दुनिया में बहुत सी चीजें एक दूसरे की पूरक हैं, अर्थात एक के बिना दूसरे का कोई वजूद नहीं। सूरज न हो तो चांद को कौन पूछे? और चांद न हो तो सूरज की जरूरत किसे है? यही बात रोशनी और मजहब के साथ है। दुनिया में ऐसा कोई मजहब नहीं जिसमें रोशनी को इज्जत न बख्शी गई हो।
दुनिया के हर छोटे -बड़े मजहब को रोशनी चाहिए। बिना रोशनी के किसी मजहब का गुजारा नहीं। हिंदू, ईसाई, सिख और मुस्लिम सब रोशनी से वाबस्ता हैं। कोई रोशनी के लिए चिराग इस्तेमाल करता है तो कोई दीपक। इससे पहले मशालें थीं। उससे पहले आग। सूरज तो रोशनी शुरू से बांटता ही है। सूरज से बड़ा रोशनी का कोई दूसरा स्रोत है ही नहीं।
मनुष्य ने विज्ञान में तरक्की हासिल की तो बिजली बना ली और रातों को रोशन कर लिया। आज इंसान के पास सातों रंगों की रोशनी है। कोई जीते या जन्म ले ज्यादा से ज्यादा रोशनी कर अपनी खुशी का इजहार करता है। हिंदू दीवाली मनाते हैं तो रोशनी करते हैं, ईसाई क्रिसमस मनाते हैं तो रोशनी करते हैं। मुस्लिम मीलाद उन नबी पर और सिख अपने गुरुओं का जन्म दिन प्रकाश पर्व के रूप में मनाते हैं। यानि रोशनी है जहां, मजहब है वहां।
दुनिया के हर मुल्क में रोशनी का वजूद है। हिंदुस्तान में धर्मनिरपेक्ष सरकारें आजादी का जश्न हो या सूबों की स्थापना का समारोह, बिना रोशनी के नहीं मनातीं। धर्मप्रेमी सरकारें अयोध्या, मथुरा और उज्जयिनी में सरकारी खर्च पर दीपावली मनाती हैं। हमारे यहां कोई भी उत्सव हो बिना रोशनी के पूरा नहीं होता। गणेशोत्सव, नवदुर्गा महोत्सव, प्रकाश पर्व, मीलाद उन नबी सबमें बिजली की जरूरत होती है।
हमारी धर्म प्रेमी जनता सजावट के लिए बिजली का कोई कनेक्शन नहीं लेती। सीधे बिजली के खंभे पर तार डालती है और बिजली ले लेती है। धर्म के काम के लिए बिजली चोरी हमारा जन्मसिद्ध लोकतांत्रिक अधिकार है। न सरकार रोकती है और न जनता रुकती है। अब जब सरकारी पैसे से दीपावली मनेगी तो जनता को बिजली चोरी करने से कौन रोक सकता है?
बहरहाल इन दिनों मैं अमेरिका में रोशनी और मजहब का नया रूप देख रहा हूं। मुमकिन है कि जिन मुल्कों में सरकारें धर्मनिरपेक्ष हैं वहां भी अमेरिका की तरह धार्मिक भावनाओं का प्रकटीकरण करने के लिए रोशनी का इस्तेमाल किया जाता हो। अमेरिका में इन दिनों क्रिसमस की धूम है। पूरा अमेरिका इन दिनों रोशनी में नहाया हुआ है। बाजार, कारोबार और घर सब सतरंगी रोशनी में नहाए खड़े हैं।
अमेरिका में रोशनी की इतनी सजावट की जाती है कि आप देखकर दंग रह जाएं। लेकिन इस रोशनी का नजारा देखने के लिए आपको जेब हल्की करना होगी, क्योंकि रोशनी का हर कारनामा बाजार से जुड़ा है। रोशनी चोरी की बिजली से नहीं खरीदी हुई बिजली से की जाती है। ‘रोशनी की दुनिया’ को देखने के लिए जनता अपनी जेब ढीली करती है। हर एक आयोजन की अपनी फीस होती है। आप अपनी कार में बैठे-बैठे रोशनी की इस दुनिया से गुजर सकते हैं। रोशनी के ये आयोजन पूरे डेढ़, दो महीने चलते हैं।
अमेरिका की अपनी पांचवी यात्रा में मैंने रोशनी की इसी दुनिया में अपना काफी वक्त गुजारा। पहले हेलोवीन फिर क्रिसमस की धूम। सरकार इन सबसे अलग है। सब बाजार संचालित है। हर आयोजन में उपभोक्ता और सेवा प्रदाता का रिश्ता है। ये एक निरपराध रिश्ता है। रोशनी के लिए किसी को न चोरी करना पड़ती है और न सीनाज़ोरी। सब ईमानदारी से होता है। मैं रोशनी की जिस दुनिया से गुजरा उसकी फीस प्रति व्यक्ति नहीं, बल्कि प्रति वाहन देना होती है। एक कार के लिए 50 डालर। कार में एक व्यक्ति है या सात इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। कार के प्रवेश और निकासी का समय ही नहीं अपितु गति भी तय होती है। वो भी ऐसी कि हिरणी लजा जाए।
रोशनी संगीत के इशारे पर नर्तन करती है, और तब तक करती है जब तक कि आप परिसर से बाहर न हो जाएं। ये रोशनी चर्च खुद भी कर सकते हैं, लेकिन वे ऐसा नहीं करते। करते भी हैं तो बेहद सादगी से। खास बात ये कि इस रोशनी का राष्ट्रवाद से कोई रिश्ता नहीं होता। यानि रोशनी चीनी झालरों से हो या अमेरिकी झालरों से, कोई फर्क नहीं पड़ता। ये बवाल यहां नहीं है।
रोशनी और मजहब का इतना पाक और बेजोड़ रिश्ता हर जगह मुमकिन है, सिवाय उन मुल्कों के जहां जनता को लोक कल्याण के नाम पर मुफ्तखोरी की आदत सिखाई जाती है। ईश्वर से प्रार्थना कीजिए कि रोशनी और मजहब का ये रिश्ता सब दूर फले-फूले।
(आलेख वेबसाइट मध्यमत.कॉम से साभार)