MP अगला पड़ाव, क्या होगा भारत जोड़ो यात्रा के सूत्रधार के गृहराज्य में प्रभाव?


कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा डेढ़ महीने से ज्यादा समय से सफलतापूर्वक चल रही है। कन्याकुमारी से शुरू यह यात्रा महाराष्ट्र पहुंच चुकी है। इसका अगला पड़ाव मध्यप्रदेश है।


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अतिथि विचार Updated On :
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सरयूसुत मिश्रा।

भारत जोड़ो यात्रा के प्रबंधन की मुख्य धुरी और समन्वयक पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के राज्य मध्यप्रदेश में इस यात्रा की सफलता के निहितार्थ तलाशे जा रहे हैं। यात्रा हमेशा ‘ऊर्जा और प्रेरणा’ देने वाली होती है। कांग्रेस की इस यात्रा का लक्ष्य बीजेपी द्वारा किए जा रहे सामाजिक विभाजन को रोककर कांग्रेस के जनाधार को बढ़ाना है। यात्रा का नाम ही तोड़ने के खिलाफ जोड़ने के लिए रखा गया है।

भारत जोड़ो यात्रा के प्रभाव को लेकर चर्चाएं चल रही हैं। इसका प्रभाव बहुआयामी होगा। यात्रा का सबसे पहला प्रभाव तो राहुल गांधी के व्यक्तित्व पर होगा जो निश्चित रूप से सकारात्मक होगा। राहुल गांधी भारत भूमि पर जन्मे ऐसे व्यक्ति हैं जो प्रधानमंत्री के घर में पैदा हुए। जब उनका जन्म हुआ तब उनकी दादी प्रधानमंत्री थीं, बाद में उनके पिता भी प्रधानमंत्री बने। उनके बारे में कहा जाता है कि वह चांदी के चम्मच के साथ ही पैदा हुए हैं। पद-प्रतिष्ठा, अमीरी-गरीबी, सुख-दुख के पैमाने पर जन्म के साथ ही जीवन को अगर आंका जाए तो राहुल गांधी को निश्चित ही पवित्र आत्मा माना जाएगा क्योंकि उनका जन्म भारत के प्रथम राजनीतिक परिवार में सुख सुविधाओं के बीच हुआ है।

भारत की राजनीति में राहुल गांधी दो दशकों से ज्यादा समय से सक्रिय हैं। वे 4 बार तो सांसद रह चुके हैं। अधेड़ उम्र में पहुंच चुके राहुल गांधी की राजनीतिक सफलता को अगर आंका जाए तो जिस राजनीतिक परिवार में जहां से उन्होंने शुरू किया था आज भी वह उसी स्थान पर खड़े हुए हैं। उनके लिए राजनीतिक प्रगति सांसद और विधायक बनने में नहीं है। गांधी परिवार तो सांसद और विधायक बनाता ही रहा है। राहुल गांधी का परिवार और गांधी परिवार के समर्थक भी उन्हें प्रधानमंत्री के पद पर देखना चाहते हैं। इस दृष्टि से उनका राजनीतिक सफर अभी तक असफल ही रहा है।

उत्तरप्रदेश जैसे राज्य से अपनी पुश्तैनी सीट छोड़कर उन्हें दक्षिण भारत में सांसद बनने के लिए जाना पड़ा है। राजनीति में राहुल गांधी को ‘पप्पू’ के रूप में प्रचारित किया जाता है। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के पहले भी उन्होंने देश में आम सभाएं और यात्राएं की हैं लेकिन जहाज से आना और सभा को संबोधित कर वापस चले जाना गांधी परिवार का ट्रेंड रहा था।

पहली बार गांधी परिवार का वारिस असली भारत और भारतीयों के बीच सड़क पर हर दिन 25 किलोमीटर चल रहा है। विभिन्न प्रांतों और भाषाओं के लोगों से मिल रहा है। उनकी समस्याओं,जीवन शैली और जीवन यापन के तरीकों को समझ रहा है। इससे राहुल गांधी में उनके प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण का विकास होगा। राहुल गांधी को अभी तक आत्मविश्वास विहीन नेता के रूप में देखा जाता रहा है। भारत जोड़ो यात्रा निश्चित ही उनमें आत्मविश्वास को बढ़ाने का काम करेगी। यह यात्रा राहुल गांधी की पर्सनालिटी और लीडरशिप को मजबूती प्रदान करेगी।

