अधिनायकवाद बिना दस्तक दिए ही दाखिल होता है।
सत्ता की राजनीति ने गांधी के ऐतिहासिक अहिंसक ‘डांडी मार्च‘ को हिंसक ‘डंडा मार्च’ में बदल दिया है।
लोगों की आँखों में लोकतंत्र के सपने भर देने के बाद उन्हें फिर से अतीत की अंधेरी गुफाओं में धकेल दिया जाए। अफगानिस्तान में यही हो रहा है।
इस समय के डर का सम्बन्ध प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विचलित कर देने वाले ‘मौन’ और आलोचकों में अप्रत्याशित घबराहट पैदा करने वाले उनके ख़ौफ़ से भी है।
शनिवार को करनाल में कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों पर हुआ था लाठी चार्ज
’स्मृति दिवस’ किस-किस विभीषिका के मनाए जाएँगे?
सत्ता का सम्पूर्ण विकेंद्रीकरण चाहे कभी भी सम्पन्न नहीं हो पाए, आंतरिक विभाजन का विकेंद्रीकरण लगातार होता रहेगा।
अफगानिस्तान दुनिया के तमाम खूबसूरत देशों में से एक था लेकिन यहां एक तरफ बारूद का धुंआ उड़ता रहा हौर दूसरी तरफ लोकतंत्र की पौध रोपने की कोशिश की जाती रही।
शासकों को हक़ हासिल रहता है कि वे अपनी जनता के नाम, पते, और कामों को देश की ज़रूरत के मुताबिक़ बदल सकें।
नागरिकों के मन की यह बात प्रधानमंत्री के कानों तक पहुँचना ज़रूरी है कि सरकार और विपक्ष दोनों को ही समान तरह की जनता का समर्थन प्राप्त है जो अलिखित हो सकता है…
कुछ आशावादियों का मानना है कि मोदी और भाजपा सरकार के खिलाफ माहौल तो बनना शुरू हो चुका है, उसे सुलगाना बाकी है। लेकिन इस विपक्षी आशावाद की पहली अग्नि परीक्षा अगले साल…
कर्नाटक में नाटक का पटाक्षेप इस बार इतनी आसानी से हुआ कि उसमें नाटकीयता का कोई पुट बचा ही नहीं। लेकिन कर्नाटक के नाटक ने ऐसे ही और नाटकों की पुनरावृत्ति के संकेत…
देश की बढ़ती आबादी के चलते लोकसभा सदस्यों की संख्या बढ़ाना अनिवार्यता है, लेकिन इसके संभावित परिणामों पर भी गंभीरता से सोचा जाना चाहिए। क्योंकि यदि सीटों की संख्या और उसका वितरण तर्कसंगत…
आयकर की कार्रवाई के दौरान एक प्रबुद्ध पाठक ने कहा कि देश में एक अच्छे और सच्चे अखबार की बेहद जरूरत है। एक ऐसा अखबार जिसकी आत्मा में भारत धड़के। जो न इस…
फूलन के नाम से सबने पैसे कमाए। पुलिस ने, सियासत ने, पत्रकारों ने, सिनेमा वालों ने। किसी ने दलाली खाई, किसी ने किताबें लिखीं, तो किसी ने फूलन पर सिनेमा बना दिया, लेकिन…
अब बहन जी भाई योगी आदित्यनाथ से ब्राह्मणों और राम मंदिर जैसे प्रतीकों के सहारे लड़ेंगी। इसे आप ‘कांटे से कांटा निकालना’ या ‘लोहे से लोहा काटना’ भी कह सकते हैं।
पेगासस जासूसी का मामला अभी दुनिया के पचास हज़ार लोगों तक ही सीमित बताया जा रहा है पर यह संख्या किसी दिन पांच लाख या पांच और पचास करोड़ तक भी पहुंच सकती…
कोविड महामारी ने हमें साल भर में इतना तो सिखा ही दिया है कि लाख आशंकाओं के बाद भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना है। जीतने की आस नहीं छोड़नी है। फीके मंडप…
इस देश में प्राणवायु पर भी शुरू से अब तक सियासत ही ज्यादा हो रही है। कोविड के कठिन काल में भी ऑक्सीजन सप्लाई को लेकर केन्द्र और राज्य सरकारों ने एक-दूसरे पर…
वैसे वो ही सत्ताएं टैप करने में ज्यादा भरोसा रखती हैं, जिनका अपने आप पर विश्वास कम हो जाता है। अगर फोन टैप का आरोप सही सिद्ध हुआ तो यह मोदी सरकार की…