भारत जोड़ने से ज्यादा भारत की जड़ों को खोजने की जरूरत


क्या नफरत की बात लगातार उठाकर प्रेम की भावना पैदा हो जाएगी? बल्कि इसका उल्टा असर होने की संभावना हो सकती है। भाषणों से नहीं आचरण से नफरत मिटाने के प्रयास करने होंगे।


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अतिथि विचार Published On :
rahul gandhi bharat jodo yatra

सरयूसुत मिश्रा।

भारत जोड़ने और तोड़ने के द्वन्द में राजनीति उलझ गई लगती है। राजनीति और चिंतकों का एक बड़ा वर्ग ऐसा मानता है कि बीजेपी देश में नफरत फैलाकर अपना राजनीतिक हित साध रही है। आज के राजनीतिक एहसास की गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राजनीतिक शुद्धिकरण के लिए भारत जोड़ो पदयात्रा का सत्याग्रह करना पड़ रहा है।

राहुल गांधी की इस यात्रा को एक माह पूरा हो चुका है। राजनीतिक संदेश देने के लिए इतना समय कम नहीं है। कन्याकुमारी से शुरू हुई यात्रा जहां-जहां से निकली है वहां-वहां दोबारा जाकर कांग्रेस को यात्रा के असर के बारे में जरूर पता करना चाहिए।

नफरत के गमले प्रेम के गुलाब कैसे पैदा कर सकते हैं? तेरी नफरत और मेरी नफरत से तो नफरत ही निकलेगी। जोड़ने की यात्रा से जो संदेश दिए जा रहे हैं उसका मुख्य आधार यही है कि बीजेपी देश में नफरत फैला रही है जबकि संदेश यह होना चाहिए कि इस नफरत को खत्म करने के लिए यह यात्रा प्रेम सद्भावना और संदेश को कैसे पहुंचाएगी?

राजनीतिक शब्दावली जरूरत के हिसाब से बदल जाती है। पहले जरूरत थी तो मुस्लिम तुष्टिकरण, फिर सेकुलरिज्म, फिर सॉफ्ट हिंदुत्व और अब नफरत। इन सारे शब्दों का मतदाता की दृष्टि से राजनीतिक आशय एक ही निकलता है। जब तक ‘सबकी बात’ नहीं की जाएगी, जब तक समान व्यवस्था, समान कानून, समान कर्तव्य को वरीयता नहीं दी जाएगी, तब तक बहुमत की चॉइस अपने विचार थोपती रहेगी।

कोई भी राजनीतिक विचार तुष्टीकरण की बिसात के रूप में स्वीकारना भारतीय चिंतन को शायद अब मंजूर नहीं होगा। भारत जोड़ने से ज्यादा भारत की जड़ों को खोजने की जरूरत है। अगर जड़ों तक पहुंचेंगे तो एकजुट होंगे। जड़ों को छोड़कर कोई भी सरवाइव नहीं कर सकता।

भारत जोड़ो यात्रा पर देश के सुप्रसिद्ध विचारक चिंतक स्वामीनाथन अंकलेश्वर अय्यर ने राहुल गांधी के नाम एक खुला लेख लिखा है। इस लेख में उनका कहना है कि भारत एक बुरी तरह से विभाजित राष्ट्र है जिसे उपचार की आवश्यकता है। फिर भी कारण और उपाय स्पष्ट रूप से समझे बिना उस घाव को ठीक नहीं किया जा सकता।

लेख में जवाहरलाल नेहरू की कठोर धर्मनिरपेक्षता को कांग्रेस के लिए भार बताया गया और लिखा गया कि पार्टी की हिंदू विरोधी छवि कांग्रेस को दुखी कर रही है। राहुल गांधी द्वारा अपनी हिंदूवादी छवि को उल्लेखित करते हुए लेख में कहा गया कि ऐसे हालात में कांग्रेस धर्म निरपेक्ष तोपों के साथ लड़ाई कैसे कर सकती है? सॉफ्ट हिंदुत्व को भी कांग्रेस के लिए नुकसानदेह बताया गया है।

भाजपा की हिंदूवादी राजनीति से हो रहे विभाजन को दूर करने के लिए लेख में सुझाव दिया गया कि मुस्लिम कवि इकबाल के ‘सारे जहां से अच्छा’ गीत और महात्मा गांधी के भजनों को भारत जोड़ो यात्रा में सत्संग के लिए शामिल किया जाना चाहिए। ‘हम होंगे कामयाब’ गीत और ‘वैष्णव जन’ के गीत सहित महात्मा गांधी की ‘रघुपति राघव राजा राम’ प्रार्थना को भारत जोड़ो यात्रा में प्रतिदिन प्रार्थना सभा में शामिल करने का सुझाव दिया गया है।

