राजकपूर पर फिल्माया, मुकेश का गाया प्रसिद्ध गीत है- मेहताब तेरा चेहरा। मेहताब मतलब चाँद। मेहताब अगर नाम लिखा हो और नाम के आगे सिंह भी लगा हो तो करंट दो गुना होना ही चाहिए। और फिर पता मंत्रालय का हो तो हाई टेंशन लाइन पूरी हो जाती है। अब यह संपूर्ण पावर हाउस हो गया।
मंत्रालय में एक विभाग है, जिसका शुभ नाम है-‘सामान्य प्रशासन।’ नाम में सामान्य जुड़ा होने से सब कुछ सामान्य हो, यह चिरायु अस्पताल के किस डॉक्टर ने कहा? एक अखबार में कुछ दिन पहले विज्ञापन छपा, जिसमें इस महिमामय विभाग के एक उप सचिव का नाम बोल्ड लेटर में नीचे छपा ताकि पाठकों को नेत्र ज्योति या चश्मे में कुछ कठिनाई भी हो तो बाकी का मैटर भले ही न पढ़ पाएं, नाम ठीक से पढ़ लें- मेहताब सिंह। गोया सारा विभाग उन्हें इसी नाम से जानता है!
सिंह साहब के हवाले से यह विज्ञापन कंडम गाड़ियों की नीलामी के संबंध में नहीं था। वह मध्यप्रदेश की माटी के गौरवों के चयन के लिए शासन के ऊंचे इरादे जाहिर करने वाला इश्तहार था। लेकिन गौरव चयन की यह प्रक्रिया पूरी होती इसके पहले ही स्पष्ट हो गया कि प्रदेश में अगर सबसे गौरवशाली कोई है तो वह यही विभाग है। सारे सम्मान उसी को समर्पित करने का यह सही समय है। उचित अवसर है।
मध्यप्रदेश गौरव सम्मान के लिए ऑनलाइन आवेदन मंगाए गए थे और किसी पूर्व प्रकाशित सूचना के बाद इनकी तारीख बढ़ाकर 27 अक्टूबर 2022 की गई थी, जो कि आज ही थी। जब से यह विज्ञापन छपा लोग इसमें दी गई तथाकथित वेबसाइट पर कोशिश करते ही रहे। दो-चार दिन तक लोगों ने समझा इंटरनेट संबंधी कोई अड़चन है। भला मेहताब के नाम से छपा एक विभागीय विज्ञापन कैसे व्यर्थ हो सकता है। मगर हर बार वेबसाइट के नाम पर कम्प्यूटर स्क्रीन पर यह परम संदेश चिपका ही रहा-
Your connection is not private
Attackers might be trying to steal your information from www.awards.mp.gov.in (for example, passwords, messages, or credit cards). Learn more
NET::ERR_CERT_COMMON_NAME_INVALID
अंतिम तिथि तक भी जब वेबसाइट इसी दुर्दशा को प्राप्त रही तो सामान्य प्रशासन के उप सचिवालय में उन लोगों ने फोन लगाए, जो इस ‘पावर हाउस’ में लगा सकते थे। हर फोन पर विभाग में सर्वत्र शून्य के दर्शन लाभ हुए। ऐसा लगा मानो सब हक्के-बक्के हैं। अंधेरे में दिवाली का नजारा।
जैसा कि होता है अफसरों का एकमात्र महान दायित्व फाइल को कहीं और मार्क करना-देखें। फोनकर्ताओं को बेफिक्री से वेबसाइट के संबंध में विस्तृत ज्ञान प्राप्त करने के लिए MAP IT का पता बता दिया गया, किसी विनय पांडे का नाम भी दे दिया गया। यह पल्ला झाड़ प्रयास था। क्योंकि प्रकाशित विज्ञापन में हिंदी में बोल्ड अक्षरों में मेहताबी परिचय ही छपा था।
इससे स्पष्ट हुआ कि कोई धूल चढ़ा हुआ क्लर्क किसी दिन विज्ञापन की फाइल साहब की टेबल पर लाया होगा, जो उसी दिन छपने जाना था। साहब के लंच का समय होगा, गाड़ी नीचे लग चुकी होगी, सो उन्होंने बिना देखे पूछा होगा कि सब ठीक से देख लिया है?
उस धूल चढ़े क्लर्क ने राजश्री की ताजा फाँक को गटकते हुए कहा होगा-‘जी सर, वर्माजी ने दो बार पढ़ लिया है।’ साहब ने ठीक उसी समय व्हाट्सएप पर आए ताजा सचित्र संदेश को चैक करते हुए दस्तखत किए होंगे। यह उनकी आज की ड्यूटी थी। विज्ञापन छपने चला गया होगा। धूल चढ़ा क्लर्क बीड़ी फूंकने गलियारे में आ गया होगा। वर्माजी अपनी जुगाड़ में किसी कुर्सी को तोड़ रहे होंगे।
एक जिम्मेदार अफसर यह देखता है कि जनसामान्य से संपर्क के लिए जो भी फोन नंबर, ईमेल आईडी या वेबसाइट का पता छप रहा है, वह क्रियाशील है या नहीं? है तो उस पर आने वाले फीड बैक या एंट्री को कल से कौन चैक करेगा? अगर कोई भी इश्तहार किसी अफसर के नाम से छप रहा है तो यह केवल उसी का जिम्मा है कि वह अपनी प्रतिष्ठा का ख्याल रखने के लिए यह सावधानी बरते। मगर इस सावधानी के लिए साहब की अपनी प्रतिष्ठा का होना अनिवार्य है!
