सरयूसुत मिश्रा।
राहुल गांधी का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर बड़ा आरोप है कि विपक्ष को संसद में बोलने नहीं दिया जाता। कांग्रेस जनता के मुद्दे उठाना चाहती है लेकिन सरकार विपक्ष की आवाज को दबाती है। इसके ठीक उलट मध्यप्रदेश विधानसभा के मानसून सत्र के पहले दिन सदन में नहीं पहुंचने पर राहुल गांधी के अंकल कमलनाथ कहते हैं कि सदन में बकवास सुनने नहीं जाता हूँ। राहुल गांधी संसद में चर्चा का मौका मांग रहे हैं और कमलनाथ विधानसभा की कार्यवाही को ही बकवास बता रहे हैं।
संन्यास आश्रम की उम्र में पहुंच चुके कमलनाथ को शायद पद की प्यास और अभिलाषा के आगे सब कुछ बकवास लग रहा है, जिन्होंने विधायी सदनों में सदस्यता के लिए पूरे जीवन डेमोक्रेसी की साधना की हो उन्हें इस पड़ाव पर आज उसकी व्यर्थता का अनुभव हो रहा है। यही जीवन की सच्चाई है। भौतिक जगत में धन, पद और प्रतिष्ठा का शिखर एक समय व्यर्थता और शून्यता का एहसास जरूर कराता है।
कमलनाथ आज की तारीख में कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ संसदविद हैं। केंद्र की राजनीति में हमेशा सक्रिय रहे कमलनाथ ने 2018 विधानसभा चुनाव के पहले जब मध्यप्रदेश कांग्रेस की कमान संभाली थी तब ऐसा लगा था कि कांग्रेस का पुनरुद्धार होगा। कांग्रेस एक कदम आगे बढ़ी और 15 साल बाद प्रदेश में सरकार बनाने में सफल हुई। कांग्रेस इसका श्रेय कमलनाथ को ही देती है। इसलिए 15 महीने बाद सरकार के पतन का ठीकरा भी निश्चित रूप से उन पर ही फोड़ा गया।
मुख्यमंत्री के पद से हटने के बाद ऐसा सामान्य रूप से माना जा रहा था कि कमलनाथ दिल्ली चले जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उनमें मुख्यमंत्री पद की लिप्सा खत्म नहीं हुई है। अचानक पद जाने के कारण शायद उनकी सारी प्लानिंग पूरी नहीं हो सकी है। आए दिन कांग्रेस के नेता ऐसा संदेश देने की कोशिश करते हैं कि कमलनाथ मुख्यमंत्री की शपथ लेने ही वाले हैं। कई बार तो ऐसा लगने लगता है कि शायद वे चुनाव के पहले ही तो शपथ लेने की कोई तैयारी नहीं कर रहे हैं। उम्र के इस पड़ाव पर पद के प्रति इतनी भीषण लिप्सा समझ से परे है।
कमलनाथ जब मुख्यमंत्री थे तब भी विधानसभा में उनकी भागीदारी अति आवश्यक होने पर ही होती थी। मध्यप्रदेश विधानसभा कभी देश में सबसे ज्यादा दिनों तक संचालित होने का रिकॉर्ड बनाती रही है लेकिन अब धीरे-धीरे विधानसभा सरकारी कामकाज को निपटाने के लिए आवश्यक समयावधि तक ही चल पाती है।
प्रदेश में कांग्रेस लंबे समय तक विपक्ष में रही। जनता की आवाज सदन में रखने के प्रति पार्टी का दृष्टिकोण कमलनाथ के ‘बकवास’ वाले वक्तव्य से समझा जा सकता है। आज राजनीति एक नाटक के तरीके से खेली जाती है। राजनीति के पात्र जो भी करते हुए दिखाई पड़ते हैं उसमें उनका विश्वास है, यह कोई जरूरी नहीं है। जैसे नृत्य नाटिका में नायक की भूमिका निभाने वाले कलाकार केवल भूमिका निभाते हैं वैसे ही राजनीति में आजकल भूमिका को अंजाम दिया जा रहा है। राजनीति में जनता की आत्मा का अभाव स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ रहा है।
कमलनाथ को लक्ष्मीपुत्र माना जाता है। लक्ष्मी कमाना और खर्च करना उनकी सबसे बड़ी योग्यता के रूप में देखा जाता है। आर्थिक संकट के दौर से गुजर रही कांग्रेस के राज्य नेतृत्व पर कमलनाथ के एकाधिकार के पीछे भी उनकी यही खूबी मानी जा रही है। पार्टी के संचालन और चुनाव के लिए धन प्रबंधन कमलनाथ के अलावा और कोई व्यक्ति करने में सक्षम दिखाई नहीं पड़ता। कांग्रेस के युवा नेताओं में भले ही पीढ़ियों का संघर्ष चल रहा हो लेकिन संगठन की अर्थव्यवस्था की मजबूरी के कारण चुप्पी साधनी पड़ती है।
