हम चुपचाप खड़े देख रहे हैं कि हिंदू बहुमत का उपयोग देश में लोकतंत्र को मज़बूत करने के बजाय भारत को एक हिंदू राष्ट्र घोषित करने के लिए किया जा रहा है।
संसद और विधान सभाओं में आपराधिक रिकार्ड वाले सदस्यों की वर्तमान संख्या को अभी शायद पर्याप्त नहीं माना जा रहा है !
राष्ट्रीय सेक्युलर मंच के संयोजक एल. एस. हरदेनिया और प्रगतिशील लेखक संघ के महामंत्री शैलेन्द्र शैली ने संयुक्त रुप से इन जुलूसों पर ही प्रतिबंध लगाने की मांग की है।
प्रशासनिक दृष्टि से ताकतवर माने जाने वाले प्रदेश में उपद्रवी तत्व अशांति फैलाने में कैसे सफल हो गए ? क्या इसे जनता के स्तर पर हुई चूक मान लिया जाए ?
राजेंद्र माथुर यानी एक ऐसा सम्पादक जिसके पास सिर्फ़ एक ही चेहरा हो, जिसकी बार-बार कुछ अंदर से कुछ नया टटोलने के लिए पल भर को हल्के से बंद होकर खुलने वाली कोमल…
वे तमाम विपक्षी दल जिनका एकमात्र उद्देश मोदी को सत्ता से हटाना है उन्हें अपनी नींद के घंटे कम करना पड़ेंगे और जनता के साथ एंगेजमेंट बढ़ाना होगा।
नफ़रत और हिंसा की वजह से हमारे लाखों बहनों और भाइयों को विस्थापित होना पड़ा और अपनी जान तक गंवानी पड़ी। उन लोगों के संघर्ष और बलिदान की याद में।14 अगस्त को ‘विभाजन…
सामाजिक विषयों को लेकर भी अगर बेहतर विजन के साथ फिल्म बने, तो वो बॉक्स ऑफिस पर भी सफल हो सकती है और राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान भी दे सकती है।
प्रिय मुनिया, …
सवाल आख़िर में यही रह जाता है कि फ़िल्म को बनाने में लगाई गई इतनी मेहनत के बाद भी कश्मीरी पंडितों की संघर्षपूर्ण ज़िंदगी को घाटी में वापस लौटने का सुख प्राप्त हो…
देश में गांधी की मूर्तियाँ तोड़ी जा रहीं हैं, गोडसे की खड़ी की जा रहीं हैं, बापू के आश्रमों को राष्ट्रवाद के थिएटरों में बदला जा रहा है, ‘हिंद स्वराज’ के पन्नों को…
प्रधानमंत्री ने कहा है कि 2022 के नतीजों से 2024 के लिए संकेत मिल जाना चाहिए। सवाल यह है कि जिन संकेतों की तरफ़ मोदी इशारा करना चाहते हैं वे अगर देश की…
अपने बनाए माहौल में फंसकर इन निजी यूट्यूब चैनलों, स्ट्रीम यार्ड से चलने वाले चर्चाकार पैनलों और इनके कर्ता धर्ताओं ने मन में एक उम्मीद पाल ली। सपा सरकार आने के बाद मिलने…
महंगाई, बेरोज़गारी और कोरोना से मौतों को लेकर लोगों की नाराज़गी चरम सीमा पर है। पूछा जा रहा है कि अपने कामों को लेकर भाजपा अगर इतनी ही आश्वस्त थी तो यूक्रेन सहित…
‘भारत भारती’ जैसी प्रसिद्ध काव्यकृति के रचनाकार मैथिलीशरण गुप्त ने वर्ष 1912-13 में जो सवाल किया था वह आज भी जस का तस क़ायम है :’ हम कौन थे क्या हो गये हैं…
इतिहास और भूगोल का कुछ ऐसा संयोग बना है कि यूक्रेन और यूपी एक ही समय पर घटित हो रहे हैं, हालाँकि दोनों स्थानों के बीच पाँच हज़ार किलो मीटर से अधिक की…
चौकसे जी अगर अपना कॉलम नहीं लिखते तो दीन-दुनिया को कभी पता ही नहीं चल पाता कि फ़िल्मों के निर्माण ,उनके कथानक और उन्हें बनाने वालों की निजी जिंदगियों को परदों में क़ैद…
सरकारों से उनके कामों को लेकर सवाल करने से रोकने का अधिनायकवादी तरीका यही है कि शोषित समाजों के बच्चों को शिक्षा प्राप्त करने के उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जाए।
यदि इन्हें न रोका गया तो कलिकाल में न राम अछूते रहेंगे और न रविदास। सबका सियासी इस्तेमाल होगा। आपकी आप जानें, मैंने तो अपने ‘मन की बात’ कह दी। आज मुझे यही…
जेपी आंदोलन के चलते पूरे देश में राजनीतिक और सामाजिक उथल पुथल मची थी। ऐसे दौर में बेहतर जिंदगी की तलाश में भटकते युवा इस डिस्को संगीत की ओर तेजी से आकर्षित हुए।