अजित पवार अगर अपने काका से कह सकते हैं कि वे अब मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं तो वे आगे चलकर किसी और बड़े पद की माँग मोदी से भी कर सकते हैं !
प्रो. संजय को एक बार पुनः माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय में अपने प्रोफेसर के रूप में पाकर वहां के छात्रों को भी प्रसन्नता होगी।
भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे पर ओबामा ने पहली बार कुछ कहा हो ऐसा नहीं है। पद पर रहते हुए जब वे 2015 में जब वे भारत यात्रा पर आये थे तब…
जिस तरह के राजनीतिक हालात दिखाई पड़ रहे हैं उससे तो ऐसा लग रहा है कि महाराष्ट्र में क्षेत्रीय दलों की राजनीति तेज़ी से बिखरती जा रही है।
राजनीति का तमाशा, जन आशा को निराशा में बदलता दिखाई पड़ रहा है। जन जागरुकता से राजनीति की असत्यता का 'राम नाम सत्य' करने का समय आ गया है।
अद्भुत संयोग था कि जून 1974 में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में पटना से प्रारंभ हुई जिस ‘संपूर्ण क्रांति’ के प्रमुख सैनिकों में लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार शामिल थे वे…
एमपी में राजनीतिक सामंजस्य का वातावरण रहता रहा है। कभी भी एक दूसरे पर निजी आक्षेप कम ही लगाए जाते हैं। इस चुनाव में पोस्टर वार की शुरुआत इसके विपरीत संकेत दे रहा…
शुद्ध अंतःकरण से शपथ लेकर शासन की बागडोर संभालने का सपना देखने वाले राजनेता कम से कम धमकाने और पीसने का कोई खौफ न दिखाएं तो राज्य के लिए भी बेहतर होगा और…
भाजपा सब जगह एक जैसी दिखती है। भाजपा की चुनावी रणनीति और उसकी विचारधारा अलग-अलग नहीं नज़र आती।
राहुल गांधी ने देर से ही सही शुरुआत कर दी है। चुनौती बड़ी है और मुक़ाबला भी आसान नहीं है। सारे संसाधनों और मीडिया का एकछत्र स्वामी इस समय सत्तारूढ़ दल ही है।…
देश को गाँधी और गोडसे के बीच चुनाव करना है और किसी भी संवेदनशील भारतीय के लिए इसमें कोई दुविधा नहीं होनी चाहिए कि उसे नफ़रत चाहिए या प्रेम!
इस समय केवल बिहार ही नहीं बल्कि पूरे देश में पटना के जून 1974 जैसा माहौल है। कमी सिर्फ़ एक है और वह काफ़ी बड़ी है। देश के पास जेपी के क़द का…
प्रेस भी चाहेगा कि प्रधानमंत्री मोदी इन सवालों का जवाब दें, लेकिन जब प्रधानमंत्री मोदी ने नौ साल से कोई प्रेस कान्फ्रेंस नहीं की है तो वहाँ किसी को जवाब देंगे, इसकी कोई…
प्रधानमंत्री ने विपक्ष के बहिष्कार के बीच अपने सपनों की नई संसद में प्रवेश कर लिया है! प्रधानमंत्री अगर उचित समझें तो पुरानी संसद और पुराने इतिहास की हिफ़ाज़त का काम विपक्ष को…
क्या आंदोलन कर रहे खिलाड़ियों से भी सरकार वैसे ही निपटेगी जैसे किसानों और शाहीन बाग के आंदोलनकारियों से निपटा गया? या हिंडनबर्ग और ईडी के दुरुपयोग के आरोप की तरह इसे भी…
संसद को देश की ‘सबसे पड़ी पंचायत’ तो कहा जा सकता है, लेकिन इसे ‘मंदिर’ कहना इसके मूलभाव से खिलवाड़ करना है। ख़ासतौर पर सरकार की असफलताओं को ‘दिव्यता’ से ढंकने का प्रयास…
प्रधानमंत्री के नौ साल के कार्यकाल को लेकर इस वक्त बड़े-बड़े रिपोर्ट कार्ड जारी किए जा रहे हैं। ये कार्ड अगले साल तक और भारी-भरकम हो जाएँगे। इसलिए कि चुनाव जीतने का असली…
पत्रकारिता में राजनीतिक प्रतिबद्धता परिलक्षित होना वैचारिक गुलामी ही कही जाएगी। स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया जहाँ लोकतंत्र को मजबूत करता है वहीं कमजोर मीडिया लोकतंत्र को कुपोषित करता है।
सरयूसुत मिश्रा लोकतंत्र के लिए ऐतिहासिक अवसर नई संसद का लोकार्पण लोकतंत्र के मूल्यों पर वैचारिक आपातकाल के अवसर के रूप में बदलता दिखाई पड़ रहा है। जिस संसद के मंदिर में सजदा…
कांग्रेस आलाकमान की ओर से राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन खेड़ा ने भोपाल में पत्रकारों के सामने यह ऐलान करके कि राज्य में चुनाव चेहरे पर नहीं बल्कि मुद्दों पर लड़ा जाएगा, फिर एक बार…