मुनिया के नाम दूसरी पाती : मैं तुम्हें प्रेम की मिल्कियत सौंप जाऊंगा


मेरी अब तक की कुल जमा जिंदगी का “प्रेम” ही हासिल है। यही मेरी असल पूँजी है। इसलिए मैं मेरी मिल्कियत से तुम्हें ये प्रेम की अपार सम्पदा ही सौंप पाऊंगा। शेष अगले पत्र में…।


दीपक गौतम
अतिथि विचार Published On :
muniya ke kadam
मुनिया के अस्पताल से पहली बार घर आने पर ली गई उसकी नन्हें कदमों की छाप।


प्रिय मुनिया,

तुम्हें यह दूसरी पाती लिखते हुए बड़़ा हर्ष हो रहा है, क्योंकि तुम चार दिन के बाद बीते रविवार 30 जनवरी को अस्पताल से घर आ गई हो। तुम और तुम्हारी मां अब दोनों स्वस्थ हो। इससे बेहतर भला क्या हो सकता है। इस दौर में कोरोना माहामारी के बीच अस्पताल नाम से भी अब डर लगने लगा है। ऐसे में तुम्हारा सुरक्षित घर आ जाना किसी बड़ी नेमत से कम नहीं है। अस्पताल में कटा एक-एक दिन बड़ा कठिन और बेसबर कर देने वाला था।

अब जब तुम्हें घर आए हुए हफ्ते भर से अधिक समय हो गया है, तो तुम्हें यह दूसरी पाती लिख रहा हूं। तुम जीवन में बसंत लेकर आई हो, तभी तो ये भी सुखद संयोग रहा कि अबकी बसंत पंचमी भी 5 फरवरी को रही और हमारी शादी की सालगिरह भी। आज जब मैं ये पत्र तुम्हारे लिए बनाए पिटारे में पोस्ट कर रहा हूँ, तो मेरा जन्म दिन भी है। इन तरीखों में लिपटी छोटी-छोटी खुशियाँ तुम्हारे आने से और बढ़ गई हैं।

प्रिय मुनिया, इस पत्र के साथ कुछ तस्वीरें भी तुम्हें मिलेंगी, जो इस बीते वक्त की इबारतों की गवाह होंगी, उनमें तुम्हारी नानी मां, दादी मां, मासी और मामा सहित हम सब का स्नेह बरसता दिख रहा है। यूँ तो तुम्हारे नन्हें पैरे हमारी जिंदगी की सूखी जमीन पर पहले ही कदम रख चुके हैं, लेकिन तुम्हारे पदार्पण पर तुम्हारे पैरों की ली गई छाप और तुम्हारे स्वागत में सजावट भरा घर तुम्हारे आने से और खिल उठा है।

सच कहूं तो घर अब तक घर नहीं लगता था। अब तुम्हारी किलकारियों से घर में रौनक बनी रहती है। ठीक इस वक्त उनींदी आंखों से रात के दो बजे जब मैं तुम्हें ये पत्र लिख रहा हूं, तो मोबाइल के स्क्रीन से तुम जाग न जाओ ये भी डर सता रहा है। आंखें बीते सप्ताह भर से तुम्हारे साथ हुए रतजगों की साक्षी हैं। अब मैं और तुम्हारी मां रात में कम अलसुबह के बाद ही अपनी नींद की ज्यादातर खुराक पूरी कर पाते हैं। मेरा सुबह दफ्तर पहुंचना भी तुम्हारे जागने और सोने के हिसाब से तय होने लगा है।

प्रिय मुनिया, तुम्हारी मां इन दिनों अपने काम से कुछ माह की छुट्टी पर हैं, जिसे मातृत्व अवकाश कहते हैं। लेकिन मुझे ऐसे किसी अवकाश को लेने की इजाजत नहीं है। मुनिया तुम्हारे आने के दो साल पहले ही मैं लगभग डेढ़ दशक की सक्रिय पत्रकारिता से छुट्टी लेकर गांव के आगोश में जी रहा हूं। अब मैं अपने एक छोटे से व्यवसाय को खड़ा करने के लिए मशक्कत कर रहा हूं। इतने वर्ष कई शहरों की खाक छानने के बाद आखिरकार स्थायी ठिकाना अपने गृह जिले को ही बनाना पड़ा है।