यात्रा से उनका पब्लिक कनेक्ट बढ़ेगा और भविष्य में उन्हें एक गंभीर लीडर के रूप में देश में स्वीकार करने की संभावनाएं बढ़ेंगी। यात्रा के बाद उनकी सक्रियता, चाल-चरित्र और चेहरा उनका राजनीतिक भविष्य तय करेगी। भारत जोड़ो यात्रा का सकारात्मक प्रभाव का वे निश्चित ही लाभ उठा सकते हैं।

कांग्रेस पार्टी पर जहां तक भारत यात्रा के प्रभाव का प्रश्न है वह बहुत असरकारी नहीं हो सकता है। नफरत फैलाने के लिए बीजेपी को जिम्मेदार ठहराने का काम कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से पहली बार नहीं कर रही है। कांग्रेस और भाजपा की परंपरागत लड़ाई ही इस वैचारिक आधार पर ही टिकी हुई है। कांग्रेस अपना राजनीतिक धर्म अलग तरीके से निभाती रही है और बीजेपी अपना राजनीतिक धर्म अलग तरीके से निभा रही है। यह दोनों पार्टियों के तरीकों की टकराहट है। इस टकराहट में ही कांग्रेस वर्तमान में पिछड़ी हुई है और बीजेपी देश की राजनीति में आगे निकल गई है। नफ़रत फैलाने का आरोप और जोड़ने की कोशिश भाजपा समर्थक बड़े समुदाय पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है जो कांग्रेस के लिए नुक्सान देह और भाजपा के लिए फायदेमंद हो सकता है।

तोड़ने और जोड़ने के मायने अलग-अलग लोगों के लिए अलग-अलग हैं। बहुसंख्यकों को इकट्ठा करना और उनमें एकजुटता बढ़ाकर अपना राजनीतिक आधार बढ़ाने के बीजेपी के प्रयास को कांग्रेस और दूसरे राजनीतिक दल मुस्लिमों के खिलाफ नफरत के रूप में मानते हुए इसे समाज और देश को तोड़ने वाला बताते हैं। वहीं भारत जोड़ो यात्रा अभी भाजपा विरोधी बुद्धिजीवी, कम्यूनिस्ट और जेएनयू के टुकड़े-टुकड़े गैंग से प्रभावित दिखाई पड़ रही है।

कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा में नफरत की बात को किसी भी ढंग से प्रचारित कर कोई राजनीतिक लाभ प्राप्त कर सकेगी इसमें संशय है। कांग्रेस के सामने दूसरी बड़ी समस्या यह है कि देश में जितनी तरह की समस्याएं वर्तमान में विद्यमान हैं उनकी बुनियाद और जड़ में कांग्रेस की 50 सालों तक देश की सत्ता में रही सरकारों को ही माना जाता है। कांग्रेस की सरकारों की नीतियों और कार्यक्रमों से जनमानस में जो निराशा और नकारात्मक भाव पैदा हुआ था उसी के परिणाम स्वरूप तो भाजपा की विचारधारा को समर्थन मिला है।

