सरयूसुत मिश्रा।
कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन दिल्ली में और समर्थन विदेशों से, एनआरसी का विरोध भारत से ज्यादा विदेशों में, नूपुर शर्मा के बयान पर मुस्लिम राष्ट्रों में कड़ी प्रतिक्रिया। ऐसे ना मालूम कितने मामलों का जिक्र किया जा सकता है, जहां नितांत भारतीय मसलों पर विदेशी धरती और ताकतों का उपयोग किया गया।
अब अमेरिका के वाशिंगटन डीसी से प्रकाशित अखबार ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ में मोदी सरकार के खिलाफ एक विज्ञापन छपा है। इस विज्ञापन में केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण सहित 11 लोगों को बैन करने की मांग की गई है। यह विज्ञापन अमेरिका की एक प्राइवेट संस्था ‘फ्रंटियर सब फ्रीडम’ ने 13 अक्टूबर को पब्लिश कराया है।
अमेरिका में 2016 में बनाए गए ग्लोबल मैग्नित्सकी एक्ट के तहत उन विदेशी सरकार के अधिकारियों को बैन किया जाता है, जिन्होंने मानव अधिकार का उल्लंघन किया हो। इसी एक्ट के तहत यह विज्ञापन छापा गया है। इस विज्ञापन में यह लिखा गया है कि मिलिए उन अधिकारियों से जिन्होंने भारत को निवेश के लिए एक असुरक्षित जगह बना दिया है। विज्ञापन में कहा गया है कि इन अधिकारियों ने राजनीतिक और व्यापारिक कॉम्पटीटर्स से हिसाब चुकाने के लिए सरकारी संस्थाओं को हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर कानून का शासन खत्म कर दिया है।
विज्ञापन में आरोप लगाया गया है कि केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय एजेंसियों पर नियंत्रण के कारण भारत ने अपनी विश्वसनीयता खो दी है। विज्ञापन में जो नाम प्रकाशित किए गए हैं, उनमें वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के साथ न्यायिक क्षेत्र की महत्वपूर्ण हस्तियों, सीबीआई और ईडी के अधिकारियों के नाम का भी उल्लेख है।
‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ में छपे विज्ञापन में जो आरोप लगाए गए हैं, वह सारे आरोप वहीं हैं जो भारत में मोदी विरोधी राजनीति के समर्थक और नेता लगातार लगा रहे हैं। दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से आबकारी घोटाले में पूछताछ के लिए सीबीआई के समन पर जिस तरह का शहीदी दृश्य कल देश ने देखा है, उसमें भी यही संदेश दिया जा रहा है कि जांच एजेंसियों का मोदी सरकार दुरुपयोग कर विरोधी राजनेताओं को फंसा रही है। इसके पहले सोनिया गांधी और राहुल गांधी से जब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा नेशनल हेराल्ड मामले में बयान लिए गए थे तब कांग्रेस ने पूरे देश में इसके विरोध में आंदोलन चलाया था।
प्रश्न यह है कि जांच एजेंसियों को निशाने पर लेना क्या भारतीय व्यवस्था को कमजोर करने का प्रयास नहीं माना जाएगा? केजरीवाल और मनीष सिसोदिया दोनों महीनों से कह रहे हैं कि सीबीआई उन्हें गिरफ्तार करने वाली है। हाथ में तिरंगा झंडा लेकर भारत की जांच एजेंसी के विरुद्ध प्रदर्शन क्या भारतीय गौरव को बढ़ाने वाला माना जाएगा? राजनीति का स्तर क्या अब केवल सत्ता और उसके उपयोग तक सीमित रह गया है?
राहुल गांधी विदेश की धरती पर जाकर भारत में नफरत की आग और माचिस की तीली का जब बयान देते हैं, तब देश में गंभीर रूप से प्रतिक्रिया होती है। भारत की मीडिया को तो मोदी विरोधी राजनेता निष्पक्ष मानने से ही इनकार करते हैं। उनका तो मीडिया पर भी यह आरोप होता है कि विपक्ष की आवाज को दबाया जाता है।
आम आदमी पार्टी की सरकार द्वारा उनकी शिक्षा व्यवस्था पर न्यूयॉर्क टाइम्स में जब खबर प्रकाशित की गई थी तब उपलब्धि के बहुत बड़े आधार के रूप में केजरीवाल सरकार ने उसका ढिंढोरा पीटा था। क्या विदेशी धरती और विदेशी ताकतों का उपयोग कर भारत की राजनीति को मोड़ने की कोशिश की जा रही है?
