सत्ता पाने के लिए राजनीतिक दलों की मायावी योजनाएं


जो लोग नारी सम्मान के नाम पर ऐसी योजनाएं घोषित कर रहे हैं उन्होंने कभी यह सोचकर नहीं देखा होगा कि उतने रुपये में उनके कपड़ों की धुलाई भी संभव नहीं है।


DeshGaon
अतिथि विचार Published On :
ladli bahana vs nari samman yojana

सरयूसुत मिश्रा

मायावी राक्षस मारीच ने जिस तरह कपट स्वर्ण मृग बनकर सीता हरण की कहानी लिखी ठीक वैसे ही राजनीतिक दल सत्ताहरण के लिए ‘नारी सम्मान योजनाओं’ को कपट मृग के रूप में उपयोग करते दिखाई पड़ रहे हैं। कांग्रेस और बीजेपी के बीच ‘नारी सम्मान’ और ‘लाडली बहना योजना’ की प्रतियोगिता चल रही है।

सरकार कोई योजना घोषित और क्रियान्वित करे यह तो अभी तक देखा जाता रहा है लेकिन यह पहली बार हो रहा है कि चुनाव में जा रही कांग्रेस ने सरकार की योजना के मुकाबले में बिना सरकार में आए ही “नारी सम्मान योजना” लांच कर दी है। इसे राजनीतिक दिल्लगी से ज्यादा क्या कहा जाएगा कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने ‘नारी सम्मान योजना’ का शुभारंभ बाकायदा फार्म भरवा कर कर दिया है। जनादेश की प्रत्याशा में शुरू यह योजना क्या जनादेश को हाईजैक करने के लिए योजना का टाइम बम नहीं कहा जाएगा? शिवराज सरकार की ‘लाडली बहना योजना’ की नकल के रूप में कांग्रेस द्वारा ‘नारी सम्मान योजना’ लांच कर आवेदन फॉर्म भरवाने की परंपरा राजनीतिक निर्लज्जता की पराकाष्ठा ही कही जा सकती है।

प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव केएस शर्मा का कहना है कि हमने पहले कभी नहीं देखा कि प्रदेश में विपक्षी दल द्वारा ऐसी किसी योजना के लिए आवेदन पत्र भरवाए गए हों। यह गलत परंपरा है। इस पर रोक लगनी चाहिए। चुनाव आयोग को भी ऐसी सभी योजनाओं पर संज्ञान लेते हुए कार्यवाही करना चाहिए।

सत्ता के लिए लोकतांत्रिक परंपराओं को ताक पर रखकर भावी सरकार की यही स्टोरी फिल्म निर्माण के लिए पर्याप्त नहीं मानी जाएगी। भविष्य की कल्पना जब वर्तमान पर हावी होती है तभी भावी का भाव वर्तमान की संभावनाओं को रौंदने लगता है।

छिंदवाड़ा जिले के परासिया में भावी मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भावी ‘नारी सम्मान योजना’ को लांच करते हुए कांग्रेस की राजनीति में एक भावी नेता को भी लांच जैसा कर दिया है। कमलनाथ के सांसद बेटे नकुलनाथ की पत्नी प्रिया नाथ पहली बार राजनीतिक मंच पर भाषण देते हुए दिखाई दीं। जब सब कुछ भावी पर ही चल रहा है तो फिर छिंदवाड़ा विधानसभा क्षेत्र से भावी प्रत्याशी के रूप में प्रियानाथ को देखा जा रहा है।

कमलनाथ पहले ही इशारा कर चुके हैं कि एक सीट से चुनाव लड़ने की बजाए वे पूरे प्रदेश में कांग्रेस को चुनाव लड़ायेंगे। 2018 के चुनाव में भी उन्होंने ऐसा ही किया था। मुख्यमंत्री बनने के बाद छिंदवाड़ा से निर्वाचित विधायक दीपक सक्सेना के त्यागपत्र से खाली सीट से कमलनाथ ने उपचुनाव लड़ा था। शायद इस बार भी उन्होंने ऐसी ही भावी योजना बनाई है और इस बार अपनी बहू को ही इस सीट से चुनाव में उतारने का मन बनाया है।

