दिलों पर हुकूमत करने की निरंकुश इच्छाओं का इतिहास और अभ्यास बहुत पुराना है। प्रेम पर पहरे लगाने का अभ्यास घरों से शुरू होता है, जो हाल-हाल तक संविधान के आँगन में पहुँच कर इत्मीनान पा लिया करता था। अब कोशिशें उस इत्मीनान के आँगन को कारावास में बदलने की हैं।
देश का हृदय कहलाने वाले प्रदेश के विधि व गृहमंत्री ने कल जिस गर्वीले अहमकपन में ‘लव जिहाद’ के खिलाफ़ कानून के मसौदे के बारे में बताया वह बेहद डरावना है। डरावना केवल उनके लिए नहीं है जिन्हें घोषित निशाना मानते हुए यह मसौदा तैयार हो रहा है, बल्कि यह डरावना उनके लिए ज़्यादा है जो इसकी गिरफ्त में आने वाले हैं लेकिन जिनका ज़िक्र इस फसाने में सीधे तौर पर नहीं किया जा रहा है।
एक नफ़रती विचारधारा ने सबसे ज़्यादा नुकसान भाषा और उसके अहसासों के साथ किया है। बताइए, ‘लव’ जैसा चिर-नवीन शब्द और अहसास इसलिए ‘जिहाद’ बना दिया जा रहा है ताकि इस अहसास के पनपने से पहले इसमें युद्धपोतों की गर्जनाएं और उनसे उत्पन्न रक्तरंजित दृश्य नज़रों के सामने शाया हो जाएं। हालांकि यहां ‘जिहाद’ जैसे अर्थगंभीर शब्द के साथ भी कम बदतमीज़ी नहीं हुई है। तमाम इस्लामिक स्कॉलर और अरबी भाषा के जानकार यह कहते आ रहे हैं कि जिहाद का अर्थ युद्ध या धर्मयुद्ध नहीं है, बल्कि जिहाद एक जद्दोजहद है न्याय के लिए, प्रेम के लिए, सेवा के लिए। यह आंतरिक द्वंद्व और संघर्ष की कार्यवाही का क्रियापद है। इस आंतरिक जद्दोजहद, संघर्ष और द्वंद्व का उद्देश्य खुद को ज़्यादा विनम्र, ज़्यादा न्यायसंगत और ज़्यादा अच्छा इंसान बनाना है।
अपने मूल अर्थ के उलट इन दोनों लफ्जों को पास-पास लाकर एक नये राजनैतिक व सांप्रदायिक अभियान के तहत जिस तरह से ‘लव जिहाद’ का पद-युग्म रचा गया है, वो किस कदर समाज में आपसी वैमनस्य और घृणा को जन्म देता है इसका आकलन शायद आज हम न कर पाएं लेकिन अगली पीढ़ियां जब एक धर्मनिरपेक्ष, लोकतान्त्रिक देश को बलात् ‘आर्यावर्त’ में बदलता देखेंगी और उस बदले हुए देश में ही जीने को अभिशप्त होंगी, तब शायद इस पद-युग्म की कर्कशता, उसकी कर्णभेदी चीखें, उसे सुनायी देंगी। बहरहाल…
‘व्यक्ति की स्वतन्त्रता’ और आज़ादी की संवैधानिक गारंटी के घनघोर रूप से खिलाफ़ इस बेइंतहा कबीलाई कानून के मसौदे के बारे में जो मुख्य बातें कल नरोत्तम मिश्रा ने बतायी हैं, उनसे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि हिन्दू लड़कियां बहुत असुरक्षित हैं। वे असुरक्षित हैं क्योंकि वे अपने बारे में अच्छा-बुरा सोचने लायक नहीं हैं। वे इतनी मूर्ख हैं कि कोई मुसलमान लड़का उन्हें अच्छे कपड़े पहनकर अपने प्रेम जाल में ‘फंसा’ सकता है और इस काम में वह एक परियोजना की तरह औरों को शामिल कर सकता है और एक अबला हिन्दू लड़की जो कालेज वगैरह जाती है, मेरिट लिस्ट में आती है, उसके मोहजाल में फँसकर अपनी ज़िंदगी बर्बाद कर सकती है।
यहां एक या कई हिन्दू लड़कियों की ज़िंदगी बर्बाद होने से ज़्यादा मोल धर्म बदलने की कार्यवाही पर दिया जा रहा है। लब्बोलुआब ये कि इन मूर्ख हिन्दू लड़कियों के कारण हिन्दू धर्म पर गंभीर संकट आन खड़ा हुआ है और इससे निपटने के लिए एक सख्त कानून की ज़रूरत प्रदेश सरकार को पेश आ रही है। ये ज़रूरत इतनी तेज की आयी है कि इसमें किसी तरह का विलंब नहीं किया जा सकता। मसौदा तैयार है। दिसंबर में विधानसभा सत्र में इसे अमल में लाना है ताकि हिन्दू धर्म की रक्षा बिना किसी देरी के तुरंत की जा सके। गौरतलब है कि यह कानून धार्मिक स्वतंत्रता के कानून का पूरक कानून होगा।