यह सवाल इसलिए चर्चा में है क्योंकि भारत के खिलाफ विदेशी धरती से जिस तरह का प्रलाप सामने आ रहा है उसका राजनीतिक लाभ मोदी विरोधियों को दिखाई पड़ता है। यह भारत के राजनेताओं का ही आरोप है कि केंद्र सरकार जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है। भारतीय राजनीति की आवाज का उपयोग ही ‘वॉल स्ट्रीट जनरल’ के विज्ञापन में किया गया है।
राजनीति का सत्य आज केवल उपयोग में रह गया है। जिसका उपयोग हो सकता है, जिसके उपयोग से सत्ता तक पहुंचा जा सकता है वही राजनीति का सच बन गया है। देश के लिए क्या सच है? पब्लिक के लिए क्या सच है? व्यवस्था के लिए क्या सच है? इस पर राजनीतिक चिंतन शायद समाप्त हो गया है। अब सारा का सारा फोकस किसी भी सीमा तक किसी भी बात का उपयोग कर सत्ता तक पहुंचना ही है।
किसानों के लिए जो तीन कानून लाए गए थे उनको विरोध के कारण वापस लिया गया। विशेषज्ञ ऐसा मानते हैं कि कृषि क्षेत्र में उदारीकरण और सुधार की जरूरत है। राजनीतिक विरोध के लिए देश हित का विरोध कैसे देश को ही नुकसान पहुंचा रहा है?
अमेरिका के अखबार में छपे विज्ञापन में जिन अधिकारियों और मंत्रियों का नाम दिया गया है, उनका अमेरिका की पॉलिटिक्स से कोई लेना देना नहीं है। इसके पीछे निश्चित ही भारतीय राजनीति शामिल हो सकती है। इसका लाभ भारतीय राजनीति के स्टेकहोल्डर्स उठा सकते हैं। किसी भी अपराध के पीछे मोटिव सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। भारत के खिलाफ अमेरिका में विज्ञापन के पीछे भी भारतीय राजनीति और राजनेताओं का मोटिव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
अमेरिका में विज्ञापन छपवाने के पीछे शायद यह सोच हो सकती है कि अगर इस तरह की बात भारतीय मीडिया के सामने रखी जाती और भले ही इसके लिए पैसा भी दिया जाता तो उसके बाद भी भारतीय मीडिया ऐसे तथ्यों को प्रकाशित नहीं कर सकता। वैसे भी मीडिया में किसी भी व्यक्ति के विरुद्ध निजी विज्ञापन प्रकाशित करना मीडिया की संहिता के विरुद्ध ही माना जाता है।
भारत में भी एक अति विश्वसनीय अखबार के रूप में प्रचारित अखबार में ही ‘कलिनायक’ पुस्तक का एक विज्ञापन प्रकाशित हो गया था। अखबार के प्रबंधन ने विज्ञापन छापने के पहले पुस्तक के बारे में जानना समझना जरूरी नहीं समझा था। बाद में पता चला कि यह पुस्तक उसी अखबार के चेयरमैन के खिलाफ थी। इस घटना के उल्लेख के पीछे उद्देश्य केवल इतना है कि अखबारों में भी कई बार अप्रत्याशित घटनाएं हो जाती हैं।
वॉल स्ट्रीट जर्नल में छपा यह विज्ञापन अप्रत्याशित घटना से ज्यादा एक सोचा समझा हथकंडा प्रतीत हो रहा है। भारत में सत्ता संघर्ष के लिए राजनीति समझी जा सकती है लेकिन इसके लिए विदेशी धरती और विदेशी ताकतों का उपयोग भारतीय राजनीति के लिए शर्मनाक ही कहा जाएगा।
(आलेख सोशल मीडिया से साभार)