पहचान और क्षेत्रीयता के झगड़ों के बीच दुनिया के लिए अपना मध्य प्रदेश सबक क्यों है?


क्या यह मान लिया जाय कि मध्यप्रदेश सिर्फ एक प्रशासनिक इकाई है किसी क्षेत्रीयता के बोध के बिना? पर यह तो वही बात है जो जवाहरलाल नेहरू चाहते थे! फिर तो हम ही सचमुच के राज्य हुए। एक आदर्श राज्य! और हम मध्यप्रदेशी होने से पहले एक सच्चे भारतीय! इसलिए मध्यप्रदेश में पहचान को लेकर कभी कोई झगड़ा नहीं होगा।


संजय वर्मा
अतिथि विचार Published On :

आज मध्य प्रदेश का स्थापना दिवस है!

मध्यप्रदेशियों को बधाई!

मध्यप्रदेशी होना इस तरह अजीब है कि वह हम लोगों के भीतर वैसी कोई भावना नहीं जगाता जैसे गुजराती होना, उड़िया, तमिल या बिहारी होना। मध्यप्रदेश भारत का अकेला ऐसा राज्य है जिसके पास कोई प्रखर क्षेत्रीय बोध नहीं है। न अपनी पहचान से जुड़ा गुजरातियों जैसा गौरव और न ही कोई शर्म! हमारे पास कोई एक भाषा या संस्कृति भी नहीं है जो हमारी पहचान बने। अपनी पहचान का कोई ठोस धरातल न होना मुझे मध्यप्रदेश दिवस पर अजीब लग रहा है!

1956 में जब राज्यों का पुनर्गठन हो रहा था, तब जवाहरलाल नेहरू चाहते थे कि राज्य एक प्रशासनिक इकाई भर रहें। वैसे ही जैसे तहसील, जिला या संभाग होते हैं, जिनके साथ उस किस्म का भावनात्मक जुड़ाव नहीं होता जैसा देश के साथ होता है। पर हुआ उल्टा! राज्यों का गठन भाषा के आधार पर हुआ। भाषा को आधार बनाने से राज्य सिर्फ प्रशासनिक इकाई नहीं रहे बल्कि एक सांस्कृतिक इकाई बन गए। इसके अपने फायदे नुकसान हुए।

राज्यों का इस तरह बनाए जाना फायदेमंद रहा कि इस ढीले-ढाले संघ के रूप में भारत आजादी के इतने वर्षों तक एक साथ रह सका। राज्यों की स्वायत्तता और उनकी भाषा-संस्कृति को सम्मान देकर हमने क्षेत्रीय महत्वाकांक्षाओं की आंशिक रूप से पूर्ति कर दी। यह महत्वाकांक्षा पूरी न होती तो कुंठा बनकर अलगाव के रास्ते पर चल सकती थी। असम में अगप की सरकार या तमिलनाडु में द्रविड़ पहचान की राजनीति, क्षेत्रीय नेताओं को अपने राज्य के मालिक होने का एहसास कराती रही। दिल्ली को उन्होंने बड़ी आजादी के साथ पैकेज में मिली एक छोटी सी असुविधा मानकर स्वीकार कर लिया।

राज्य बनाने वालों ने सोचा होगा धीरे-धीरे इलाकाई पहचान की नदी भारतीय पहचान के समुद्र में विलीन हो जाएगी पर ऐसा अब तक न हो सका। असम वाले कहते हैं साबित करो कि आप असमी हो। मुंबई मराठी मानुस का है, और वहां से बिहार-यूपी वालों को खदेड़ने की कवायद जब तब होती रहती है। राज्यों के आपसी झगड़े डराने वाले हैं। झगड़े याद दिलाते हैं कि भारतीय होना काफी नहीं।

पहचान के ये झगड़े आगे बढ़े, तो हमारी पहचान कैसे साबित होगी? हम किसको मध्यप्रदेशी मानेंगे, किसको नहीं ?

क्या हमारी कोई पहचान नहीं हो सकती? क्या हमारा मध्यप्रदेश भारत के नक्शे पर दूसरे प्रदेश बनाने के बाद बची-खुची जगह है जिसके भीतर मालवा, निमाड़, बुंदेलखंड, विंध्य जैसी क्षेत्रीयताओं को  अटपटे ढंग से जोड़ दिया गया है, क्योंकि यह इलाके न तो इतने बड़े थे कि अपने लिए एक राज्य मांग सकते और न ही कोई एक भाषा या संस्कृति इन्हें आपस में जोड़ सकी (छत्तीसगढ़ था, सो अलग हो गया)।

तब क्या यह मान लिया जाय कि मध्यप्रदेश सिर्फ एक प्रशासनिक इकाई है किसी क्षेत्रीयता के बोध के बिना? पर यह तो वही बात है जो जवाहरलाल नेहरू चाहते थे! फिर तो हम ही सचमुच के राज्य हुए। एक आदर्श राज्य! और हम मध्यप्रदेशी होने से पहले एक सच्चे भारतीय! इसलिए मध्यप्रदेश में पहचान को लेकर कभी कोई झगड़ा नहीं होगा। सब भारतीयों का स्वागत है !

दुनिया मध्यप्रदेश से सीख सकती है कि तहसील, जिले, संभाग की तरह राज्य बस एक प्रशासनिक इकाई है, इसे लेकर इतना भावुक होने की ज़रूरत नहीं है।

फिर राज्य ही क्यों. कई विद्वान मानते हैं कि नेशन स्टेट यानि राष्ट्र-राज्य भी एक प्रशासनिक इकाई है। मनुष्यता की राह में आज नहीं तो कल सारी दुनिया यह बात समझेगी, मानेगी। एक दिन सारा विश्व एक सूत्र में बंधेगा और दुनिया के सारे राष्ट्र प्रशासनिक इकाईयां बन जाएंगे। फिर राष्ट्र को लेकर भी दुनिया को इतना भावुक होने की क्या जरूरत है? इतना खून-खराबा किसलिए?

उस दिन हम मध्यप्रदेशी गर्व से कहेंगे हम तो यह पहले ही जानते थे।





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