क्या अतीक के लिए इतनी सज़ा काफी है?


क्या अतीक के साथ यूपी में जंगलराज को भी उम्रकैद की सज़ा होगी? इस सवाल का जवाब मिलना अभी बाकी है।


atiq ahmad gangster verdict

तारीख 28 मार्च 2023, अतीक अहमद को प्रयागराज के एमपी-एमएलए कोर्ट से उम्रकैद की सजा। इस घटना को हिंदी मीडिया ने देश में हो रही किसी भी राजनीतिक उथल-पुथल से ज़्यादा कवरेज़ दी। नहीं भूलना चाहिए कि सूरत की एक कोर्ट के आदेश के बाद राहुल गांधी की संसद सदस्यता को रद्द किए जाने का मामला तूल पकड़ा हुआ है। संसद से लेकर सड़क तक इसका विरोध हो रहा है और इस मामले में पूरा विपक्ष कांग्रेस के साथ सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है।

इतनी बड़ी राजनीतिक खबर की जगह देश के लगभग सभी चैनलों पर 28 मार्च की सुबह से ही अतीक अहमद छाया रहा। लगा जैसे पूरा देश अतीक की सजा का इंतज़ार कर रहा हो। पिछले 44 साल से आतंक का पर्याय बन चुके अतीक अहमद को पहली बार किसी मामले में दोषी करार दिया गया है। यह बात सुनने में अजीब लग सकती है लेकिन, यही सच है।

कैसे एक तांगेवाले का बेटा बना डॉन –

एक तांगवाले के बेटे से आतंक का पर्याय बना अतीक क्यों आज तक किसी मामले में दोषी साबित नहीं किया जा सका? इसका जवाब एक ऐसी सच्ची कहानी है जिसके आगे ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ या ‘मिर्जापुर’ जैसी फिल्में और वेब सीरीज भी फीकी पड़ जाएं।

यूपी में अपराध और राजनीति के इस गठजोड़ की शुरुआत 44 साल पहले होती है। अतीक अहमद के पिता इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में तांगा चलाया ​करते थे। उनकी पांच संतानें थीं। दो बेटे और तीन बेटियां। तांगेवाले का बेटा अतीक 10वीं की परीक्षा में फेल हो जाता है। तब उसकी उम्र महज 17 साल थी।

इसी साल 1979 में उस पर हत्या का आरोप लगता है। हत्या आरोपी यह युवा ठीक 12 साल बाद 1991 में इलाहाबाद पश्चिमी से विधानसभा का चुनाव लड़ता है और माननीय यानी, विधायक बना जाता है। इस दौरान उस पर इलाहाबाद के सबसे बड़े गुंडे या डॉन चांद बाबा की दिनदहाड़े हत्या का आरोप लगता है।

यहां से अतीक का राजनीतिक सफर शुरू होता है। 1991 से लेकर 2004 तक वह लगातार पांच बार (1991, 93, 96, 98, 2002) विधायक रहता है और 2004 में वह सांसद निर्वाचित होता है। अतीक जिस संसदीय क्षेत्र से सांसद बनता है उसकी एक अलग कहानी है।

अतीक ने दो प्रधानमंत्रियों वाली सीट पर किया कब्जा –

अतीक अहमद जहां (फूलपुर) से सांसद बनता है वहां के पहले सांसद पंडित जवाहर लाल नेहरू थे। वह 1952, 1957 और 1962 में फूलपुर से सांसद चुने गए और देश के पहले प्रधानमंत्री बने। पंडित नेहरू की मृत्यु के बाद 1964 के उप-चुनाव में उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित फूलपुर की सांसद बनीं।

नेहरू परिवार के बाद समाजवादी नेता जनेश्वर मिश्र, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह और कमला बहुगुणा (हेमवती नंदन बहुगुणा की पत्नी) भी फूलपुर सीट से ही सांसद थीं। देश को दो प्रधानमंत्री देने वाली इसी फूलपुर सीट से 2004 में अतीक अहमद ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर सांसदी का चुनाव लड़ा और जीता भी।