लेख में यह भी कहा गया कि महात्मा गांधी की प्रार्थना को और व्यापक बनाने के लिए उसी धुन में एक और पंक्ति जोड़ सकते हैं ‘यीशु-बुद्ध तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान’। लेख में कहना है कि गांधी जी ने हिंदू धर्म और धर्मनिरपेक्षता को अपने जीवन और आचरण में समेट कर सामाजिक एकता को मजबूत किया था। लेख में यह भी कहा गया है कि नेहरू उन लोगों में थे जो धर्म और राजनीति को अलग अलग रखना चाहते थे। मार्क्सवादी और समाजवादी बुद्धिजीवियों ने भी ऐसा ही किया लेकिन गांधी जी ने साफ-साफ कहा कि जो लोग राजनीति और धर्म को अलग करना चाहते हैं, वे न तो राजनीति को समझते हैं और ना ही धर्म को समझते हैं।

लेख में कहा गया है कि भाजपा ने धर्म और राजनीति को भारी सफलता के साथ मिश्रित किया है। ‘बीटिंग द रिट्रीट’ समारोह से महात्मा गांधी के पसंदीदा भजन ‘एबाइड विद मी’ को बंद करने का भी प्रश्न उठाया गया है। इस प्रार्थना को भी राहुल गांधी की प्रतिदिन की भारत जोड़ो यात्रा सभा में शामिल करने का सुझाव खुले लेख में दिया गया।

महात्मा गांधी के भजन और प्रार्थना को सत्संग में शामिल कर क्या कोई यात्रा गांधी सत्याग्रह जैसी प्रभावी हो सकती है? महात्मा गांधी सत्य के लिए आग्रह कर रहे थे। आज की राजनीति झूठ के लिए सत्य के आग्रह का दिखावा करना चाहती है। गांधी कोई भी संदेश तभी समाज को देते थे जब उसका प्रयोग वह अपने ऊपर सिद्ध कर लेते थे। क्या आज का कोई राजनीतिज्ञ ऐसा करने का साहस दिखा रहा है?

‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम सबको सन्मति दे भगवान’ इसी को तो देश में स्थापित करना है। इसी की जड़ तक तो भारत की खोज करना है। अगर इसकी जड़ तक कोई भी पहुंचना चाहता है तो इससे बड़ी खुशी की खबर देश के लिए क्या हो सकती है? लेकिन अगर केवल इसका दिखावा कर राजनीतिक स्वार्थ साधना लक्ष्य है तो फिर इससे क्या कोई लाभ होगा?

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारत एक खोज पुस्तक लिखी है। इसमें उन्होंने तत्कालीन परिस्थितियों के अनुरूप चीजों को संकलित किया है। यह संकलन सही है गलत है इस पर विवाद हो सकते हैं लेकिन नेहरू जी का वैचारिक चिंतन क्या कांग्रेस में आज बचा है? क्या कांग्रेस में ऐसी क्षमता बची है कि वह नए सिरे से भारत की खोज कर सके? आज इस बात की जरूरत है कि वर्तमान संदर्भों में भारत की जड़ों को सामने लाया जाये।

बीजेपी शायद इसलिए सफल हो रही है क्योंकि वह राष्ट्रीय स्वयं संघ के वैचारिक धरातल पर आगे बढ़ रही है। संघ भारतीय परंपरा संस्कृति और गौरव को पुनर्जीवित करने के प्रयासों में लगा हुआ है। कोई भी इससे सहमत हो या असहमत हो लेकिन उनके प्रयास को जन स्वीकारोक्ति तो मिल रही है। ऐसी हालत में संघ के प्रयासों का मुकाबला करने के लिए वैचारिक धरातल पर ही लड़ाई लड़नी पड़ेगी।

राहुल गांधी क्या संदेश दे रहे हैं? घुमा फिरा कर यही कह रहे हैं कि बीजेपी हिंदू-मुस्लिम नफरत फैलाकर राजनीतिक सत्ता हासिल कर रही है। क्या नफरत की बात लगातार उठाकर प्रेम की भावना पैदा हो जाएगी? बल्कि इसका उल्टा असर होने की संभावना हो सकती है। भाषणों से नहीं आचरण से नफरत मिटाने के प्रयास करने होंगे। राहुल गांधी नफरत की बात कर रहे हैं तो संघ मुस्लिम समुदाय से एकता के लिए काम कर रहा है।

राहुल गांधी को अपना सेल्फ कॉन्फिडेंस बढ़ाने की जरूरत है। ऐसा लगता है कि उनका भरोसा डगमगा गया है। देश के हालात जहां पहुंच गए हैं उनमें जो भी मुद्दे हैं धर्म, राजनीति, विकास सभी पर उनको स्पष्टता के साथ अपने विचार और आचरण को समाज के सामने रखना होगा। भारत की उन्हें खोज करना होगा पहले तो भारत को समझना होगा फिर भारत को जोड़ने की बात का कोई मतलब और असर हो सकेगा।

(आलेख सोशल मीडिया से साभार)