मध्यप्रदेश में बाघों के बहाने वीरान होते गांव


मध्यप्रदेश के रातापानी अभ्यारण्य को टाइगर रिजर्व बनाने की योजना से कई गांवों के विस्थापन का खतरा मंडरा रहा है। इस प्रक्रिया में आदिवासी और वनवासी समुदायों के अधिकारों पर संकट खड़ा हो गया है।



पर्यावरण के पिरामिड की चोटी पर बाघ विराजता है, और उस पर मंडराता कोई भी संकट पर्यावरण के संकट के रूप में देखा जाता है। इसी कारण, बाघ और उसके लिए जंगल को बचाना ‘वैज्ञानिक वानिकी’ के समर्थकों के लिए अनिवार्य कार्य बन जाता है। परंतु, इस प्रक्रिया में उन लाखों आदिवासियों और वनवासियों की उपेक्षा की जाती है, जो सदियों से इन वनों का हिस्सा रहे हैं और जिन्हें बाघ संरक्षण के नाम पर बेदखल किया जा रहा है। इस लेख में इसी संघर्ष को उजागर किया गया है।

 

मध्यप्रदेश में वर्तमान में रातापानी अभ्यारण्य को आठवां टाइगर रिजर्व बनाने की तैयारी चल रही है, जिसका प्रस्ताव 2170 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र के लिए तैयार किया गया है। इसमें सीहोर और औबेदुल्लागंज के वन क्षेत्र शामिल हैं, जहां 32 गांवों के लगभग दस हजार परिवार रहते हैं। इसी तरह, विभिन्न टाइगर रिजर्वों के बीच कॉरिडोर बनाने का प्रस्ताव है, जिसमें कान्हा से पेंच, पेंच से सतपुड़ा और बांधवगढ़ से संजय टाइगर रिजर्व को जोड़ा जाएगा, जिससे कई गांवों का विस्थापन तय है।

 

देश के 19 राज्यों के 53 टाइगर रिजर्वों से अब तक 89808 परिवारों के 848 गांवों को विस्थापित किया जाना प्रस्तावित है, जिनमें से अधिकांश आदिवासी हैं। अभी तक 25007 परिवारों के 257 गांवों को हटाया जा चुका है। 19 जून 2024 को पर्यावरण मंत्रालय के राष्ट्रीय बाघ संरक्षणराष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) ने एक आदेश जारी किया, जिसमें राज्यों को 591 गांवों के 64801 परिवारों को टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्रों से प्राथमिकता के आधार पर स्थानांतरित करने का निर्देश दिया गया है।

 

NTCA द्वारा उठाए गए ये कदम कई कानूनों और नीतियों का उल्लंघन करते हैं, जिनमें ‘वन अधिकार कानून 2006,’ ‘वन्यप्राणी संरक्षण कानून 1972 (संशोधित 2006)वन्यप्राणी संरक्षण कानून 1972 (संशोधित 2006),’ ‘भूमि अधिग्रहण पुनर्वास और पुनर्स्थापना कानून 2013,’ ‘पेसा कानून 1996,’ और ‘अनुसूचित जाति और जनजाति अत्याचार निवारण कानून 1989’ शामिल हैं।

 

बाघ परियोजना की शुरुआत 7 अप्रैल 1973 को हुई थी। प्रारंभ में देशभर में 9 बाघ अभ्यारण्य बनाए गए थे, जो आज बढ़कर 53 हो गए हैं। इसके तहत प्रत्येक टाइगर रिजर्व में बफर क्षेत्र अधिसूचित करना अनिवार्य किया गया है, जो कोर क्षेत्र के चारों ओर होता है। वन अधिकार कानून 2006 की धारा 4(2) के अनुसार, बफर क्षेत्र घोषित करने से पहले यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि आदिवासियों और वनवासियों के अधिकारों की रक्षा की गई है।

 

टाइगर रिजर्व की घोषणा से पहले जनजातियों और वनवासियों के अधिकारों का सम्मान करना आवश्यक है। सह-अस्तित्व संभव होने पर सह-प्रबंधन की प्रणाली अपनाई जाती है, और यदि सह-अस्तित्व संभव नहीं होता, तो व्यापक पुनर्वास योजना लागू की जाती है।

 

मध्यप्रदेश में वर्तमान में सात टाइगर रिजर्व हैं, जिनमें से 165 गांवों के 18626 परिवारों को नोटिस दिया जा चुका है, और अब तक 109 गांवों के 9058 परिवारों को विस्थापित किया जा चुका है। अभी 56 गांवों के 9568 परिवारों को विस्थापित किया जाना बाकी है।

 

विस्थापित परिवारों को दिए गए आश्वासनों का पालन नहीं किया गया है। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के कुछ गांवों को पुनर्वासित किया गया, लेकिन वहां पीने के पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं तक उपलब्ध नहीं हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार, टाइगर प्रोजेक्ट के तहत 5.5 लाख से अधिक लोग विस्थापित हो सकते हैं।