दर-बदर भटकने के अनुभव बटोरे, याराने इकट्ठे किये और लोगों का प्रेम समेटा बस यही मेरी असल पूंजी है। इसलिए मैं तुम्हें यही कह सकता हूँ कि प्रेम की राह कभी मत छोड़ना। खुद से प्रेम करना सीखोगी, तभी प्रेम के मायने समझ सकोगी और इंसानीयत के लिए सबसे जरूरी इस संजीवनी का इस्तेमाल करने का हुनर तराशना तुम्हारे लिए सम्भव हो सकेगा। मैं इस बात से पूरा इत्तेफाक रखता हूँ कि प्रेम से भरा इंसान ही सारी कायनात को खूबसूरती की नज़र से देख सकता है।

प्रिय मुनिया, मैं अपने अनुभव के आधार पर बस यही कह सकता हूँ कि भले ही लाख छद्म-छलावों, झूठ, फरेब, विश्वासघात , जालसाजी और मक्कारी से भरी हो ये दुनिया। यहाँ अब भी ईमानदार, मेहनतकश और प्रेम से भरे सच्चे लोगों की कमी नहीं है। इसलिये ये दुनिया अब भी खूबसूरत है और रहने के काबिल है।

बस तुम प्रेम की डगर पर चलते रहना, क्योंकि प्रेम वो “पारस” है, जो पत्थर को भी सोना बना देता है। इतिहास गवाह है कि “प्रेमपाश” में बंधकर स्वयं ईश्वर को भी भक्त के लिए प्रकृति के शाश्वत नियम बदलने पड़े हैं, क्योंकि “इस धरा पर जब कुछ नहीं था तब भी प्रेम था और जब कुछ नहीं रहेगा, तब भी सिर्फ प्रेम ही बचेगा।

प्रिय मुनिया, मेरी बिट्टो तुम्हारे साथ इन दिनों वक्त बिताना जीवन के सारे तमस को हर लेना है। मैं तुम्हारे पास आकर देश-दुनिया की फिक्र और फिकरे सब भूल जाता हूँ। जब तुम बिछौने पर सोती हो तो तुम्हें अपलक देखने का मोह मैं छोड़ नहीं पाता हूँ। इन दिनों हो रहे रतगजों का एक ये भी कारण है। आज 6 फरवरी 2022 को मेरे इस जन्म दिन के ठीक पहले की इस रात को मैंने तुम्हें ये दूसरा पत्र लिखकर एक सुखद याद बना लिया है।

चार दिन पहले से लिखे जा रहे इस पत्र को पूरा करते हुए मुझे खुशी होर रही है कि तुम्हारी मोहब्बत में तुम्हें पत्र लिखने का ये सिलसला चलता रहेगा। क्योंकि मैंने जीवन में कुछ भी अधूरा न छोड़ने की कसम खाने के बावजूद भी बहुत कुछ अधूरा ही छोड़ दिया है। मैं अपनी बेपरवाहियों, लापरवाह रवैये और बेफिक्री भरे स्वभाव पर कभी लगाम नहीं लगा सका। शायद इसीलिए वक्त के साथ-साथ और आवारा होता चला गया।

बहरहाल मैं तुमसे ये पत्र पूरा करते हुए बस इतना कहना चाहता हूँ कि मेरी जिंदगी में उपलब्धियों का कोई पिटारा नहीं है। मेरी अब तक की कुल जमा जिंदगी का “प्रेम” ही हासिल है। यही मेरी असल पूँजी है। इसलिए मैं मेरी मिल्कियत से तुम्हें ये प्रेम की अपार सम्पदा ही सौंप पाऊंगा। शेष अगले पत्र में…। तुम्हें ढेर सारा प्यार। लव यू 💝।

– तुम्हारा पिता





Exit mobile version