सरयूसुत मिश्रा
राजनीति में बढ़ता हुआ जहर कर्नाटक चुनाव में जहरीले सांप और विषकन्या तक पहुंच गया है. चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में विषैले हो रहे प्रचार अभियान को देखकर ऐसा लगता है कि चुनाव पृथ्वीलोक नहीं बल्कि नागलोक के लिए हो रहे हैं.
नागनाथ और सांपनाथ चुनावी मैदान में हैं. जनता जो चाहे चुने अंततः उसे कल्याणकारी शासन नहीं बल्कि विषकन्या और जहरीले सांप का साम्राज्य मिलेगा. चुनावी अभियान के अंतिम चरण में आते आते जनता के मुद्दे गायब हो जाते हैं. महंगाई, बेरोजगारी, कानून व्यवस्था जैसे जनहित से जुड़े मुद्दे चर्चा से बिल्कुल नदारद दिखाई पड़ते हैं. चर्चा में केवल मौत के सौदागर, कब्र खुदेगी, नीच व्यक्ति और ऐसे ही न जाने ऊल जलूल वक्तव्य जनादेश के निर्णायक आधार बन जाते हैं.
लोकतंत्र का महोत्सव विष उत्सव के रूप में परिवर्तित हो जाता है. सत्ता के स्वार्थ का दमित जहर अवचेतन मन में इतना हावी रहता है कि चाहे-अनचाहे विष और विषकन्या का विचार निकल ही आता है. साम्राज्य, शासक और शासन व्यवस्था में जहर और विषकन्या का टूलकिट भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
वैदिक साहित्य, लोक कथाओं और इतिहास में राजनीतिक शत्रुओं को परास्त करने के लिए इस तरह के हथियार उपयोग में आते रहे हैं. भले ही आज चाणक्य नहीं हो, मौर्य साम्राज्य के शासक चंद्रगुप्त मौर्य नहीं हो लेकिन शासन व्यवस्था और उसे हासिल करने के साथ ही संचालन में उपयोग आने वाली शैलियाँ आज भी कमोबेश वैसी ही उपयोग में आ रही हैं. जहरीले सांप और विषकन्या की बातें आधुनिक तरीके से एक दूसरे को मात देकर साम्राज्य हासिल करने का ही प्रयास है.
कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेता और अब राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जहरीला सांप कहकर इस विवाद की शुरुआत की है. जब विवाद बढ़ा तो उन्होंने यह कहकर बचने की कोशिश की कि जहरीला सांप मोदी को नहीं बल्कि बीजेपी की विचारधारा को कहा है. सियासत में मुंह से निकली बात फिर बदली नहीं जा सकती.
बीजेपी के एक विधायक बासन गौड़ा ने इस बयान की प्रतिक्रिया में सोनिया गांधी को विषकन्या कह दिया. इन दोनों शाब्दिक बातों का व्यक्तिगत रूप से कोई मतलब नहीं है लेकिन अगर इनके भावात्मक अर्थों को लोकतंत्र के नजरिए से देखा जाए तो जरूर ऐसा कहा जा सकता है कि दशकों से राजनेताओं में सत्ता के स्वार्थ का दमित जहर अब लोकतंत्र की जान लेने तक पहुंच गया है.
इतिहास के अनुसार विषकन्या उस स्त्री को कहा जाता है जिसे बचपन से ही थोड़ा-थोड़ा विष देकर जहरीला बनाया जाता है. इन्हें विषैले वृक्ष और जीव-जंतुओं के बीच रहने का अभ्यस्त बनाया जाता है. इन्हें सभी प्रकार की छल विद्या में माहिर बनाया जाता है. राजाओं द्वारा इनका इस्तेमाल करके शत्रु राजा को छलपूर्वक मृत्यु के घाट उतारने में उपयोग किया जाता है. जहरीला सांप तो प्राकृतिक जीव है लेकिन विषकन्या को इसके लिए तैयार किया जाता है. जहरीला सांप दिखाई पड़ता है लेकिन विषकन्या स्त्री के रूप में विष का उपयोग करती है.
