राहतों की 20-20 की बजाय टेस्ट मैच मानसिकता वाले बजट से मिडिल क्लास निराश


आमतौर पर बजट में वित्त मंत्री ट्वेंटी ट्वेंटी क्रिकेट की तरह राहतों और तोहफों के चौके छक्के मारना पसंद करते हैं। लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने शायद टेस्ट मैच की मानसिकता से बजट तैयार किया है, यानी आने वाला कल सुहाना हो सकता है, अभी तो आप दिक्कतों को झेलते रहिए।


अजय बोकिल
अतिथि विचार Published On :
nirmala sitharaman budget 2022

अमूमन बजट को लेकर आम आदमी की सोच यही रहती आई है कि सरकार राहतों के तोहफे देगी या फिर करों के बोझ से दम निकाल देगी। केन्द्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमन के चौथे बजट में ऐसा कुछ भी नहीं है। यह वैसा ही सीधा सपाट बजट है, जैसा कि इसे टैबलेट पर पढ़ते समय वित्त मंत्री के चेहरे का भाव था।

राहत की बात इतनी है कि अगर उन्होंने ज्यादा कुछ दिया नहीं तो ज्यादा लिया भी नहीं। असल में यह बजट अगले 25 सालों की दीर्घकालीन प्लानिंग की एक झलक है, जिसका लक्ष्य आजादी के शताब्दी वर्ष के भावी भारत का निर्माण है। आत्मनिर्भरता और मेक इन इंडिया’ इसके सारथी हैं।

अच्छी बात यह है कि इतने आगे की सोची जा रही है और खराब बात यह है कि आज की तकलीफों को कम करने की खास चिंता बजट में नहीं है। आमतौर पर बजट में वित्त मंत्री ट्वेंटी ट्वेंटी क्रिकेट की तरह राहतों और तोहफों के चौके छक्के मारना पसंद करते हैं। लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने शायद टेस्ट मैच की मानसिकता से बजट तैयार किया है, यानी आने वाला कल सुहाना हो सकता है, अभी तो आप दिक्कतों को झेलते रहिए।

मोटे तौर पर यह बजट न तो राजनीतिक उद्देश्यों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है और न ही सामाजिक क्षेत्र को फोकस कर के। यह शुद्ध रूप से आर्थिक बजट है। जिसका उद्देश्य अर्थव्यवस्था के मूलभूत घटकों यथा अधोसंरचना, डिजीटलाइजेशन, लॉजिस्टिक्स, औद्योगिक तथा ऊर्जा सेक्टर को मजबूत करना है।

यह माना गया है कि लोगों की वर्तमान दिक्कतें जो भी हों, लेकिन दीर्घकाल में अगर बुनियादी क्षेत्रों में निवेश और सुविधाएं बढ़ाई जाएंगी तो रोजगार जैसी सबसे बड़ी समस्या का निदान अपने आप होगा। काफी हद तक यह बात सही भी है। वित्तमंत्री ने अगले 3 सालों में कुल 30 लाख नौ‍करियां सृजित करने का दावा किया है, लेकिन यह कैसे होगा, यह बहुत साफ नहीं है।

उम्मीद जताई जा रही थी कि पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव और साल भर चले किसान आंदोलन को ध्यान में रखते हुए किसानों के हक में कोई बड़ी घोषणा हो सकती है। लेकिन वैसा नहीं हुआ। कुल मिलाकर संदेश यही है कि वित्त मंत्री कोविड महामारी के कारण कमजोर हुई अर्थ व्यवस्था के तेजी से सुधार में और जान फूंकना चाहती हैं।

इसके लिए उन्होंने उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की भी ज्यादा चिंता नहीं की और न ही सरकार से कर राहत की अपेक्षा करने वाले मध्य वर्ग की दिक्कतों पर गौर किया। हालांकि कुछ मामलों, जैसे ज्यादा रोजगार कैसे और कहां उत्पन्न होंगे तथा क्रिप्टोकरेंसी में लगे भारतीयों के अरबों रुपए का क्या होगा, वो वैध होंगे या नहीं, के बारे में वित्त मंत्री ने साफ कुछ नहीं कहा।

इसे ‘प्लानिंग बजट’ कहा जा सकता है। जिसमें आर्थिकी के समक्ष वर्तमान और भावी चुनौतियों का सामना करने के लिए सक्षम व दूरगामी उपाय किए गए हैं। इसमें आर्थिक गतिविधियों को हर तरीके से प्रोत्साहित करना तथा कोविड के कारण तेजी से बढ़ी बेरोजगारी को काबू करने इस साल 60 लाख नौकरियां और अगले 3 साल में और 30 लाख नौकरियां सृजित करने की बात कही गई है। सरकार मान रही है कि कॉरपोरेट क्षेत्र, एमएसएमई तथा स्टार्ट अप ही रोजगार सृजन के मुख्‍य कारक होंगे। सो इन क्षेत्रों को बजट में कुछ राहतें दी गई हैं।

वित्त मंत्री आर्थिक सर्वेक्षण के अनुमान से उत्साहित दिखीं। जब अर्थ व्यवस्था पटरी पर आ रही हो तो उसे और तेज करने के लिए सकारात्मक और दूरदर्शी नीतियों की दरकार होती है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन के बजट में आश्वस्ति का यही भाव था। लिहाजा उनके बजट भाषण में अगले 25 सालों की आर्थिक प्लानिंग का संदेश है। माना जा रहा है कि स्वतंत्रता की सौवीं वर्षगांठ पर देश की आधी से ज्‍यादा आबादी शहरों में निवास करेगी। इसलिए बजट में मेगा सिटीज का उल्लेख है।