इस कानून के तहत विधर्मियों को मज़ा चखाने के लिए इस ‘लव जिहाद’ की मुहिम में लिप्त युवाओं या पुरुषों के खिलाफ संज्ञेय, गैर-ज़मानती मुकदमा दर्ज़ होगा। सज़ा की मियाद पांच साल होगी और सज़ा का स्वरूप सश्रम कारावास होगा। इस परियोजना में मुख्य अभियुक्त के सहयोगी, परिवारजन, रिश्तेदार, मित्र-यार भी मुख्य अभियुक्त के बराबर सज़ा के हकदार होंगे।
थोड़ी उदारता दिखलाते हुए इस मसौदे में यह अनुमति दी गयी है अगर कोई लड़की अपने परिवारवालों की सहमति से किसी विधर्मी से शादी करना चाहे और यहां तक कि धर्म-परिवर्तन करना चाहती हो, तो उसे जिला दंडाधिकारी से इस बाबत एक महीने पहले अनुमति लेना होगी, हालांकि इसमें इस बात का ज़िक्र नहीं है कि इस अव्वल तो कोई परिवार अपने घर की लड़की को ऐसी कोई छूट नहीं देने वाला है और सहमति तो कदापि नहीं। फिर भी कोई लैला-शीरीं, राधा, मीरा जैसी दमदार लड़कियां निकल ही गयीं और परिवार भी उनके साथ खड़ा हो गया, तो क्या इस एक महीने में उनका जीना दूभर करने के लिए संघ के आनुषंगिक संगठनों को उस परिवार से दूर रखे जाने का कोई प्रावधान भी इसमें होगा? यह सवाल किसी ने पूछा भी नहीं है, इसलिए इसका जवाब तो खैर क्या ही मिलेगा।
पूछा तो यह भी नहीं गया कि प्रदेश के गृहमंत्री ने क्या अब तक हिन्दू महासभा की ग्वालियर इकाई पर कोई कार्रवाई की जिन्होंने नाथूराम गोडसे को उसकी पुण्यतिथि पर अमर शहीद बतलाते हुए महात्मा गांधी की हत्या को जायज़ करार दिया? खैर, पूछने और बताने की रस्म अब बीत गयी सी लगती है।
#WATCH Allahabad HC said religious conversion isn't necessary for marriage. Govt will also work to curb 'Love-Jihad', we'll make a law. I warn those who conceal identity & play with our sisters' respect, if you don't mend your ways your 'Ram naam satya' journey will begin: UP CM pic.twitter.com/7Ddhz15inS
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) October 31, 2020
केवल हृदय प्रदेश ही क्यों, उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की एक संदर्भरहित टिप्पणी को आधार बनाकर प्रदेश में ऐसा प्रभावी कानून बनाने की घोषणा कर डाली है जिससे ‘लव जिहाद’ करने वालों को ‘राम नाम सत्य है’ की यात्रा पर भेजा जा सके। यानी यहां सज़ा का स्वरूप और दंड की सीमा सज़ा-ए-मौत पर आ टिकेगी। इस लिहाज से मध्य प्रदेश पिछड़ रहा है, लेकिन इंतज़ार कीजिए। अभी हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के उवाच भी सुने जाएं।
वे कहते हैं कि देश में ‘लव जिहाद’ के मामले में बहुत सी शिकायतें आ रही हैं। इनसे निपटने के लिए एक प्रभावी कानून बनाना ज़रूरी है। जब से हरियाणा राज्य के रूप में वजूद में आया है तब से ऐसे जोड़ों की शिनाख्त की जाएगी। यानी 1956 से लेकर अब तक ऐसे जोड़ों को खोजा जाएगा।
Haryana Assembly’s two-day session ends, multiple bills passed. Punjab Land Revenue (Haryana Amendment) bill 2020, under which co-sharers of land, that aren't blood relative will have to divide the land with mutual consent within a year, or govt will do it: Haryana Chief Minister pic.twitter.com/Cw0c2J5UF0
