लिव-इन पार्टनर श्रद्धा की हत्या और उसके 35 टुकड़े के निहितार्थ


ऐसे अपराधों की रोकथाम पुलिस कर ही नहीं सकती। कानून भी इस मामले में असहाय है। अदालतें पहले से ही इस तरह के अपराधों को लेकर बहुत संवेदनशील नहीं रह गई है।


राकेश अचल
अतिथि विचार Published On :
aftaab shradha

दुनिया में कुछ भी महफूज नहीं हैं, न श्रद्धा और न भक्ति। श्रद्धा और भक्ति ऐसे मानवीय गुण हैं जो हर मनुष्य के भीतर होते हैं लेकिन ये दोनों ही अमानुषिकता के सामने बौने पड़ जाते हैं। दिल्ली के श्रद्धा मर्डर केस ने पूरे देश को ही नहीं देश से बाहर बैठे भारतीयों को भी झकझोर दिया है।

मनुष्य से राक्षस बने 28 वर्षीय युवक आफताब ने अपनी लिव-इन पार्टनर श्रद्धा की हत्या की और फिर उसके शव के 35 टुकड़े कर दिए। आरोपी ने शव के टुकड़ों को फ्रिज में रखा था। आफताब हर रात महरौली के जंगल में श्रद्धा की देह के टुकड़े फेंकने जाता था। पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है। उसने पुलिस के सामने कबूल किया कि हां मैंने ही श्रद्धा की हत्या की थी।

मान लीजिए आफताब न पकड़ा जाता तो इस मामले का पता ही नहीं चलता और तब निश्चित रूप से ये मामला नृशंसता से इतर हिंदू-मुसलमान हो जाता। गनीमत है कि ये सब नहीं हुआ, क्योंकि इस घृणित अपराध का कोई धर्म है ही नहीं। देश में हर रोज श्रद्धा, भक्ति और निर्भयाओं की हत्या होती है। भले ही वे लिव इन रिलेशनशिप में हों या न हों। दरअसल रिलेशनशिप एक ऐसी चीज है जिसका कोई आदि, अंत, जाति, मजहब नहीं होता। मुश्किल तब होती है कि जब रिलेशनशिप को समझे बिना उसका कत्ल कर दिया जाता है।

देश के अनेक राज्यों में सरकारों ने हाल ही में लिव इन रिलेशनशिप को लेकर अनेक कानून बनाए हैं। इन्हें लव जिहाद विरोधी कानून बताया गया, किंतु ये कानून भी किसी काम के साबित नहीं हो पाए। विहिप और बजरंग दल भी इस तरह के रिश्तों की ढाल नहीं बन सके।

श्रद्धा के क़त्ल का मामला छह माह पुराना है। यानि पुलिस, श्रद्धा के घरवाले भी श्रद्धा को लेकर कभी गंभीर नहीं थे। आरोपी पुलिस के सामने ज्यादातर अंग्रेजी में ही बात कर रहा है। आफताब और श्रद्धा (26) नाम की युवती की दोस्ती मुंबई में एक कॉल सेंटर में नौकरी के दौरान हुई थी। जिसके बाद दोनों में प्यार हो गया। लड़की के परिजनों ने इस रिश्ते का विरोध किया तो दोनों दिल्ली आ गए। बीते मई के महीने में दोनों ने दिल्ली के महरौली में मकान किराए पर लिया था। आरोपी ने 18 मई को इस हत्याकांड को अंजाम दिया।

मैं बिल्कुल हैरान नहीं हूं कि आरोपी आफताब ने डेक्सटर वेब सीरीज देखकर इस हत्या को अंजाम दिया। वेब सीरीज से उसे बॉडी डिस्पोज करने का आइडिया आया था। आरोप है कि मकान से शव की बदबू न आए इसके लिए आरोपी अगरबत्ती जलाया करता था। आफताब का अगर कोई मजहब होता तो वो अगरबत्ती की जगह लोवान का इस्तेमाल करता।

कई दिनों तक लड़की की खोज-खबर न मिलने पर लड़की के पिता ने गुमशुदगी की शिकायत दर्ज कराई थी। जिसके बाद पुलिस ने जांच की, तो अब जाकर ये मामला खुला है। पुलिस सूत्रों का कहना है कि आरोपी ने कथित तौर पर शादी को लेकर हुई बहस के बाद युवती की गला दबाकर हत्या कर दी थी। हत्या का केस दर्ज कर आरोपी को पुलिस ने पांच दिन की रिमांड पर लिया है।

ऐसे अपराधों की रोकथाम पुलिस कर ही नहीं सकती। कानून भी इस मामले में असहाय है। अदालतें पहले से ही इस तरह के अपराधों को लेकर बहुत संवेदनशील नहीं रह गई है। ऐसे में सिर्फ समाज ही अंतिम उपाय है। दुर्भाग्य ये है कि समाज भी अब पहले सा नहीं रहा। समाज की दृष्टि संकीर्ण है। जब तक समाज नहीं जागता कोई श्रद्धा सुरक्षित नहीं है। कोई भक्ति कभी भी अंधत्व का शिकार हो सकती है। जैसा कि मैंने पहले कहा कि खतरे में श्रद्धा और भक्ति दोनों हैं। इस मामले में सबको मिलकर काम करना चाहिए, अन्यथा श्रद्धा और भक्ति को बचाना कठिन हो जाएगा। मैं श्रद्धा की नृशंस हत्या से बेहद परेशान हूं, क्योंकि इनसान हूं।

(आलेख वेबसाइट मध्यमत.कॉम से साभार)





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