समाज राजनीति का निर्माण करता है तो राजनीति समाज का निर्माण करती है। दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। सामाजिक पाप चल रहे हैं तो उन्हें चलने देने के लिए जनता जिम्मेदार मानी…
समाज की देखरेख में जब तक नदियां, जंगल, पहाड़, झरने, तालाब रहे, सब कुछ सुरक्षित रहा। जिस दिन सरकारी कब्जा हुआ और एनजीओ वालों की देखरेख में एक्शन प्लान बनने शुरू हुए।
ऐसा लगता है 100 साल पुरानी कांग्रेस यहां एक बार फिर जिंदा हो रही है। एक और बात यह की यह सब कांग्रेसी वैचारिक तौर पर भी काफी परिपक्व है। ऐसा नहीं कि…
फिसलती हुई जबानों का मजाक बनाना छोड़ दें, क्योकि आने वाले दिनों में ये जबानें ही हालात को बदलने वाली हैं। मूक जब वाचाल होता है तो उसका सामना करना आसान नहीं होता।…
जनसंघ से भाजपा में तब्दील हुई पार्टी की इंदौर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में जड़ें मजबूत करने में बड़े भैया का खून-पसीना-पैसा-दमखम भी लगा है। बड़े भैया ने सहकारिता से जुड़े चुनावों में तो…
तमिलनाडु के वित्त मंत्री की टिप्पणी केंद्र और ग़ैर-भाजपाई राज्य सरकारों के बीच सम्बन्धों में बढ़ते टकराव का संकेत तो देती ही है, दो अन्य सवाल भी जगाती है।
आप भाजपा की ‘ बी’ टीम है। ये भी एक बार नहीं अनेक बार प्रमाणित हो चुका है। जहाँ भाजपा ‘लूज’ करती दिखाई देती है वहां आप खड़ी नजर आती है। दोनों ‘नूरा…
नीतीश कुमार ने अपने कदम से इतना तो सुनिश्चित कर ही दिया है कि जद(यू) और राजद सहित तमाम क्षेत्रीय दल भाजपा के बुलडोज़र के नीचे आने से अभी बच गए हैं।
प्रधानमंत्री के आह्वान की उपलब्धि इस बात को अवश्य माना जा सकता है कि तिरंगे को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ख़िलाफ़ आज़ादी के बाद से ही लगाए जा रहे रहे आरोप तात्कालिक…
राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति पद के चुनावों ने मुसलिमों को लेकर भाजपा और विपक्ष दोनों की हक़ीक़त उजागर कर दी है।गेंद अब मुसलिमों के पाले में है।
हिंदुत्व के कट्टरपंथी समर्थकों के लिए वह एक दुर्भाग्यपूर्ण क्षण रहा होगा कि गांधी को उनके शरीर के साथ ही विचार रूप में भी राजघाट पर जलाया नहीं जा सका।
संजय अकेले संघ के गहरे मजबूत नेटवर्क, बीजेपी की ताकत, बीजेपी की सरकार व सरकारी मशीनरी, इस सबसे से अकेले लड़ते रहे। संजय ने आखिर दम तक निजी संसाधनों के बूते किला लड़ाया।
दुनिया भर में शासकों को सत्ता के छिन जाने के क्षण तक यही भ्रम बना रहता है कि जनता उन्हें किसी भी अन्य नेता की तुलना में सबसे ज़्यादा मोहब्बत करती है। तानाशाहों…
हम कई बार तय ही नहीं कर पाते हैं कि अमानवीय और नृशंस तरीक़ों से अंजाम दी जाने वाली मौतों के बीच किस एक को लेकर कम या ज़्यादा भयभीत होना चाहिए। नागरिक…
राजधानी भोपाल के हृदय स्थल में एक विशालकाय बरगद का अवसान हो गया। पता नहीं, सौ साल से पुराने इस पेड़ को अपने बुजुर्ग की तरह श्रद्धांजलि देने वाले लोग कितने होंगे।
2002 के दंगों के बाद एक बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों ने भय के कारण गुजरात से पलायन कर दिया था पर कश्मीर घाटी की तरह उसका कहीं कोई ज़िक्र नहीं…
एक बड़ा सवाल ‘अग्निपथ’ को लेकर किया जा रहा है कि चार साल बाद सेना से वापस आने वाले युवा मार्ग ना भटक जाएं तो यह भी बहुत हद तक बेमानी शंका है…
शिवसेना के इस विवाद से इतना फायदा हुआ कि हिंदी को एक नया राजनीतिक मुहावरा मिला। ‘बाप के नाम पर’ वोट मांगने की इस चाल को जनता कितना स्वीकार करती है या फिर…
नूपुर शर्मा द्वारा पैग़म्बर साहब को लेकर की गई टिप्पणी के बाद धार्मिक रूप से निर्मित हो गए संवेदनशील समय में प्रधानमंत्री का यह खुलासा कि उनके पिताजी के मुसलिम मित्र का बेटा…
योजना को लेकर राजनाथ सिंह का दावा अगर सही है तो उन तमाम राज्यों में जहां भाजपा की ही सरकारें हैं वहीं इस महत्वाकांक्षी योजना का इतना हिंसक विरोध क्यों हो रहा है…