प्रतिबंधित हों धार्मिक जुलूस: एल. एस. हरदेनिया


राष्ट्रीय सेक्युलर मंच के संयोजक एल. एस. हरदेनिया और प्रगतिशील लेखक संघ के महामंत्री शैलेन्द्र शैली ने संयुक्त रुप से इन जुलूसों पर ही प्रतिबंध लगाने की मांग की है। 


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अतिथि विचार Updated On :
सांकेतिक तस्वीर, साभार


पिछले कुछ दिनों में देश में कई दंगों की खबरें आईं जिन्होंने एक बार फिर बढ़ते धार्मिक उन्माद के खतरों के बारे में लोगों को सोचने के लिए मजबूर कर दिया है। ये खतरे धार्मिक वातावरण से नहीं बल्कि उस उन्माद से पैदा हो रहे हैं जिसके तहत एक धर्म के लोग दूसरे धर्म के लोगों से खुद को श्रेष्ठ साबित करना चाहते हैं।

महानता या श्रेष्ठता के इस प्रदर्शन के लिए धार्मिक जुलूस सबसे आसान और लोकप्रिय तरीका है और ज्यादातर धार्मिक झगड़े इसी जुलूस के बाद शुरु हुए हैं। ऐसे में  राष्ट्रीय सेक्युलर मंच के संयोजक एल. एस. हरदेनिया और प्रगतिशील लेखक संघ के महामंत्री शैलेन्द्र शैली ने संयुक्त रुप से इन जुलूसों पर ही प्रतिबंध लगाने की मांग की है।

इस विज्ञप्ति के अनुसार  देश में हुए अनेक साम्प्रदायिक दंगों की जड़ में तथाकथित धार्मिक जुलूस ही रहे हैं। हरदेनिया ने इस विज्ञप्ति में बताया कि उन्होंने दर्जनों साम्प्रदायिक दंगों के कारणों का विश्लेषण किया है। यह विश्लेषण उन शहरों या कस्बों में जाकर किया गया जहां हिंसक घटनाएं हुईं थीं।

उनके मुताबिक तथाकथित धार्मिक संस्थाओं द्वारा जुलूस निकाले जाते हैं। जुलूस की बकायदा अनुमति ली जाती है व पुलिस-प्रशासन से चर्चा करके जूलूस का मार्ग निर्धारित किया जाता है पर यकायक जुलूस का रास्ता बदल दिया जाता है और जुलूस संवेदनशील इलाकों में प्रवेश करता है।

एक विशेष समुदाय के विरूद्ध भड़काऊ नारे लगाए जाते हैं जिससे उस समाज के लोग भड़क जाते हैं और गुस्से में पथराव करने लगते हैं। मीडिया में रिपोर्ट दी जाती है कि धार्मिक जुलूस पर पत्थर फेंके गए। परंतु पत्थर क्यों फेंके गए यह नहीं बताया जाता।

इसके बाद दुकानें व घर जलाए जाते हैं। कुछ जानें भी जाती हैं। हरदेनिया ने बताया कि उन्होंने अपनी पुस्तक ‘साम्प्रदायिक दंगे आजादी के बाद’ में ऐसे अनेक दंगों का विस्तृत विवरण दिया है। अभी हाल में मध्यप्रदेश सहित अनेक राज्यों में साम्प्रदायिक संघर्ष धार्मिक जुलूसों के दौरान ही हुआ है।

 





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