‘नारी सम्मान योजना’ में नारियों को 15 सौ रुपये हर महीने और ₹500 में गैस सिलेंडर देने की घोषणा की गई है। इसके लिए बाकायदा फॉर्म भराए जा रहे हैं। कांग्रेस के सारे नेता इस योजना के फार्म सभाओं में वितरित कर रहे हैं। भावी सरकार की भावी योजना की लांचिंग के पीछे कांग्रेस का शायद यह भय काम कर रहा है कि शिवराज सरकार की लाडली बहना योजना से लाभान्वित महिलाएं कहीं भाजपा के लिए निर्णायक ना साबित हो जाएं?

वैसे तो नगद राशि के रूप में किसी भी योजना में किसी को भी मदद पहुंचाने की प्रवृत्ति हतोत्साहित की जाना चाहिए। राज्य सरकार की वित्तीय स्थिति वेतन भत्ते और पेंशन देने के अलावा विकास के लिए कर्ज आधारित बनी हुई है। ऐसे हालात में ऐसी योजनाएं सरकारों की बुनियाद हिलाने के लिए पर्याप्त हैं।

विपक्षी दल के रूप में कोई दल कोई भावी योजना लांच करता है तो उसे यह बताने की जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए कि उसके लिए धनराशि की व्यवस्था कैसे की जाएगी? चुनावी घोषणा और बाद में क्रियान्वयन पर कथनी और करनी के अंतर के ऐतिहासिक तथ्य मौजूद हैं। अक्सर ऐसा देखा गया है कि वायदों और योजनाओं के कपट मृग के जाल में फंसाकर जनादेश का अपहरण कर लिया जाता है। फिर बाद में सम्मान की योजनाएं अपमान के रूप में साबित होती हैं। मीठा झूठ सच की तरह गले उतारने की कोशिशें राजनीति में आम बात हो गई हैं।

राजनीति का झूठ और झूठ बोलते राजनेता न जाने क्यों अच्छे लगते हैं? जीवन के चुभते नुकीले सवालों को ताक पर रखकर राजनीति भूतकाल की स्वर्णिम आभा पर सवार दिखाई पड़ती है। भविष्य के कल्पना लोक का दर्शन कराते राजनेता झूठे सच का आइना दिखाई पड़ते है। राजनीति के झूठ ने ऐसे हालात पैदा कर दिए हैं कि राजनीति पर बोलना और लिखना भी अब बेमानी लगने लगा है।

सत्ता हासिल करने के लिए नैतिक-अनैतिक सभी साधनों और माध्यमों का उपयोग आज राजनीतिक फैशन बन गया है। सेवा नहीं पॉलिटिकल बिजनेस अब राजनीति का सपना बन गया है। इस सपने को पूरा करने के लिए झूठे वायदों और योजनाओं का निवेश बिना किसी लागत के ऐसे किया जा रहा है जैसे भविष्य की कल्पना से ही आज लोगों का पेट भरा जा सकता है।

सशक्तिकरण के नाम पर ऐसी ऐसी योजनाएं सामने आती हैं जिससे राजनेताओं की गरीबों के सशक्तिकरण की परिभाषा समझ में आती है। किसी भी महिला को कुछ पैसे नगद में देकर उसके सशक्तिकरण का दावा राजनीति के अलावा शायद इस जगत में कोई भी नहीं कर सकता। जो लोग नारी सम्मान के नाम पर ऐसी योजनाएं घोषित कर रहे हैं उन्होंने कभी यह सोचकर नहीं देखा होगा कि उतने रुपये में उनके कपड़ों की धुलाई भी संभव नहीं है। खुद के आर्थिक सशक्तिकरण की तो कोई सीमा नहीं है और नारी सशक्तिकरण के लिए ऐसी योजनाएँ लक्ष्यभ्रष्ट राजनीति की ही हो सकती हैं।

(लेखक की सोशल मीडिया पोस्ट से साभार)





Exit mobile version