सोशल मीडिया: पुनर्मूल्यांकन की दरकार, लागे जिया को ठेस


इन युवाओं और किशोरों को समझ नहीं आ रहा है उनके लिए अभी पूरा जीवन पड़ा है – देश के हालात क्या है – आजीविका की समस्या किस कदर बढ़ गई है, वे सिर्फ इस फेसबुक की माया में उलझ कर रह गए हैं और अपने आपको ज्यादा लाइक और कमेंट पाने वाले व्यक्ति के साथ तुलना करके उसी तरह का महान बनने की कोशिश करते हैं,


संदीप नाईक
अतिथि विचार Updated On :
Photo credit : medical opinion Asia


प्रोत्साहन देना हमारा काम है पर यह तुम्हारी योग्यता निश्चित नहीं करता और ना ही तुम नोबल पुरस्कार के हक़दार हो जाते हो युवा मित्रों, तुम सबके लिए लिख रहा हूँ दुखी होकर जिसमे मेरे अपने बच्चे भी शामिल है, मेरे आसपास के और बेहद करीबी भी बहुत जल्दी यश और कीर्ति पताकाएं फहराने की जिद में कितने किशोरों, युवाओं और अधेड़ों को देख रहा हूँ, बहुत दुखद है उनका लाईक, कमेंट, शेयर करने और अपनी बात थोपने की माया में पड़ जाना ।

ये लोग यह भूल रहे हैं कि हमारी उम्र के लोग कमा खा लिए और नौकरी कर रहे हैं , या रिटायर्ड हैं,  शालीन और बुद्धिजीवी दिखने वाली महिलाओं के पति बड़े अधिकारी हैं या उनके पास बाप दादो की अकूत सम्पत्ति है या आय का कोई नियमित स्रोत है ;  क्या आपकी माँ या बहन या भाभी इतनी ही तल्लीनता से सोशल मीडिया पर सक्रिय है या रोज़ सज संवरकर लाइव में आ रही है ; इन युवाओं और किशोरों को समझ नहीं आ रहा है उनके लिए अभी पूरा जीवन पड़ा है – देश के हालात क्या है – आजीविका की समस्या किस कदर बढ़ गई है, वे सिर्फ इस फेसबुक की माया में उलझ कर रह गए हैं और अपने आपको ज्यादा लाइक और कमेंट पाने वाले व्यक्ति के साथ तुलना करके उसी तरह का महान बनने की कोशिश करते हैं, बहुत ही घटिया किस्म के रोल मॉडल लेकर ये लोग यहां पर रायता फैलाने का काम करते हैं और फ्रस्ट्रेट होते रहते हैं।

बहुत अफसोसजनक है – नाम नही लेना चाहता पर बहुत नज़दीक से इस वायवीय दुनिया और संजाल में गले – गले तक फँसे लोगों को देख रहा हूँ लगातार बात करके समझ रहा हूँ , एक भीड़ है जो लगातार इसमें धँसते जा रही है

कुछ लोग वाकई अच्छा लिखते है , शोध करते है, भाषा को अलग तरह से वापरकर नए प्रयोग करते है पर इन्हें तुरन्त हजार – पाँच सौ पाठक के रूप में बंधुआ चाहिए – जो इनकी हर पोस्ट को लाइक करें, कमेंट करें, बहस करें, तर्क – वितर्क या कुतर्क करें

इस हद तक ये बीमार हो गये है कि अपने से चार गुना उम्र के लोगों से तुलना करने लगें है, अपने ही हितैषियों को गाली देने लगे हैं , व्यंग्य कसने लगें है, ताने देने लगे हैं, और अपने निज सम्बन्धों को भी इसी बिसात पर तौलने लगें है

इतने आत्ममुग्ध हो गए है कि हर कमेंट पर 3, 4 बार जवाब देकर अपनी पोस्ट पर गिनती गिन रहें है, अफसोस ही नही – दुख भी होता है कि इन्हें देख – देखकर हमारे वरिष्ठ लोग या मेरे समकालीन भी इनसे डाह रखकर सूची से हटाना, ब्लॉक करना या वाल पर जा – जाकर निंदा पुराण में लग जाना जैसी ओछी गतिविधियों में संलग्न हैं

माफ़ करिये पर कुछ महिलाओं की भी इसमें बड़ी भूमिका है जो दिनभर यही करती है, यही रहती है, पुरुषों के साथ – साथ और ये तथाकथित आइकॉन बनने की चाह रखने वाले इन महिलाओं को अपनी वाल पर पाकर उपकृत ही नही होते, बल्कि ठिठोली करके महान बनने के नित नए प्रयोग करते है – कभी अपना नंग धड़ंग चित्र डालकर, कभी कॉपी पेस्ट चैंपकर , कभी कुछ वाहियात सी दलित / महिला / बच्चों या ज्वलंत मुद्दे की भद्दी सी पोस्ट डालकर

कोई दिक्कतें नही है – ना मुझे, ना किसी को होना चाहिये पर इस सबमें जो मेघावी किशोर और युवा है – वे व्यर्थ की बहस में खोकर नकली बुद्धिजीवी और घटिया इंसान बनने की प्रक्रिया में बेहद फ्रस्ट्रेट होते जा रहें है इसका दुख है – ये लोग आशा है, उम्मीदों का दूसरा नाम है और देश को इनकी जरूरत है क्योंकि ये विलक्षण है इसलिए चिंता ज़्यादा है

युवा कवि हो, पत्रकार, बीए, एमए करने वाले या पीएचडी करने वाले – अपने कैरियर पर ध्यान देने के बजाय – ये बस अशिष्ट होते जा रहें है इस मायावी दुनिया में , अपराध बोध और अवसाद से भरे ये लोग नही जानते कि कुछ भयानक स्वयम्भू महान लोगों की ब्लॉक लिस्ट डेढ़ लाख तक है और बावजूद इसके वे सड़कछाप प्रतिस्पर्धा में अभी भी शामिल है

इसे निजी आक्षेप ना मानें और ना ही कुतर्क करें – यह लिखते समय अधकचरे किताबी ज्ञान से परिपूर्ण, कॉपी पेस्ट मारने वाले, अरुंधति रॉय की किताब से ज्यों का त्यों उठाकर अपने नाम से लिखने वाले चोर उच्चके सहित बहुत से चेहरे है जो अपनी प्रोफाइल के साथ पेज, समूह और लाइव के ठेकेदार बने हुए है, कई समूहों से निकला ही इसलिये हूँ कि बड़े और गम्भीर लोग नीच से भी निम्न है और एडमिन बनकर तानाशाह और आतताईयों के समान बर्ताव करते है

मेरे वरिष्ठ, समकालीन या संग साथ के लोग खतम हो रहें है या निरापद है – एकदम फालतू है, घूम फिरकर संस्मरण या निंदा पुराण लिखने लायक बचें है या घर बैठे आयोजनों या पुरानी स्मृतियों को कुरेदकर लिखने के अलावा कुछ है ही नही पर तुम सबके सामने जीवन पड़ा है लम्बा और विकराल जीवन जिससे लड़ते लड़ते थक जाओगे युवा मित्रों

बहरहाल, जिसे बुरा लगें वो दो रोटी ज़्यादा खा लें अभी रात के खाने में