अतीक के सांसद बनने के बाद इलाहाबाद पश्चिमी विधानसभा सीट पर उप-चुनाव होता है। अतीक अपने भाई खालिद अजीम उर्फ़ अशरफ को चुनाव लड़वाता है। इस चुनाव में पहली बार अतीक के रसूख को टक्कर मिलती है। शहर पश्चिमी का एक युवा राजू पाल, अशरफ के खिलाफ चुनाव लड़ता है और जीतता भी है।

विधायक को मिली भाई से भिड़ने की सज़ा –

अक्टूबर 2004 में विधायक बनने के तीन महीने के अंदर इलाहाबाद में ही सरेआम राजू पाल की हत्या (25 जनवरी 2005) हो जाती है। विधायक राजू पाल पर बीच सड़क पर गोलियों और बमों से हमला होता है।

हमले के बाद जब राजू पाल को टैंपो में अस्पताल ले जाने की कोशिश होती है। उस दौरान हमलावरों को पता चलता है कि राजू पाल की सांसें अभी भी चल रही हैं। हमलावार वापस आते हैं और टैंपो से निकाल कर उस पर दोबारा गोलियां दागते हैं और फरार हो जाते हैं। अस्पताल पहुंचने से पहले ही विधायक राजू पाल दम तोड़ देता है। उसे 19 गोलियां मारी जाती हैं।

हत्या आरोपी भाई बने सांसद और विधायक –

हत्या से ठीक नौ दिन पहले राजू पाल की शादी हुई थी। नौ दिन में ही विधवा हो गईं पूजा पाल अपने पति राजू पाल की सीट से उप-चुनाव लड़ती हैं। चुनाव प्रचार के दौरान वह अपने दोनों हाथ में लगी मेंहदी दिखाकर इंसाफ की मांग करती हैं।

अतीक और उसके भाई के रसूख का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उप-चुनाव में पूजा पाल हार जाती हैं और अतीक का भाई अशरफ विधायक बन जाता है। इस तरह एक विधायक की हत्या में आरोपी दोनों भाई अतीक और अशरफ विधायक और सांसद बन जाते हैं।

अतीक के इलाके से चुनाव लड़ने से डरने लगे लोग –

इस दौरान इन दोनों भाइयों पर हत्या, अपहरण, फिरौती, रंगदारी जैसे संगीन अपराधों में 200 से ज़्यादा मुकदमे दर्ज होते हैं, लेकिन आतंक का उनका साम्राज्य फैलता ही जाता है। प्रयागराज सहित पूरे पूर्वांचल में रीयल स्टेट से लेकर रेल और सरकारी ठेकों पर इनका कब्जा हो जाता है। कहा तो यह भी जाता है कि अतीक का आतंक इस कदर था कि इलाहाबाद पश्चिमी से किसी भी पार्टी का कोई उम्मीदवार चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं करता था।

अस्सी के दशक से शुरू हुआ अतीक के आतंक का राज चार दशक तक निष्कंटक जारी रहता है। इस दौरान अतीक और उसके परिवार को समाजवादी पार्टी, अपना दल, बहुजन समाज पार्टी के द्वारा मेयर से लेकर विधायक और सांसद तक का टिकट दिया जाता है।

जेल में रहते हुए दहलाया प्रयागराज –

अतीक पर 2018 में देवरिया जेल में रहते हुए लखनऊ के एक व्यापारी का अपहरण करवाने का आरोप लगता है। फिरौती के लिए व्यापारी को जेल में ही बुरी तरह पीटा जाता है और उसकी करोड़ों की जमीन पर कब्जा करने की कोशिश की जाती है। व्यापारी की शिकायत पर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले का संज्ञान लिया और 2019 में अतीक को देवरिया जेल से गुजरात की साबरमी जेल में शिफ्ट करने का आदेश दिया।

