
वर्ष 2005 में नगर निगम जबलपुर ने शहर में सीवर लाइन व नाला निर्माण वाटर ड्रेनेज योजना के नाम पर एशियन डेवलपमेंट बैंक से 196 करोड़ का कर्ज लिया था।न तो सीवर लाइन का काम ही अभी तक पूरा हो पाया है और न ही नाला निर्माण ही पूर्ण हो पाया है।
सीवर लाइन प्रोजेक्ट में करीब एक हजार करोड़ रुपए लग चुका है और अभी कम से कम 200 करोड़ और लगना है। एशियन डेवलपमेंट बैंक से लिया गया कर्ज के बदले नगर निगम जबलपुर 18 करोड़ रुपए सालाना ब्याज दे रहा है और यह सिलसिला अगले 15 साल और चलना है।इसी तरह नगर निगम जबलपुर ने 2017 में हुडको बैंक से 96 करोड़ रुपए का ऋण आवास योजना को पूर्ण करने के लिए लिया था। मगर अभी तक एक भी मकान बेच नहीं पाया है।इस 96 करोड़ रुपए कर्ज के बदले हर तिमाही 1.5 करोड़ रुपए ब्याज देना होता है। अर्थात सीधे सीधे साढ़े 24 करोड़ रुपए केवल ब्याज अदायगी में जा रहा है।
इस समय नगर निगम ने सारे भुगतानों पर रोक लगा रखी है और साथ ही वह अपने खर्चों में भी भारी कटौती कर रहा है। तंगी के इस आलम में यह कर्ज़ नगर निगम प्रबंधन को बहुत अखर रहा है।
स्थिति ये है कि प्रदेश शासन खुद इस ब्याज राशि को हर माह मिलने वाली चुंगी क्षतिपूर्ति राशि जिससे नगर निगम का वेतन भुगतान होता है से काटकर देती है। सरकार का कहना है कि राज्य के पास इतना पैसा नहीं है कि विकास कार्य का संचालन कर सकें।
वित्तीय घाटे के नाम पर एशियाई विकास बैंक, विश्व बैंक व अन्य अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं से कर्ज लिए जा रहे हैं और कर्ज़ के साथ तमाम शर्तें लादी जा रही है।
व्यापार का संतुलन तीसरी दुनिया के प्राथमिक उत्पादकों के विरुद्ध करना और सार्वजनिक सेवाओं व इन्फ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में निजी क्षेत्र के मुनाफे को बढ़ावा देना इस बैंक का प्रमुख सरोकार है।
मध्यप्रदेश और एडीबी की पार्टनरशिप 1999 में शुरू हुई थी। आज ऊर्जा, परिवहन, शहरी विकास, कृषि, आजीविका निर्माण, जल प्रबंधन और सिंचाई प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में एडीबी की 6 बिलियन यूएस डालर की मदद है. सड़क निर्माण एवं सुधार में 3 बिलियन यूएस डालर से 23 हजार किमी सड़कों का सुधार हुआ है।
ऊर्जा क्षेत्र में 1.72 बिलियन यूएस डालर, 140 शहरों के विकास में 800 मिलियन डालर का सहयोग मिला। इससे जल आपूर्ति, सीवरेज, स्वच्छता, वर्षा जल निकासी और ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार में मदद मिली है ।इसके अलावा 1 लाख 25 हजार हेक्टेयर में सिंचाई के लिये 375 मिलियन यूएस डालर का सहयोग मिला है।
पिछले पांच सालों में मध्य प्रदेश के कर्ज में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। मार्च 2020 में राज्य पर 2.01 लाख करोड़ रुपये का कर्ज था। मार्च 2024 तक यह आंकड़ा बढ़कर 3.75 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया। अनुमान है कि इस वित्तीय वर्ष के अंत तक यह 4.21 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो जाएगा।मध्यप्रदेश सरकार को हर साल ₹50,000 करोड़ सिर्फ कर्ज के ब्याज चुकाने में खर्च करने पड़ रहे हैं।
अगर ब्याज की राशि बचाया जाता तो इसका इस्तेमाल सड़कों, स्कूलों, अस्पतालों और अन्य विकास कार्यों में हो सकता था. इसी मुद्दे पर उपनेता प्रतिपक्ष हेमंत कटारे ने कहा है कि राज्य में वित्तीय इमरजेंसी जैसे हालात हैं।
भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से जारी आंकड़ों और केंद्र सरकार की ओर से लोकसभा में दिए गए आंकड़ों के मुताबिक देश में सबसे ज्यादा कर्ज तमिलनाडु पर है, जो वित्त वर्ष 2024-25 की समाप्ति तक 8 लाख 34 हजार 543 करोड़ के पार पहुंच जाएगा। दूसरे नंबर पर उत्तर प्रदेश (7,69,245.3 करोड़), तीसरे नंबर पर महाराष्ट्र (7,22,887.3 करोड़), चौथे नंबर पर पश्चिम बंगाल (6,58,426.2 करोड़), पांचवें नंबर पर कर्नाटक (5,97,618.4 करोड़), छठे नंबर पर राजस्थान (5,62,494.9 करोड़), सातवें नबंर पर आंध्र प्रदेश (4,85,490.8 करोड़), आठवें नबंर पर गुजरात (4,67,464.4 करोड़), नौवें नंबर पर केरल (4,29,270.6 करोड़), दसवें नंबर पर (मध्य प्रदेश 4,18,056 करोड़), ग्यारहवें नंबर पर तेलंगाना (3,89,672.5 करोड़) और 12वें नंबर पर बिहार (3,19,618.3 करोड़) शामिल है।
सरकार का कहना है कि ये कर्ज पूरी तरह पूंजीगत व्यय, यानी अधोसंरचनात्मक विकास कार्यों पर खर्च किया जा रहा है। वित्तीय अधिकारियों के अनुसार, प्रदेश की वित्तीय स्थिति स्थिर है और राज्य ने कभी भी राजकोषीय उत्तरदायित्व एवं बजट प्रबंधन अधिनियम का उल्लंघन नहीं किया है।
भारतीय रिजर्व बैंक के माध्यम से लिया गया सारा कर्ज विकास कार्यों के लिए उपयोग किया जा रहा है, जो राज्य के दीर्घकालिक विकास के लिए आवश्यक है।जनता के मन में सवाल है कि क्या राज्य सरकार अपने वित्तीय खर्चों में कटौती करेगी या कर्ज का बोझ और बढ़ता रहेगा?