आज भी उपेक्षित है बुंदेलखंड का जलियांवाला बाग चरण पादुका


स्थानीय लोगों द्वारा यह भी बताया जाता है कि इस नरसंहार में कई पशु पक्षी भी मारे गए थे जिससे इस नरसंहार में के कारण उर्मिल नदी का पानी पूरी तरह से खून से लाल हो गया था।



जिले के लवकुशनगर अनुभाग में सिंहपुर में उर्मिल नदी के किनारे एक इतिहास लिखा गया था। साल 1931 में मकर संक्रांति के दिन जब गांधीवादी शांतिपूर्ण सभा कर रहे थे तभी पंजाब के जलियांवाला बाग की तर्ज़ पर पॉलिटिकल एजेंट फिशर ने घेराबंदी करके सीधे गोलियां चलवा दीं। उर्मिल का नीला पानी खून से लाल हो गया और धरती रक्तरंजित हो गई लेकिन यह भूमि यहां के लोगों के लिए पुण्य भूमि हो गई।

सरकारी आंकड़ों की मानें तो इस गोलीकांड में सिर्फ छह लोग मारे गए थे लेकिन यहाँ के रहवासी और शहीदों के परिजन बताते हैं कि सैकड़ों लोग गोलियों का शिकार हो गए थे तो कई महिलाएं व बच्चे जान बचाते हुए नदी की धार में बह गए थे।

यह है इतिहास

छतरपुर जिले के सिंहपुर ग्राम अंतर्गत उर्मिल नदी के किनारे स्थित चरण पादुका स्थल को बुंदेलखंड के जलियांवाला बाग के नाम से भी जाना जाता है। जानकारी के मुताबिक ग्राम टहनगा निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी पंडित राम सहाय तिवारी की गिरफ्तारी एवं अंग्रेजी हुकूमत द्वारा जनता पर लगाए गए विभिन्न करों के विरुद्ध 14 जनवरी सन 1931 को यहां एक विशाल सभा का आयोजन किया गया था।

उक्त सभा का नेतृत्व ग्राम गिलौहा निवासी सरजू प्रसाद दउआ द्वारा किया जा रहा था। इस आमसभा की भनक नौगांव पॉलीटिकल एजेंट कर्नल फिशर को लग गई फिशर कोल भील पल्टन को लेकर सभा को विफल करने के लिए उर्मिल नदी के तट पर लगे वृक्षों पर गन मशीन फिट करा दी थी तथा चारों तरफ नाकेबंदी करा दी थी।

जिससे जनता चरण पादुका स्थल पर ना पहुंचा जा सके। परंतु मकर संक्रांति का पर्व होने पर नहाने एवं मेला देखने आई जनता इस स्थल पर हजारों की तादाद में पहुंच गई थी सभा का सभापति सरजू प्रसाद दउआ को बनाया गया और संचालन लल्लू राम शर्मा कर रहे थे।

सभा में जब अंग्रेज़ी सरकार द्वारा थोपे गए करों के विरोध में संबोधन चल रहा था तभी किसी ने गोली चला दी जो अंग्रेज अफसर को लगी वह घायल हो गया।

अंग्रेज फौज के अधिकारियों ने गन मशीन चलाने का आदेश दे दिया जिससे वहां सभा देख रहे लोगों को गोलियां लगी गोली लगने से और भगदड़ में नदी में कुछ लोग गिर गए और कुछ लोग सभा में ही शहीद हो गए गोली लगने से सैकड़ों शहीद हो गए तथा हजारों की संख्या में घायल हो गए।

स्थानीय लोगों द्वारा यह भी बताया जाता है कि इस नरसंहार में कई पशु पक्षी भी मारे गए थे जिससे इस नरसंहार में के कारण उर्मिल नदी का पानी पूरी तरह से खून से लाल हो गया था । अंग्रेजी हुकूमत ने केवल 6 लोगो को ही शहीद बताया। इस गाँव के ग्रामीण बताते है कि इस नरसंहार में मारे गए सैकड़ों लोगो की लाश को उर्मिल नदी में दफन कर दिया गया था।

सरकारी आंकड़ों में मात्र छह शहीद बताए गएः 

अंग्रेजी हुकूमत ने जिन लोगों को इस सभा में शहीद होना बताया था उनमें सेठ सुंदरलाल , धर्मदास कुर्मी, चिरकू मातो, हल्के कुर्मी, रामकृपाल कुर्मी और रघुराज सिंह हैं।

इन अमर शहीदों की याद में हर वर्ष 14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन एक मेले का आयोजन किया जाता है एवं हर वर्ष स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उत्तराधिकारी संगठन की जिला इकाई द्वारा शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती है।

विकास की बाट जोह रहा सिंहपुरः 

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उत्तराधिकारी संगठन व अन्य सामाजिक कार्यकर्ता हर वर्ष यहां श्रद्धांजलि सभा का आयोजन करते हैं और हर वर्ष अतिथियों में दो चार विधायक या जनप्रतिनिधियों को आमंत्रित किया जाता है।

शहीदों के मंच से कई बार इस स्थल पर विकास कार्य करवाने के माननीयों के झूठे वादे आज भी उन्हें चिढ़ाते से नज़र आते हैं लेकिन उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता।पिछले कई आयोजनों में मंत्रियों से लेकर विधायक व प्रशासनिक अधिकारी यहाँ आते हैं और शहीदों को श्रद्धांजलि देकर बड़ी-बड़ी बातें करने के बाद साल भर के लोए ख़ामोशी अख्तियार कर लेते हैं।

इन सबसे आहत प्रेमनारायण मिश्रा कहते हैं कि हर बार शहीदों के इस स्थल के विकास की मांग हम लोग करते हैं और अतिथिगण मंच पर बड़ी बड़ी बातें करके निकल जाते हैं। आज के आयोजन में चंदला विधायक राजेश प्रजापति मौजूद थे। जिन्होंने इस जगह का विकास करने की बात कही है देखना यह होगा कि माननीय अपनी बात कब तक याद रखते हैं। आयोजन में रेंज डीआईजी विवेकराज सिंह ने शहीदों को श्रद्धासुमन अर्पित किए।





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