कमलनाथ की लीडरशिप में मध्यप्रदेश में राजनीति और प्रशासन के इतिहास में कई दाग लगे हैं, जिनको लंबे समय तक मध्यप्रदेश याद करेगा। कमलनाथ 15 साल बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस सरकार के जनक माने जाते हैं तो उस सरकार के पतन के लिए भी उनको ही जिम्मेदार माना जाएगा। किसी भी नेता के कार्यकाल में कांग्रेस में इतनी बड़ी टूट मध्यप्रदेश में अभी तक नहीं हुई थी।
कांग्रेस में हुई इस टूट ने राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस नेताओं में मोहभंग होने की शुरुआत की थी। इसके बाद तो जो सिलसिला चालू हुआ वह अभी तक चल रहा है। आज ही गोवा में कांग्रेस के 8 विधायकों ने पार्टी छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है। मध्यप्रदेश से शुरू हुई कांग्रेस छोड़ो यात्रा आज तक निर्बाध रूप से चल रही है।
कमलनाथ ने अपने 15 महीने के कार्यकाल में दो मुख्य सचिव बनाए थे। आज दोनों सेवानिवृत्त मुख्य सचिव जांच के दायरे में हैं। एक अधिकारी पर उद्योग घोटाले की जांच फिर से शुरू करने के आदेश हुए हैं। वहीं दूसरे अधिकारी पर ईडी द्वारा छापे के बाद मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गया है। अभी तक मध्यप्रदेश के इतिहास में किसी भी सेवानिवृत्त मुख्य सचिव के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों में जांच की प्रक्रिया नहीं हुई थी लेकिन कमलनाथ ने ऐसे व्यक्तियों को मुख्य सचिव चुना था जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप थे। भ्रष्टाचार के प्रकरणों को वापस लेकर मुख्य सचिव का पद दिया गया था, जिस केस को वापस लिया गया था उस केस में फिर से सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जांच की हरी झंडी देना कमलनाथ के लिए एक बड़ा नैतिक सवाल खड़ा कर रहा है।
एक और घटनाक्रम मध्यप्रदेश में पहली बार हुआ है। मुख्यमंत्री से जुड़े हुए सरकारी अधिकारियों के खिलाफ आयकर विभाग की जांच में पकड़ी गई गड़बड़ियों के आधार पर चुनाव आयोग द्वारा वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के खिलाफ जांच के आदेश दिए गए हैं। प्रकरण में ईओडब्ल्यू में यह जांच चल रही है। कमलनाथ द्वारा चुनाव के समय जनता से वायदा किया गया था, पेट्रोल और डीजल पर 5% वैट घटाया जाएगा। मुख्यमंत्री बनते ही घटाने की बजाय 5% वैट बढ़ाकर जनता के साथ धोखा किया गया था।
वर्तमान सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी की काल्पनिक आधार पर अपनी गलतियों से बेखबर होकर मुख्यमंत्री की कुर्सी का सपना देख रही कांग्रेस और उसके नेता डेमोक्रेसी को और सदन को बकवास कहकर अपने आत्मबोध को प्रदर्शित कर रहे हैं। भौतिक जगत में कमलनाथ ने सारी उपलब्धियां हासिल कर ली हैं। उन पर ईश्वर की बहुत कृपा है। लक्ष्मी के वे पुत्र माने जाते हैं। अगर उन्हें राजनीतिक प्रक्रिया और लोकतंत्र का शिखर मंदिर बकवास के रूप में दिखाई पड़ने लगा है तो निश्चित रूप से यह उनके लिए आत्मक्रांति और आत्मसाक्षात्कार के रूप में देखा जाना चाहिए।
यह एहसास जैसे-जैसे मजबूत होता जाएगा वैसे-वैसे उनमें विरक्ति का भाव और बढ़ेगा। संन्यास आश्रम की कल्पना ही हमारे ऋषि-मुनियों ने इसलिए ही की है। भौतिक जगत का वैभव युवाओं को छोड़कर इस उम्र में सन्यास की तरफ बढ़ना चाहिए। शायद कमलनाथ में यही आत्मबोध मजबूत होता दिखाई पड़ रहा है।
(आलेख सोशल मीडिया से साभार)