आम चुनाव 2014 के बाद से बीजेपी लगातार सत्ता में बनी हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के चलते 2024 में अकेले कांग्रेस के लिए बीजेपी को सत्ता से हटाना आसान नहीं होने वाला।
ऐसे में कांग्रेस अब बीजेपी के ही उन हथकंडों का इस्तेमाल करती दिख रही है जिनके दुरुपयोग का आरोप नरेंद्र मोदी पर लगाया जाता है। सांसदी जाने के बाद कांग्रेस प्रचारित कर रही है कि राहुल गांधी को अब बेघर करने की तैयारी है।
दरअसल सूरत कोर्ट द्वारा दोषी घोषित किए जाने के साथ ही राहुल गांधी की संसद सदस्यता समाप्त हो गई है। इसके साथ ही सांसद के तौर पर मिलने वाली सभी सुविधाएं भी अपने आप समाप्त हो जाती हैं। राहुल गांधी 2005 से दिल्ली में 12 तुगलक लेन स्थित सरकारी बंगले में रह रहे हैं।
(1) मैं भी हो गया ‘फकीर’
लोकसभा सचिवालय ने राहुल गांधी को नोटिस भेजा है जिसमें उन्हें 22 अप्रैल तक बंगला खाली करने को कहा गया है। नोटिस के बाद राहुल ने एक भावनात्मक टिप्पणी में जवाब दिया है कि इस घर से मेरी बहुत सी यादें जुड़ी हुई हैं। इस तरह राहुल गांधी ने सरकारी बंगला खाली किए जाने की घटना को बेघर होने की इमोशनल फिलिंग से जोड़ दिया।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी 2016 में कुछ इसी तरह इमोशनल हो गए थे जब नोटबंदी के फैसले के बाद विपक्ष लगातार उन पर हमले कर रहा था। विपक्ष के हमलों का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, “भ्रष्टाचार से लड़ना और गरीबों को उनका हक दिलाना मेरा संकल्प है। मेरा क्या, मैं तो फकीर हूं झोला उठाऊंगा चल दूंगा।”
मोदी का यह कथन कि ‘मैं तो फकीर हूं झोला उठाऊंगा चल दूंगा’ बहुत वायरल हुआ था। भारत जैसे देश में घर और परिवार न होना आसानी से एक भावनात्मक मुद्दा बन जाता है। खुद को फकीर कह कर मोदी यही बताना चाहते थे कि उनके पास न तो अपना घर है, न परिवार।
सात साल बाद राहुल गांधी भी यही दिखाना चाहते हैं कि उनके पास अपना घर नहीं है। वह एक सरकारी घर में रहते हैं और अब वहां से भी उन्हें निकाला जा रहा है। तो क्या राहुल गांधी भी खुद को ‘फकीर’ दिखाना चाहते हैं?
(2) बोतल नई, शराब पुरानी
राहुल गांधी को घर खाली करने का नोटिस मिलने के बाद कांग्रेस नेता और उनके समर्थक अपने घरों पर ‘मेरा घर राहुल गांधी का घर’ लिख कर राहुल गांधी के प्रति अपना समर्थन प्रकट कर रहे हैं। यह घटना भी भी मोदी से जुड़े एक पुराने प्रकरण की याद दिलाता है।
लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अप्रत्यक्ष तौर पर हमला करते हुए ‘चौकीदार चोर है’ कहा था। इसके बाद भाजपा नेताओं सहित उनके समर्थकों ने अपने सोशल मीडिया प्रोफाइल पर ‘मैं भी चौकीदार’ लिखना शुरू कर दिया। सोशल मीडिया पर ‘मैं भी चौकीदार’ वायरल हो गया और अंतत: इससे बीजेपी को ही फायदा हुआ। राहुल गांधी को अपने इस बयान के लिए सुप्रीम कोर्ट में माफी भी मांगनी पड़ी थी।
(3) आरोप बना हथियार
राहुल गांधी की संसद सदस्यता जाने के बावजूद सूरत कोर्ट के फैसले को किसी न्यायालय में चुनौती न देने पर सवाल खड़े हो रहे हैं। कोर्ट में अपील करने के बजाए कांग्रेस यह दिखाना चाहती है कि मोदी के खिलाफ बोलने वालों को निशाना बनाया जा रहा है। उन्हें संसद और विधानसभाओं से निकालने की साजिश रची जा रही है।
राहुल गांधी ने खुद को अडाणी के खिलाफ बोलने की सजा पाने वाले ‘डिस्क्वालीफाइड एमपी’ (अ-योग्य सांसद) के तौर पर पेश किया है। ऐसे ही मोदी ने नीच, चाय वाला, पिछड़ा जैसे शब्दों के बाद खुद को एक विक्टिम (पीड़ित) के तौर पर पेश किया था और इसका उन्हें लाभ भी मिला था।
साफ है कि राहुल गांधी खुद पर लगने वाले आरोप को हथियार बनाकर प्रधानमंत्री को घेरना चाहते हैं। संसद सदस्यता जाने के बाद प्रेस के सामने भी राहुल गांधी कह चुके हैं कि सरकार ने विपक्ष के हाथ में एक बहुत बड़ा हथियार दे दिया है।
(4) दोषी नहीं आरोपी है असली विलेन!
कांग्रेस और राहुल गांधी यह दिखाना चाहते हैं कि कोर्ट में जो कुछ हुआ वह एक साजिश थी। उन्हें जानबूझकर इस मामले में फंसाया गया है, ताकि मोदी के खिलाफ उन्हें संसद में बोलने से रोका जा सके।
मानहानि मामले में कोर्ट के सामने माफी मांगने के बजाय उन्होंने अपने बयान पर बने रहने का विकल्प चुना। उन्हें इस बात का पूरा अंदाजा रहा होगा कि इससे उनकी सांसदी जा सकती है। यानी, राहुल गांधी अपनी गलती को मानने के बजाए यह दिखाना चाहते हैं कि उन पर जो आरोप लगाया गया है वह एक साजिश का हिस्सा है।
तो क्या अब राहुल गांधी भी खुद को विक्टिम दिखाने की वही कोशिश कर रहे हैं? क्या कांग्रेस अब बीजेपी के चुनावी हथकंडों का इस्तेमाल उसके ही खिलाफ कर रही है? क्या इससे कांग्रेस को फायदा होगा? क्या बीजेपी के पास इसका कोई जवाब है? इन सवालों का सही जवाब तो 2024 के चुनाव नतीजों के बाद ही मिलेगा।