एमपी में चुनाव से पहले रियायतों-घोषणाओं का मायाजाल


मुफ्तखोरी की योजनाओं पर सभी दल एक दूसरे का विरोध करते हैं लेकिन मौका मिलने पर कोई भी दल मुफ्तखोरी की योजनाएं घोषित कर अपने-अपने पक्ष में मतदाताओं को प्रभावित करने से बाज़ नहीं आता.


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अतिथि विचार Published On :
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सरयूसुत मिश्र

मध्यप्रदेश में चुनाव से पहले सरकार का अंतिम बजट पेश हो गया है. बजट में वैसे ही सब कुछ है जो हर साल के बजट में होता है. कोई नया कर नहीं है. कुछ नई घोषणाएं हैं. बाकी वही सरकारी ढर्रा जो हर बजट में होता है.

बजट में 12वीं पास छात्राओं को स्कूटी और ‘लाडली बहना योजना’ में महिलाओं को 1000 प्रतिमाह देने के ऐलान को चुनावी घोषणा के रूप में देखा जा रहा है. सरकार और बीजेपी बजट से उत्साहित है. कांग्रेस इस बजट को झूठी घोषणाओं का स्मारक बता रही है लेकिन बजट की घोषणाओं के चुनावी असर से कांग्रेस अंदर से भयभीत भी दिखाई दे रही है. कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने सरकार की लाडली बहना योजना के प्रभाव को कम करने के लिए बिना नाम के उनकी सरकार बनने पर महिलाओं को 15 सौ रुपये महीने देने का वायदा कर दिया है.

संसदीय शासन व्यवस्था में मध्यप्रदेश में पिछले तीन दिन महत्वपूर्ण रहे हैं. विधानसभा सत्र की शुरुआत राज्यपाल के अभिभाषण के साथ हुई उसके बाद राज्य का आर्थिक सर्वेक्षण प्रस्तुत किया गया और आज सरकार का नया बजट पेश किया गया.

इन तीनों नीतिगत दस्तावेजों में राज्य में बीजेपी सरकार के दौरान किए गए विकास और उपलब्धियों की गहराई से विवेचना की गई है. मध्यप्रदेश की चुनावी राजनीति में भले ही दूसरे मुद्दे ज्यादा असरकारक हों लेकिन सार्वजनिक रूप से कांग्रेस और बीजेपी डेवलपमेंट परसेप्शन मैच (DPM) खेलने में लगी हुई हैं.

चुनाव के मुहाने पर DPM का सर्वेक्षण किया जाए तो बीजेपी और शिवराज इसमें विनर दिखाई पड़ रहे हैं. कांग्रेस सरकार के खिलाफ राज्य में आक्रोश स्थापित करने में सफल होती दिखाई नहीं पड़ रही है. विकास के मुद्दों पर तथ्यों के साथ कांग्रेस कभी भी जनता के बीच नहीं आ पा रही है. जबकि सरकार ने विकास यात्राओं के ज़रिये जनता के बीच पहुँच कर साहस का ही परिचय दिया है.

कांग्रेस के युवा चेहरे जयवर्धन सिंह की तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने बजट से ठीक पहले सरकार को आईना दिखाने के लिए पिछले साल के बजट के प्रावधान और सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई राशि का विवरण मीडिया के सामने रखा. पॉलिटिकल गवर्नमेंट किसी भी पार्टी की हो गवर्नेंस तो ब्यूरोक्रेसी के हाथ में होता है.

नीतियां कितनी भी अच्छी हों क्रियान्वयन की जिम्मेदारी जिन कंधों पर होती है अगर उस स्तर पर कहीं भी कमजोरी हुई तो उसका खामियाजा राज्य को और डेवलपमेंट के काम को भुगतना होता है. इसके लिए जरूरी है कि गवर्नेंस की कमियों और कमजोरियों को विपक्ष द्वारा तथ्यों के साथ बिना किसी राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप के केवल डेवलपमेंट की दृष्टि से रखा जाए.

विपक्ष की भूमिका शायद कांग्रेस के लिए नहीं बनी हुई है लेकिन जनता ने लंबे समय से कांग्रेस को यही दायित्व दे रखा है. ऐसी स्थिति में विपक्ष की भूमिका को धारदार बनाने के लिए कांग्रेस को अध्ययन, मनन करते हुए राजनीतिक नजरिया छोड़कर विकास की राजनीति पर अपनी रणनीतियों को केंद्रित करने की जरूरत है. सरकार की योजनाओं और घोषणाओं को राजनीतिक रूप से हवा में उड़ा देने की प्रवृत्ति विपक्ष को ही नुकसान पहुंचाती है.