छोटे व मझले शहरों पर भी आबादी का दबाव बढ़ेगा। इसके लिए अभी से जरूरी अधोसंरचना और जरूरी बुनियादी सुविधाएं जुटानी होंगी। समावेशी विकास, उत्पादकता में वृद्धि, पूंजी निवेश, ऊर्जा परिवर्तन, जलवायु कार्य योजना पर भी वित्त मंत्री ने पूरा ध्यान‍ दिया है। बजट में पीएम गति शक्ति नामक राष्ट्रीय मास्टर योजना लांच की गई है। इसके तहत देश में निर्बाध कनेक्टिविटी व लॉजिस्टिक दक्षता का प्रावधान है।

किसान आंदोलन के मद्देनजर सरकार किसानों की समस्याएं हल करने की दिशा में सोच रही है। शायद इसीलिए बजट में ‘एक जिला एक उत्पाद’  की तर्ज पर ‘एक स्टेशन एक उत्पाद योजना’ की शुरुआत होगी। रेलवे छोटे किसानों और उद्यमों के लिए कुशल लॉजिस्टिक्स विकसित करेगा। ग्रामीण इलाकों के छोटे किसानों की मदद करने के लिए भारतीय रेलवे एक योजना तैयार करेगा।

बजट भाषण में वित्त मंत्री का मुख्य जोर ई शिक्षा, ई स्वास्थ सेवा, ई बैंकिंग पर दिखा। यह इस बात का संकेत है कि देश में डिजीटल लेन देन तेजी से बढ़ रहा है। इसी को ध्यान में रखते हुए वित्त मंत्री ने देश में पहले डिजीटल विश्वविद्यालय की स्थापना का भी ऐलान किया।

आगामी 25 सालों के मद्देनजर देश में बुनियादी अधोसंरचना को तेज करने के लिए बजट में पीएम गति शक्ति परियोजना का जिक्र एक अहम बिंदु है। यह प्रोजेक्ट 107 लाख करोड़ रुपये का है। जिसके तहत रेल और सड़क सहित 16 मंत्रालयों को एक नए डिजीटल प्लेटफार्म के तहत लाया जाएगा। ताकि‍ विभिन्न परियोजनाओं में पर्याप्त समन्वय हो। इस परियोजना के अंतर्गत अगले तीन सालों में 400 नई वंदे भारत ट्रेनें चलाई जाएंगी व 100 पीएम गति शक्ति कॉर्गो टर्मिनल भी तैयार किए जाएंगे।

इसके अलावा पूरे देश में समानों और लॉजिस्टिक की आवाजाही तेजी से हो सके इसके लिए पीएम गति शक्ति मास्टर प्लान 2022-23 में तैयार किया जाएगा। नेशनल हाईवे के नेटवर्क को कुल 25 हजार किलोमीटर और बढ़ाया जाएगा। अगले साल 8 नए रोप वे पीपीपी मॉडल पर बनेंगे। देश में सप्लाई चेन के नेटवर्क बेहतर बनाने सरकार ‘वन प्रोडक्ट और वन सिस्टम’पर काम करेगी।

हालांकि वित्त मंत्री किसानों की एक प्रमुख मांग एमएसपी गारंटी कानून बनाने की मांग पर कुछ नहीं कहा, लेकिन इस साल किसानों को रबी व खरीफ में गेहूं व धान के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य के रूप में 2.37 लाख करोड़ रुपये के भुगतान का उल्लेख किया। साथ ही किसानों को उनकी उपज का दाम सीधे उनके खाते में जमा करने का भी ऐलान किया। इससे आढ़तिया प्रथा बंद होगी। बजट में वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने की बात तो कही गई है, लेकिन महंगाई की मार से परेशान आम आदमी को राहत देने की कोई बात नहीं है।

इस बार बजट में सहकारी समितियों को छोड़कर बाकी किसी क्षेत्र को खास कर राहतें वित्तमंत्री ने नहीं दी हैं। इस दृष्टि से सर्वाधिक निराशा मध्यम व वेतन भोगी वर्ग को हुई है, जिसे आयकर में राहत और स्टैंडर्ड डिडक्शन में छूट बढ़ने की उम्मीद थी। दरअसल सरकारी, अदर्ध सरकारी वेतनभोगी वर्ग पर अब दोहरी मार पड़ेगी।

राष्ट्रीय पेंशन योजना के तहत अब केन्द्र व राज्य के सरकारी कर्मचारियों का योगदान बढ़ाकर 14 फीसदी कर दिया गया है। इससे ‘टेक होम सेलेरी’ घटेगी तो दूसरी तरफ इनकम टैक्स में कोई राहत नहीं मिलेगी। अर्थात उसकी खर्च करने की क्षमता कम होगी। जब‍कि आज अर्थव्यवस्था को तेज करने ज्यादा खर्च की जरूरत है।

कुल मिलाकर वित्त मंत्री ने तुष्टिकरण के बजाय आर्थिक विकास के मुख्य कारकों को त्वरण देने पर ज्यादा जोर दिया है। यह मानकर कि अर्थ व्यवस्था मजबूत होगी तो देश में चहुमुंखी विकास होगा। कर राजस्व बढ़ेगा तो पूंजी निवेश भी बढ़ेगा। पूंजी निवेश बढ़ेगा तो रोजगार के अवसर स्वत: पैदा होंगे। प्रतिस्पर्द्धा बढ़ेगी तो गुणवत्ता भी बढ़ेगी। यही इस बजट का निहितार्थ है।

(आलेख वेबसाइट मध्यमत.कॉम से साभार)





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