सरयूसुत मिश्रा।
नशामुक्ति के नाम पर शराबबंदी राजनीति का फैशन बन गया है। सत्ता में हिस्सेदारी से वंचित राजनेता शराबबंदी को अपना हथियार बनाते देखे जा सकते हैं। महात्मा गांधी के गुजरात और बिहार में सरकारी स्तर पर तो शराब बंदी लागू है लेकिन दोनों राज्यों में ना शराब की आपूर्ति में कमी है और ना ही खपत में।
शराबबंदी का उपयोग विरोधी दलों द्वारा ही नहीं किया जाता कई बार सत्ताधारी दल में भी राजनीतिक हित साधने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। मध्यप्रदेश में 2003 में बीजेपी की सत्ता यात्रा की शुरुआत कराने वाली उमा भारती अब शराबबंदी के नाम पर लगातार आक्रामक रुख अख्तियार कर रही हैं। वे तो यहां तक कह रही हैं कि अगले कुछ समय में प्रदेश में ऐसा दबाव बना दिया जाएगा कि सरकार और ब्यूरोक्रेसी को शराबबंदी के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
दूसरी तरफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान नशाबंदी को समाज सुधार की नजर से आगे बढ़ा रहे हैं। गांधी जयंती के अवसर पर भोपाल से नशा मुक्ति अभियान की शुरुआत की गई है। मध्यप्रदेश स्थापना दिवस पर भी राज्य स्तरीय उत्सव में मुख्यमंत्री द्वारा नशामुक्ति के लिए प्रदेश के लोगों से अनुरोध किया गया है।
नशामुक्ति के मामले में शिवराज सिंह और उमा भारती की युक्ति अलग-अलग दिखाई पड़ रही है। शराब का व्यवसाय भले ही समाज की नजर में बहुत अच्छा नहीं माना जाता हो लेकिन सरकार के लिए तो कमाई का यह बड़ा जरिया है। अगर शराब से मिलने वाला राजस्व बंद हो जाए तो क़र्ज़ से घिरी राज्य सरकारों का आर्थिक संकट गहराने में देर नहीं लगेगी।
शिवराज और उमा भारती की नशामुक्ति की मंजिल एक है लेकिन रास्ते जुदा-जुदा हैं। उमा भारती शराब की दुकानों पर जाकर पत्थर मार रही हैं, गोबर फेंक रही हैं,अफसरों को धमका रही हैं और बयानबाजी से राजनीतिक माहौल बना रही हैं। वहीं शिवराज नशा मुक्ति के लिए जागरुकता की मशाल जला रहे हैं। प्रदेश में जिला, नगर, तहसील और ग्राम में नशे के खिलाफ शपथ विधि अभियान चलाने का दावा किया जा रहा है। नशा मुक्ति के केम्प और हेल्पलाइन सक्रिय होने का ऐलान किया जा रहा है। कलेक्टरों की अध्यक्षता में नशा मुक्ति अभियान के लिए जिला स्तरीय समितियों के गठन की घोषणा की गई है।
गांधी जयंती पर नशा मुक्ति अभियान के शुभारंभ कार्यक्रम में मंच पर उपस्थित उमा भारती के समक्ष मुख्यमंत्री अपने भाषण में उमा दीदी को आश्वस्त करते हुए कहते हैं कि उनके भाई के रूप में वह सरकार की तरफ से समाज को नशा मुक्त बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे, हम जी जान लगा देंगे, हम मध्य प्रदेश को नशा मुक्ति में नंबर एक राज्य बना कर ही दम लेंगे।
शराबबंदी के लिए उमा भारती ने पिछले एक साल में न मालूम कितने पत्र लिखे हैं और उन्हें सोशल मीडिया पर शेयर किये हैं। वे न जाने कितनी बार यात्राओं का ऐलान कर चुकी हैं लेकिन अभी तक उनका कोई भी अभियान जमीन पर तो चलता हुआ दिखाई नहीं पड़ा। केवल दुकानों पर जाकर पत्थर फेंकने का काम ही उन्होंने किया है।