अतीक के साबरमी जेल जाने के बाद से प्रयागराज शांत था लेकिन, अचानक 24 फरवरी 2023 की शाम करीब पांच बजे गोलियों और बमों के धमाकों से प्रयागराज दहल जाता है। शहर के राजरूपपुर इलाके में राजू पाल स्टाइल में ही उसके एक रिश्तेदार की हत्या कर दी जाती है। इस घटना में उमेश पाल (वकील) सहित दो पुलिस वालों को दौड़ा-दौड़ा कर गोलियों और बमों से छलनी कर दिया जाता है।

अतीक के बेटे ने दहलाया प्रयागराज –

उमेश पाल ने अतीक अहमद सहित उसके गूर्गों पर अपहरण का मामला दर्ज कराया था। साथ ही, वह विधायक राजू पाल हत्याकांड का मुख्य गवाह था। इस हत्याकांड ने प्रयागराज सहित पूरे प्रदेश को दहला कर रख दिया। लोग यह सोचने पर मजबूर हो गए कि क्या गुजरात की जेल में रह कर भी अतीक वह सब कुछ करवा सकता है जो वह प्रयागराज में रह कर किया करता था? चारों ओर बस यही सवाल गूंजने लगा कि क्या यूपी कभी गुंडों और माफियाओं से मुक्त नहीं हो पाएगा?

उमेश पाल हत्याकांड ने यूपी की वर्तमान सरकार और सीएम योगी आदित्यनाथ के कानून के राज के दावे पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया। एक महीने से ज्यादा का वक्त बीत जाने के बाद भी इस हत्याकांड में शामिल और सीसीटीवी में कैद पांच आरोपी फरार हैं। इनमें अतीक का बेटा असद भी शामिल है जिस पर पांच लाख का इनाम घोषित है।

डरावनी है अतीक के परिवार की कुंडली –

अतीक के पांच बेटे हैं जिनमें से दो गंभीर आरोपों में जेल में बंद हैं। अतीक की पत्नी और उसका तीसरा बेटा असद 24 फरवरी को हुए उमेश पाल हत्याकांड का नामजद आरोपी है और ये दोनों फरार हैं। अतीक की पत्नी पर 50 हजार का इनाम घोषित है। अतीक का भाई अशरफ रायबरेली की जेल में बंद है और अतीक के दो नाबालिग बेटे प्रयागराज के बाल संरक्षण गृह में रखे गए हैं।

ऐसे में जब 26 मार्च को गुजरात की साबरमती जेल के बाहर प्रयागराज पुलिस के वज्र वाहन पहुंचते हैं, तो पूरे देश की मीडिया उन्हें घेर लेती है। चारों ओर एक ही सवाल गुंजने लगता है कि क्या अतीक की गाड़ी पलटेगी? क्या अतीक का एनकाउंटर होगा?

अब उस दिन का है इंतज़ार –

तमाम आशंकाओं के बीच 27 मार्च की शाम अतीक सुरक्षित प्रयागराज पहुंच जाता है। अगले दिन 28 मार्च को उमेश पाल अपहरण केस के आरोपी अतीक, अशरफ सहित दस आरोपियों को एमपी-एमएलए कोर्ट में पेश किया जाता है।

पिछले 44 साल से आतंक का पर्याय रहे अतीक अहमद सहित तीन आरोपियों को उम्र कैद की सजा सुनाई जाती है। सैकड़ों अपराधों में आरोपी अतीक अहमद को पहली बार किसी मामले में सजा मिली है। यह फैसला यूपी की कानून व्यवस्था, पुलिस और जांच एजेंसियों की कार्यप्रणाली, राजनीति के अपराधीकरण और न्यायिक प्रणाली के बारे में बहुत कुछ कहता है।

क्या अतीक के साथ यूपी में जंगलराज को भी उम्रकैद की सज़ा होगी? इस सवाल का जवाब मिलना अभी बाकी है। यूपी की जनता को अभी भी राजू पाल और उमेश पाल हत्याकांड में शामिल आरोपियों के पकड़े जाने और उसके असली साजिशकर्ताओं की सज़ा का इंतज़ार है।





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