अब कांग्रेस पार्टी अपनी सरकारों की नीतियों और कार्यक्रमों की कमजोरियों को जनता के बीच में किस प्रकार से दुरुस्त कर सकेगी? कांग्रेस केवल इस आधार पर विश्वास करके आगे नहीं चल सकती कि बीजेपी से नाराज होने के बाद पब्लिक स्वाभाविक रूप से कांग्रेस का ही समर्थन करेगी। जो भी मुद्दे आज देश में ज्वलंत हैं, चाहे हिंदुत्व का मुद्दा हो, समान नागरिक संहिता का मुद्दा हो, आरक्षण का मुद्दा हो, महंगाई-बेरोजगारी या सरकार की दूसरी नीतियों का मुद्दा हो, सभी मामलों में कांग्रेस की सरकारों में ही नियम प्रक्रिया और कानून बनाए गए थे. उनके कारण आज जो हालात बने हैं उससे कांग्रेस अपने को अलग कर जनता के सामने अपना नया चेहरा कैसे प्रस्तुत करेगी? यह भारत जोड़ो यात्रा से संभव नहीं हो सकेगा। इन विषयों पर स्पष्ट विचारों और समाधान के साथ कांग्रेस को सशक्त रूप से पब्लिक के बीच आना होगा। इसके बिना सिर्फ भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस जनाधार बढ़ाने में सफल नहीं हो सकेगी।

जहां तक मध्यप्रदेश में भारत जोड़ो यात्रा की सफलता का सवाल है मध्यप्रदेश में यह यात्रा निश्चित रूप से सफल दिखाई पड़ेगी। मध्यप्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी बराबर जनाधार वाले दल के रूप में देखे जाते हैं. फ्लोटिंग मतों के आधार पर ही चुनाव में अभी तक कांग्रेस और बीजेपी के बीच में निर्णय होता रहा है। अगले चुनाव में भी मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच में भी रहेगा। तीसरे दल के रूप में आम आदमी पार्टी कितनी भूमिका निभा पाएगी इस पर ही मध्य प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य का निर्धारण होगा।

भारत जोड़ो यात्रा के मुख्य समन्वयक दिग्विजय सिंह हैं। उनके गृहराज्य में अभी कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। दिग्विजय सिंह ने भारत जोड़ो यात्रा से अपने को मध्यप्रदेश में दूर करने की कोशिश की है। उन्होंने एक पत्र लिखकर कहा है कि भारत जोड़ो यात्रा के साहित्य में उनका फोटो प्रकाशित नहीं किया जाए। कमलनाथ और दिग्विजय सिंह वैसे तो घनिष्ठ मित्र माने जाते हैं लेकिन राजनीतिक रूप से उनके रिश्तों में समय-समय पर खट्टे मीठे अनुभव उभरकर आते रहे हैं।

भारत जोड़ो यात्रा मध्यप्रदेश में कांग्रेस के चुनावी अभियान की शुरुआत के रूप में ही देखी जाएगी। राहुल गांधी मध्यप्रदेश में पार्टी को प्रेरणा देने का काम कर सकते हैं यद्यपि प्रदेश में कमलनाथ ही कांग्रेस के आलाकमान के रूप में माने जाते हैं। जिस तरह से अशोक गहलोत राजस्थान में एक छत्र नेता के रूप में अपनी छवि स्थापित की है, उसी तरीके से कमलनाथ मध्यप्रदेश में एकछत्र नेता के रूप में काम कर रहे हैं. उन पर कांग्रेस आलाकमान का प्रभाव ना के बराबर ही देखा जा सकता है।

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा मध्यप्रदेश में बीजेपी के लिए भी चिंता का कारण हो सकती है। ऐसा कहा जा रहा है कि बीजेपी की हाल ही में संपन्न कोर ग्रुप की बैठक में इस यात्रा पर चर्चा की गई थी। कांग्रेस का मुकाबला मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान और ज्योतिरादित्य सिंधिया की जोड़ी के साथ है। अभी तो कांग्रेस बीजेपी को हराने की स्थिति में नहीं दिखाई पड़ती है बल्कि बीजेपी को बीजेपी ही हरा सकती है। राजनीतिक हलकों में ऐसा माना जा रहा है कि अगला चुनाव दोनों के लिए कशमकश भरा होगा। कांग्रेस और बीजेपी दोनों दल 2023 में सरकार बनाने के लिए कोई भी कसर नहीं छोड़ रहे हैं। भाजपा भी चुनाव से पहले यात्राएँ निकालने की तैयारी कर रही है।

(आलेख लेखक के सोशल मीडिया से साभार)





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