राजनीतिक रूप से उमा भारती अभी हाशिये पर दिखाई पड़ रही हैं। शिवराज सिंह चौहान को जब बीजेपी विधायक दल का नेता पहली बार 2005 में चुना गया था तब उमा भारती ने उसके विरोध में बैठक से निकल कर यात्रा चालू कर दी थी। उमा भारती जहां फायर ब्रांड नेता मानी जाती हैं वही शिवराज सिंह शांतिप्रिय और समन्वयवादी नेता के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हैं।
तुनकमिजाजी उमा भारती के व्यक्तित्व की कमजोरी के रूप में उस समय भी उभर कर आई थी जब उन्होंने मुख्यमंत्री का पद संभाला था। इसके विपरीत शिवराज सिंह चौहान अब तक के सारे रिकॉर्ड को ध्वस्त करते हुए सबसे लंबे समय से मुख्यमंत्री के पद पर बने हुए हैं। उमा भारती और शिवराज की राजनीतिक युक्ति जैसे अलग-अलग है वैसे ही नशामुक्ति के मामले में उनके रास्ते भी अलग-अलग हैं।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या शराबबंदी से शराब की उपलब्धता और खपत बंद हो जाएगी? अभी जिन राज्यों में शराब बंदी लागू है वहां के अनुभवों से तो ऐसा नहीं लगता है? बिहार और गुजरात में शराबबंदी के कारण जहां सरकार को करोड़ों का राजस्व का नुकसान हुआ है वहीं शराब के व्यापार का एक अवैध नेटवर्क भी स्थापित हो गया है। दोनों राज्यों में जहरीली शराब से होने वाली मौतों की घटनाएं भी आये दिन सामने आती रहती हैं। दोनों राज्यों में चाहने वालों को शराब मिलने में कभी भी और कहीं भी कोई कठिनाई नहीं होती है।
वैसे भी खानपान जैसे निजी पसंद के विषय कानून से कैसे रोके जा सकते हैं? ऐसे मामलों में शिवराज सिंह चौहान की युक्ति ही कारगर हो सकती है। लोगों को जागरुक बनाकर शराब और दूसरे नशे के नुकसान लोगों के मन मस्तिष्क में स्थापित कर ऐसा माहौल बनाया जा सकता है कि लोग नशे के प्रति हतोत्साहित हों। दबाव, धमकी तथा कानून से इसको रोकना संभव नहीं है। वैसे भी जिन पर सख्त कानून बने हुए हैं क्या वे अपराध रोके जा सके हैं?
उमा भारती को उनके नशा मुक्ति अभियान का राजनीतिक फायदा मिलता है या नहीं मिलता है, यह तो वक्त आने पर ही पता चलेगा। उमा भारती का आक्रामक रास्ता नशा मुक्ति के लिए कारगर साबित होगा इसमें तो संशय है।
बीजेपी और कांग्रेस दोनों की सरकारें मध्यप्रदेश में नई शराब की दुकानें नहीं खोलने की घोषणाएं हमेशा करती रहती हैं। इसके विपरीत दोनों सरकारों में ही दुकानों की संख्या बड़ी है। अभी हाल में देसी और विदेशी शराब दुकान खोलने के कारण शराब उपलब्धता के आउटलेट्स की संख्या लगभग दोगुनी तक हो गई है।
नशामुक्ति के मामले में भी उमा भारती को शिवराज सिंह चौहान के रास्ते पर ही चलना होगा। उमा भारती को आक्रामक राजनीति के चलते ही आज राजनीतिक बियाबान में भटकने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। शराबबंदी का उनका आक्रामक अभियान भी सत्ता में भागीदारी को मजबूत करने में सफल होता दिखाई नहीं पड़ रहा है। नशामुक्ति जरूरी है लेकिन जागरुकता के साथ। होश में रहते हुए मदहोश होना भी गुनाह नहीं है और मदहोश रहते हुए होश और जोश भी नुकसान ही पहुंचाता है।
(आलेख सोशल मीडिया से साभार)