संविधान में कई परिवर्तन कराए जिनसे 1999 के तख्ता-पलट और मुशर्रफ़ के अन्य कई आदेशों को वैधानिक सम्मति मिल गई।
पाकिस्तान बनने के बाद मुशर्रफ भारत के लिए सबसे बड़ा खलनायक बना। उसने भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी की उदारता को भी ठेंगा दिखा दिया। परवेज पाकिस्तान के प्रमुख के रूप में भारत आया, दिल्ली में अपने जन्मस्थल पर गया और प्रेम की नगरी आगरा में उसने भारत के साथ शिखर वार्ता भी की, लेकिन न कुछ बदलना था और न कुछ बदला, उलटे भारत को कारगिल युद्ध का सामना करना पड़ा।
दुनिया में जितने भी खलनायक यानी तानाशाह हुए हैं उनकी यदि फेहरिस्त बनाई जाए तो परवेज उस फेहरिस्त में दसवें नंबर पर आता है। उसके राज में पाकिस्तान ने सबसे बुरे और खून-आलूदा दिन देखे। भारत की तरह आपातकाल देखा। नवाब अकबर खान बुग्ती और बेनजीर भुट्टो जैसे नेताओं का कत्ल देखा। लाल मस्जिद पर आतंकी हमला देखा।
मुझे उसमें हमेशा वर्दी वाला आतंकवादी बैठा दिखाई देता था। उसने नवाज शरीफ का ही तख्ता नहीं पलटा था बल्कि देश के शीर्ष न्यायाधीश को भी बर्खास्त कर दिया था। पाकिस्तान के दिन बदले, वहां परवेज के खिलाफ बगावत हुई तो वो देश छोड़कर भाग गया।
हिम्मत कर वापस लौटा तो दोहरी हत्याओं के मामले में गिरफ्तार किया गया। मुकदमे चले तो मौत की सजा मिली, लेकिन पाकिस्तान वाले उसे फांसी के फंदे पर नहीं लटका पाए। वो भागकर फिर विदेश चला गया। आखरी दिनों में उसका ठिकाना दुबई था और वहीं उसने अंतिम सांस ली।
जैसे दूसरे तानाशाहों को अपने सीने पर तमगे लटकाने का शौक होता है, वैसा ही शौक परवेज मुशर्रफ ने भी पाल रखा था। उसने पाकिस्तान के तमाम सम्मान खुद हासिल कर लिए थे फिर चाहे वो निशाने इम्तियाज हो या तमगाए वसालत।
परवेज पकिस्तान के इतिहास का ऐसा काला अध्याय है जिसे हटाना आसान नहीं है। पकिस्तान में चुनी हुई सरकारों को परवेज ने पहली बार नहीं गिराया था। पहले भी ऐसा हुआ और परवेज के बाद भी।
पकिस्तान में परवेज मुशर्रफ जैसे तनाशाह जन्म लेते रहे हैं और शायद आगे भी ये सिलसिला थमने वाला नहीं है। पाकिस्तान में प्रधानमंत्री को या तो फांसी के फंदे पर लटकाया जाता है या गोली मार दी जाती है।
जो खुशनसीब होते हैं वे जेल में सड़ते हैं या फिर उन्हें परवेज मुशर्रफ की तरह ही देश छोड़कर भागना पड़ता है। परवेज को मरने के बाद जन्नत नसीब होगी या नहीं ये अल्लाह जाने लेकिन दुनिया को एक पूर्व तानाशाह की कहानी से निजात जरूर मिल गयी है।
नोटः आलेख वेबसाइट मध्यमत.कॉम से साभार