— ANI (@ANI) November 6, 2020
इन्हें खोज लेने के बाद क्या होगा? इस सवाल का जवाब कल नरोत्तम मिश्रा ने दे दिया, कि अगर कोई मामला ‘लव जिहाद’ की परिभाषा पर कानूनन खरा उतरता है तो वो शादी नल एण्ड वॉइड करार दी जाएगी यानी वो शादी खारिज कर दी जाएगी। अब 1956 के बाद से अब तक जितने भी ऐसे मामले केवल हरियाणा में हुए हैं उनकी शामत आने वाली है।
ज़रा सोचिए, जिन दो लोगों ने मिलकर 1956 या उसके बाद हिन्दू धर्म को नुकसान पहुंचाया है अब उन्हें सरकार कैसे नुकसान पहुंचाएगी? नज़ीर बनेगी भाई! उधर कर्नाटक के मुख्यमंत्री भी निकम्मे थोड़े न हैं। वो भी कतार में हैं और ऐसा ही कानून लाना चाहते हैं। इस देशव्यापी समस्या से निपटने के लिए भाजपानीत राज्य सरकारों की मुस्तैदी पर बलिहारी हुआ जा सकता है।
मध्य प्रदेश धर्म स्वातंत्र्य विधेयक 2020 के तहत प्रस्तावित कानून में #लव_जिहाद यानी धर्मांतरण के लिए प्रलोभन या दबाव डालकर कराए जाने वाले शादी-विवाह को शून्य घोषित करने का प्रावधान भी किया जा रहा है। @BJP4India @BJP4MP @mohdept @DGP_MP https://t.co/k96UmRPk77
— Dr Narottam Mishra (Modi Ka Parivar) (@drnarottammisra) November 17, 2020
एक बात इन सभी अहमक़ों में समान है और वो ये कि इन सब ने अपने-अपने बयानों या इरादों में एक दफा भी 1954 में भारत की संसद से पारित विशेष विवाह कानून का ज़िक्र तक नहीं किया है। यह हालांकि थोड़ा कम प्रचलित कानून है, लेकिन यही कानून संविधान का आँगन बन जाता है ऐसे जोड़ों के लिए जो अलग-अलग धार्मिक अस्थाओं का पालन करते हुए विवाह नामक संस्था का गठन करना चाहते हैं। यह कानून उन्हें इस बात की इजाज़त देता है कि वे बिना धर्म बदले विवाह कर सकते हैं। ज़ाहिर है यहां उनकी पसंद, उनके विवेक और उनके जीवनसाथी के चयन को उनके धर्मों से ज़्यादा तवज्जो दी गयी है, बल्कि वास्तव में इन्हीं अधिकारों को तवज्जो दी गयी है।
प्रेम, मोहब्बत, शादी जैसे नितांत वैयक्तिक मामलों में संविधान के संरक्षकों द्वारा इस तरह का हठ किस तरह के समाज की ओर देश को ले जाने का एलान है समझना तो मुश्किल नहीं, लेकिन समझ लेने पर जो भयावह दृश्य दिखलायी पड़ रहे हैं उन्हें दूसरों को दिखला पाना वाकई बहुत मुश्किल है।
अब देर हो चुकी है। जब यही सरकारें ईद पर लोगों की रसोइयों में पहुँचकर हांडी में पक रहे गोश्त की शिनाख्त कर रही थीं तब हमें बुरा नहीं लगा जबकि खानपान भी नितांत वैयक्तिक मामला ही था। जब अपने ही देश के नागरिकों को उनके कपड़ों से पहचान लेने की धौंस दी जा रही थी तब भी हमें बुरा नहीं लगा मानो कपड़े पहनने का मामला निजी पसंद या इच्छा या स्वतन्त्रता का मामला नहीं था। अब तो खैर आग फैल चुकी है। बहुसंख्यक आबादी को अभी भी इसलिए बुरा नहीं लगेगा क्योंकि इस निजता की संवैधानिक रक्षा में उसके धर्म का बहुत नुकसान हो चुका है और अब दौर धर्म को ज़्यादा कठोर, ज़्यादा निर्मम, ज़्यादा संकुचित और ज़्यादा अमानवीय बनाने का है। इसमें अगर संवैधानिक संस्थाओं का भी सहयोग मिल जाये तो क्या बुरा है?
और स्त्रियाँ? उन्हें उनकी ‘सही’ जगह देखने के लिए लालायित समाज में हर्ष का संचार ही होगा। नहीं होगा?
साभार: जनपथ