आचार्य कौटिल्य चाणक्य द्वारा रचित शास्त्र में ऐसी अनेक ऐतिहासिक संदर्भ दिए गए हैं जहां साम्राज्य के लिए राजा को मारने के लिए ऐसे विष और विषकन्या के षड्यंत्र बताए गए हैं. लोकतंत्र की आज की राजनीति में भी इस तरह के षड्यंत्र निश्चित रूप से होते रहते हैं, जो समय-समय पर सामने भी आते हैं. कांग्रेस के लिए जहरीला सांप खतरनाक है तो बीजेपी के लिए विषकन्या जानलेवा लगती है.
कोई भी शासन व्यवस्था जनकल्याण के लिए निर्मित होती है. साम्राज्य लोकतंत्र के आधार पर शासन प्रणाली पर चलता है तो चुनाव के जरिए इसका निर्धारण होता है. चुनाव के समय सभी स्टेकहोल्डर अपने वायदे अपनी नीतियों और अपनी विचारधारा को जनता के सामने रखते हैं. जनादेश जिसके पक्ष में जाता है उसे शासन का साम्राज्य मिलता है. शासन में पॉवर और करप्शन का कॉकटेल इतना लाभकारी दिखने लगा है कि अब पॉवर पाने के लिए राजनीतिक सभ्यता की सीमाएं टूटने लगी हैं. एक दूसरे राजनेताओं को गाली गलौज की सीमा तक जाकर अपशब्द और अनावश्यक बातें कहने की प्रवृत्ति हर चुनाव में नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है.
कई बार तो ऐसा लगने लगता है यह सारी स्क्रिप्ट दलीय अवधारणा से ऊपर राजनेताओं द्वारा ही लिखी जाती हैं क्योंकि चुनाव के समय जनता विद्रोही मानसिकता में नेताओं के साथ दुर्व्यवहार न करने लगे इसलिए चर्चा में ऐसे मुद्दे उठा दिए जाते हैं जिन पर जनता भ्रमित हो जरुरी मुद्दों से किनारा कर जाए.
हर बार कांग्रेस की ओर से ऐसे अवसर बीजेपी को दिए जाते हैं. जिसको जन-मन में मुद्दा बनाया जा सके. नरेंद्र मोदी कांग्रेस के अवचेतन मन में क्या इतना घाव कर गए हैं कि अनचाहे में भी उनको लेकर कोई न कोई ऐसी बात निकल जाती है जिससे कई बार तो पास आती सत्ता भी हाथ से फिसल जाती है.बीजेपी हमेशा यह चाहती है कि चुनाव में मुख्य मुद्दा मोदी वर्सेस अन्य हो. जब भी ऐसा होता है तब बीजेपी को इससे लाभ होता है. मल्लिकार्जुन खड़गे के बयान के बाद कर्नाटक में मोदी वर्सेस कांग्रेस चुनाव केंद्रित हो गया है.
सियासत में आ रही गिरावट भयावह भविष्य का संकेत कर रही है. राजनीति का संत्रास भोगते-भोगते जनता अब उबने सी लगी है. राजनीति का पतन समाज को भी प्रभावित कर रहा है. चुनाव के समय राजनीति द्वारा जब ऐसे लोक का दर्शन कराया जाएगा जहां कुत्ते, बिल्ली जहरीले सांप, विषकन्या, राजनीतिक हथियार के रूप में उपयोग होंगे तब इससे जो साम्राज्य निर्मित होगा उसमें सांप-सपेरे, सपोले और उनके द्वारा छोड़ी गई केंचुली ही दिखाई पड़ेगी.
राजनीति आम लोगों के लिए सर्पदंश से कम कष्टकारी नहीं साबित हो रही है. आज पूरी राजनीति विषकन्या बनती जा रही है. राजनीति की चालबाजियां भले ही पसंद नहीं हो लेकिन पब्लिक की पसंदगी का सवाल ही कहां है? राजनेताओं को संभलने का वक्त है. यह सोचने की जरूरत है कि आज राजनीति के नाम पर कड़वाहट क्यों मुंह में घुल जाती है? अंधे और लंगड़े भविष्य को देखकर राजनीति से डर लगने लगा है. राजनीति की केंचुली भी असली नहीं दिखाई पड़ती है.
(आलेख लेखक की सोशल मीडिया पोस्ट से साभार)