आहत होने को आतुर समाज में व्यापार करतीं कंपनियां


मिंत्रा के जिस लोगो पर विवाद हुआ है उसमें कई लोगों का कहना है उन्होंने वैसा अब तक कुछ नहीं देखा, जो अश्लील हो, हां जब से यह विवाद हुआ है, वे उस लोगों में सचमुच में एक तस्वीर देख पा रहे हैं जो काबिले एतराज हो सकती है।


संजय वर्मा
अतिथि विचार Updated On :

खबर है कि मिंत्रा नाम की कंपनी के लोगो पर कुछ लोगों ने अश्लील होने का आरोप लगाया है। विवाद से डर कर मिंत्रा ने अपने लोगो की डिजाइन बदलने का फैसला किया है।

कुछ समय पहले तनिष्क के विज्ञापन पर लोगों ने एतराज जताया और तनिष्क ने भी तुरन्त कदम पीछे खींच लिए थे।

किसी कंपनी का लोगो उसकी ब्रांड स्कीम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। ब्रांड यूं ही नहीं बनते, उन्हें बच्चे की तरह पाल पोस कर बड़ा किया जाता है और जब वे लोकप्रिय हो जाते हैं तो कंपनी के लिए कीमती प्रॉपर्टी बन जाते हैं, जैसे जमीन, मकान या फैक्ट्री होती है। कई बार अकेले ब्रांड की कीमत करोड़ों में होती है।

कई लोगों का मानना है कि कंपनी की बैलेंस शीट में ब्रांड की कीमत को भी दर्शाया जाना चाहिए। समझा जा सकता है कि मिंत्रा के लिए यह कितना बड़ा नुकसान है।

लोगो की डिजाइन बनाने में कला के अलावा मनोविज्ञान की भी भूमिका है। माना जाता है कि कुछ खास आकार , रेखाएं , रंग इंसान के दिमाग में खास किस्म के जज़्बात पैदा कर सकते हैं।

किसी कंपनी का लोगो इस तरह बनाया जाता है कि वह उन खास भावनाओं का ख्याल रखे जो प्रोडक्ट से जुड़ी हुई हैं। जैसे नाईकी के जूतों पर एक ‘सही’ का निशान होता है, जो आगे बढ़ने और पॉजिटिविटी से जुड़ा हुआ है। ऐसे ही स्टेट बैंक के लोगो मे ‘की होल ‘  की आकृति आपको अपने पैसे की सुरक्षा का एहसास दिलाती है।

मनोविज्ञान में आकृतियों का इस्तेमाल चिकित्सा के प्रयोगों में भी किया जाता है। रोरश्या नामक एक प्रयोग में व्यक्ति को कुछ अमूर्त आकृतियां दिखाई जाती है और उससे पूछा जाता है कि उसे क्या दिखाई दे रहा है।

मरीज़ के जवाब से उसके व्यक्तित्व और मनोदशा के बारे में वे जानकारियां मिलती हैं जो वह खुद बताना नहीं चाहता या उसे खुद पता नहीं है।

इस विज्ञान की मदद से लोगो की डिज़ाइन में पेंसिल का एक खास स्ट्रोक, कोई खास रंग इस्तेमाल कर, प्रोडक्ट के बारे में ग्राहकों की भावनाओं को बदला जा सकता है।

आपको याद होगा जब कोका कोला भारत में आई तो उन्होंने काफी समय तक विज्ञापनो में सिर्फ लाल रंग दिखाया ,जैसे लाल मिर्ची, लाल मुर्गा, लाल कपड़े! इन विज्ञापनों में प्रोडक्ट की कोई बात नहीं होती थी।

कोका कोला चाहता था कि लाल रंग आपके दिमाग में कोका कोला के साथ जुड़ जाए ताकि जब भी आप लाल रंग देखें , आपको कोका कोला याद आए।

ठीक यही काम पेप्सी ने नीले रंग के साथ किया। कल्पना कीजिए कि यदि कोई कोका कोला को लाल रंग के इस्तेमाल करने के लिए मना कर दे ,तो उसे कितना नुकसान होगा या फिर यदि कोई एप्पल कंप्यूटर से उसका आधे कुतरे सेब का लोगो छीन ले तो कंपनी को हजारों करोड़ों रुपए का नुकसान होगा।

मिंत्रा के जिस लोगो पर विवाद हुआ है उसमें कई लोगों का कहना है उन्होंने वैसा अब तक कुछ नहीं देखा, जो अश्लील हो, हां जब से यह विवाद हुआ है, वे उस लोगों में सचमुच में एक तस्वीर देख पा रहे हैं जो काबिले एतराज हो सकती है।

इसे बच्चों की पत्रिकाओं में अक्सर छपने वाले तस्वीरों से समझा जाता जा सकता है, जिसमें एक बड़ी तस्वीर में छिपे हुए हिरण या खरगोश को ढूंढने की कवायद दी जाती है।

एक आकृति के भीतर कोई दूसरी आकृति आपको पहले प्रयास करने पर भी नहीं दिखाई देती , लेकिन जब कोई आपको वह आकार कोई दिखा देता है तो फिर चाह कर भी आप उसे नजरअंदाज नहीं कर पाते ।

मिंत्रा की ब्रांड मार्केटिंग टीम ने जानबूझकर ऐसी आकृति चुनी हो , इसकी संभावना कम लगती है । क्योंकि जब भी मार्केटिंग टीम की नीयत किसी खास संदेश देने की होती है तो विज्ञापन की पंच लाइन या किसी और तरीके से भी ऐसे संकेत दिए जाते हैं।

इसकी एक मिसाल कैटरीना कैफ का मैंगो स्लाइस वाला विज्ञापन है जो आम रस बेचने के लिए काम सूत्र की बात करता है। मगर मिंत्रा के पूरे विज्ञापन कैंपेन में ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता इसलिए उन्हें संदेह का लाभ दिया जाना चाहिए ।

भारत का समाज इन दिनों इतना जल्दी-जल्दी आहत हो रहा है कि अब कंपनियों की मार्केटिंग टीम में मार्केटिंग गुरुओं के साथ धर्मगुरुओं , एक्टिविस्ट और पवित्रता वादी लोगों को भी नौकरी पर रखना होगा ताकि किसी लोगो, ब्रांडनेम या विज्ञापन पर पैसा लगाने से पहले इन सब से पूछ लिया जाए कि कहीं इसमें आपकी भावनाओं को आहत करने जैसी कोई बात तो नहीं ! भारत में कंपनियों को यह सबक सीखना होगा कि वे आहत होने को आतुर समाज में व्यापार कर रहे हैं।





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