शिवराज सरकार ने कई ऐसी योजनाएं इस प्रदेश में चालू की है जिन्होंने अनेकों की जिंदगी बदल दी है. लाडली लक्ष्मी योजना से हासिल उपलब्धियां हमारे सामने हैं. ‘लाडली बहना योजना’ भी फिर महिलाओं के भविष्य को एक नया स्वरूप देने में सफल हो सकती है.

मुख्यमंत्री मेधावी विद्यार्थी योजना इस बजट की सुर्ख़ियों में भले न हो लेकिन यह ऐसी योजना है जिसमें तकनीकी, मेडिकल और उच्च शिक्षा के लाखों छात्रों को बिना फीस दिए पढ़ाई का अवसर दिया है. अगर यह योजना नहीं होती तो यह बच्चे अपनी पढ़ाई जारी नहीं रख सकते थे. कोई सरकारी योजना जीवन को नई दिशा देने और बदलने वाली हो सकती है. यह पहली बार योजनाओं के हितग्राहियों को महसूस हो रहा है.

डेवलपमेंट परसेप्शन मैच मध्यप्रदेश में चालू हो चुका है. विधानसभा चुनाव तक हर रोज नए-नए खिलाड़ी अपने करतब दिखाते हुए नजर आएंगे. घोषणा पत्र में किए गए वायदों को पूरा नहीं करने के लिए सवालों का एक दौर मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के बीच में हो चुका है.

जिस आम जन के लिए विकास का यह मैच खेलने और जीतने का दावा किया जा रहा है वह चुपचाप सब देख रहा है. शायद उसकी नियति मौन होकर देखने की ही रह गई है. चुनाव में केवल मतदान के रूप में ही सरकार में उसकी हिस्सेदारी बची है. जिसके लिए पक्ष और विपक्ष विकास का अगुआ होने का दावा कर रहे हैं वह कहां खड़ा है? इस पर तो बहुत अधिक अध्ययन करने की जरूरत है. संसदीय शासन व्यवस्था आज रियायतों और घोषणाओं का मायाजाल रचकर सत्ता तक पहुंचने का जरिया बन गया है.

मुफ्तखोरी की योजनाओं पर सभी दल एक दूसरे का विरोध करते हैं लेकिन मौका मिलने पर कोई भी दल मुफ्तखोरी की योजनाएं घोषित कर अपने-अपने पक्ष में मतदाताओं को प्रभावित करने से बाज़ नहीं आता. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने अनेक बार मुफ्तखोरी की योजनाओं पर राज्यों के बजट के अपव्यव पर ध्यान आकर्षित किया है लेकिन यह रुक नहीं रहा है बल्कि बढ़ता ही जा रहा है.

डेवलपमेंट परसेप्शन मैच में कांग्रेस बीजेपी को पीछे करने में शायद ही सफल हो पाएगी. कांग्रेस की 15 महीने की सरकार में जनहित से जुड़ी कई योजनाओं को तोड़ा मरोड़ा गया था. जन कल्याण और विकास किसी भी सरकार की सर्वप्रथम जिम्मेदारी है. ऐसी धारणा बनी हुई है कि चुनाव अकेले विकास के कामों से ही नहीं जीते जाते, चुनाव में जीत के लिए बूथ प्रबंधन, मजबूत संगठन, पार्टी की एकजुटता अगर सटीक रहे तो विकास के काम और वायदे चुनावी मैच जिताने में कारगर हो जाते हैं.

चुनाव में किसकी जीत होगी और कौन विपक्ष की भूमिका निभाएगा, इसके लिए वार जैसी स्थिति बनने लगी है. बीजेपी अपने तपे-तपाये परखे चेहरे पर डेवलपमेंट का परसेप्शन बनाने में जुटी हुई है. कांग्रेस सरकार के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी को अपने उज्ज्वल भविष्य का आधार मान रही है. मध्यप्रदेश के दोनों दल चुनाव में आने वाली तीसरी ताकत की संभावना और उसकी काट पर भी काम कर रहे हैं. दोनों दलों में इस समय चुनाव को अपने पक्ष में करने के लिए जो माहौल बना हुआ है उस पर यह कहावत सटीक है

बंदर चूके डाल से और अषाड़ किसान
दोनों के लिए है यह गति मरण समान

चुनाव में कोई जीतेगा कोई हारेगा लेकिन मध्यप्रदेश में चुनावी संघर्ष पर इतना कहना काफी है कि

सत्ता का रस्ता पथिक सीधा सरल न जान
बहुत बार होते गलत मंजिल के अनुमान

(आलेख लेखक की सोशल मीडिया पोस्ट से साभार)





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