असल में वह वेबसाइट क्रियाशील थी ही नहीं, जिस पर ऑनलाइन एंट्री के लिए यह विज्ञापन अखबार में भेजा गया था। लोगों का कहना है कि पहले दिन से यही संदेश आ रहा है। आज सामान्य प्रशासन के एक असामान्य हकीम ने एक सज्जन को सुझाया कि आप क्रोम पर खोल रहे होंगे, जरा मोजिला पर जाइए, वेबसाइट धड़ल्ले से चल रही है। मगर उपरोक्त संदेश मोजिला का ही निकला तो वे भी खिसियाकर रह गए-‘तब तो MAP IT वाले ही बता पाएंगे कि गड़बड़ क्या है?’
मोजिला पर टका सा जवाब यह था-
Unable to connect
Firefox can’t establish a connection to the server at www.awards.mp.gov.in.
The site could be temporarily unavailable or too busy. Try again in a few moments.
If you are unable to load any pages, check your computer’s network connection.
If your computer or network is protected by a firewall or proxy, make sure that Firefox is permitted to access the Web.
अब विनय पांडे नाम के परमवीर आईटी विशेषज्ञ पिक्चर में आते हैं, जिनका सिंहासन MAP IT नाम के साम्राज्य में सजता होगा। पांडेजी ने किसी का कोई फोन ही रिसीव नहीं किया। सामान्य प्रशासन शाम तक पूरी तरह पल्ला झाड़कर बैठ गया। पांडेजी किसी समाधि में लीन होंगे! एक गौरवशाली दिन अस्त हो गया!
यह मामूली घटना नहीं है। भले ही सामान्य या असामान्य किस्म के विभागों का चाल चलन ऐसा ही रहता हो। यह बिल्कुल सामान्य घटना नहीं है। यह लीडर की पीठ में छुरा भोंकने जैसा है।
निश्चित ही मुख्यमंत्री की मंशा इस सम्मान की रचना के पीछे यह रही होगी कि अलग-अलग क्षेत्रों में कुछ गौरवशाली छाप छोड़ने वाले समर्पित नागरिक और संगठनों के प्रोत्साहन के लिए कुछ सम्मानजनक पर्यावरण बनाया जाए ताकि दूसरे लोग भी प्रेरणा लेकर प्रदेश, समाज और संस्कृति के हित के कार्यों में सलंग्न हों। सच्चे मन का कोई भी लीडर ऐसा ही करेगा और उसके कथन को साकार रूप में लाने का जिम्मा विभागों का होता है। इशारों को समझने वाले कारिंदे।
समस्या यहां से शुरू होती है। अब करना तो संबंधित विभागों को है। मगर विभाग अपने आप में क्या हैं? मंत्रालय या सचिवालय की किसी फ्लोर के बाहर टंगा एक साइनबोर्ड। जैसे-सामान्य प्रशासन। असल में तो वह मनुष्य ही सिस्टम चलाते हैं, जो भीतर अफसर या कर्मचारी के रूप में कार्य करते हैं। ऑफिस आधुनिक और चमचमाते हुए हो जाएं इससे उन दिमागों में कुछ फर्क नहीं पड़ता, जिन्हें धूल खाते रहने की आदत हो गई हो। सामान्य प्रशासन के इस कटु प्रसंग ने यही बताया है।
27 अक्टूबर की शाम सवा सात बजे तक यह कंडम वेबसाइट किसी गैराज में पड़ी कराह रही थी। एक पूरा विज्ञापन बेकार चला गया था और सैकड़ों लोग और संगठनों के कार्यकर्ता परेशान हाल यहां-वहां संपर्क कर रहे थे। विनय पांडे नाम का आईटी विशेषज्ञ भाई दूज मनाने कहीं गया होगा। उप सचिव बेशर्मी से MAP IT की तख्ती लिए बैठा रहा। उसने शायद विज्ञापन पर अपना ही नाम नहीं पढ़ा होगा। उसे छपे हुए शब्दों की अहमियत मालूम नहीं होगी कि उस प्रकाशित सामग्री का वही माई बाप है। उसे कुर्सी से हिलना चाहिए।
ऐसे दो-चार खराब प्रसंग अंतत: सारे अच्छे इरादों पर पानी फेर देते हैं। जितने लोग इस वेबसाइट को लेकर बीते हफ्ते परेशान रहे वे किसी मेहताब को नहीं जानते। वे लीडर को जानते हैं। और उन्हें पूरे सिस्टम पर टीका-टिप्पणी करना आसान हो जाता है।
आज की कुछ टिप्पणियां इस प्रकार हैं-
-‘किसी का कोई कंट्रोल नहीं है। किसी को कोई डर नहीं है।’
-‘यह अकेले इसी विभाग का मामला नहीं है। अकेली भांग नहीं, सारे असरदार हाई-एंड ड्रग हर कुएं में घुले हुए हैं।’
-‘वे राजधानी में टिके रहना जानते हैं। वे अमृत चखकर आए हैं।’
-‘ये ले डूबने वाले लक्षण हैं।’
यह घटना किसी अखबार के रिपोर्टर की बीट या विषय नहीं है। हो सकता है परेशान लोगों ने किसी अखबार वाले को कुछ बताया भी हो। ऐसी हर घटना पर लिखने वाले मेरी नजर में मध्यप्रदेश के दो ही लोग थे- परम सम्मानीय शरद जोशी और प्रात:स्मरणीय हरिशंकर परसाई। सामान्य प्रशासन के सौभाग्य से वे दोनों ही ब्रह्मलीन हो चुके हैं!
(सोशल मीडिया पोस्ट से साभार)