खतरे की घंटी बजा रहा है मौसम का बदलता मिजाज


ग्लोबल वार्मिंग की तपिश हमारे घर में भी दस्तक देने लगी है। फरवरी मध्य में यदि मार्च-अप्रैल जैसी गर्मी महसूस की जा रही है तो यह आसन्न खतरे का संकेत है।


rakesh-achal राकेश अचल
अतिथि विचार Published On :
global warming

बीते कल भोपाल का तापमान 33 डिग्री था, मौसम विज्ञान की भाषा में अरब सागर में बने प्रति चक्रवात के कारण ऐसा हुआ। समझने की जरूरत है कि ग्लोबल वार्मिंग की तपिश हमारे घर में भी दस्तक देने लगी है। फरवरी मध्य में यदि मार्च-अप्रैल जैसी गर्मी महसूस की जा रही है तो यह आसन्न खतरे का संकेत है।

ऐसी स्थितियां पिछले साल भी पैदा हुई थीं, जब भरपूर फसल के बावजूद बालियों में गेहूं का दाना कम निकला था। घटी हुई उत्पादकता के कारण किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था। इस बार भी किसान के माथे पर चिंता की लकीरें हैं। कहां तो किसान बंपर गेहूं की पैदावार की उम्मीद में आत्ममुग्ध था, वहीं ताप वृद्धि से अब उसकी फिक्र बढ़ गई है।

साफ़ दिख रहा है विश्वव्यापी ग्लोबल वार्मिंग अपने घातक प्रभावों के साथ पूरी दुनिया में खाद्य सुरक्षा को संकट में डाल रही है। कई देशों में लगातार सूखे की स्थिति है तो कुछ जगह बाढ़ का प्रकोप है। कहीं रेगिस्तान में बर्फबारी हो रही है तो अमेरिका जैसे तमाम देश लगातार बेमौसमी चक्रवाती तूफानों से जूझ रहे हैं। आश्चर्य की बात है कि फरवरी के महीने में धुंध से यातायात बाधित होने समाचार भी सुनने को मिले हैं।

समय से पहले बढ़े तापमान से गेहूं की लहलहाती फसल पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। कृषि वैज्ञानिक बता रहे हैं कि कुछ ही दिनों में तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला गया है, जो गेहूं की फसल के लिये बिल्कुल ठीक नहीं है। जबकि इस दौर में अधिकतम तापमान 20 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं होना चाहिए।

आंकड़े कहते हैं, अच्छी फसल के लिये जरूरी है कि इस दौरान कम से कम पंद्रह दिन तक मौसम में ठंडक रहे। यदि तापमान ज्यादा होता है तो आशंका है कि गेहूं का दाना कमजोर होगा। जिसका कुल उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। जहां इससे कुल पैदावार में कमी आएगी, वहीं गुणवत्ता में कमी से किसान को मंडियों में औने-पौने दाम में फसल आढ़तियों को बेचनी पड़ सकती है।

ग्लोबल वार्मिंग संकट के चलते खाद्यान्न उत्पादन पर पड़ने वाला नकारात्मक असर आखिरकार देश की खाद्य सुरक्षा के लिये चुनौती पैदा करेगा। वैसे ही दुनिया में कोरोना संकट तथा रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते गेहूं उत्पादन पर गहरा प्रतिकूल असर पड़ा है। भारत गेहूं का निर्यात बढ़ाकर आपदा को अवसर में बदल सकता था, लेकिन देश में गेहूं की कालाबाजारी शुरू होने से आटे के दाम अप्रत्याशित तौर पर बढ़ने लगे थे, इन दिनों भोपाल में आटा 37 से 40 रुपए प्रति किलो बिक रहा है।

ऐसे में तापमान बढ़ने से गेहूं के उत्पादन में कमी आशंका चिंता बढ़ाने वाली है। खासकर खाद्यान्न उत्पादन में अग्रणी राज्यों यथा मध्यप्रदेश, हरियाणा व पंजाब के लिये यह समस्या बड़ी है। राज्य सरकारों को इस मुद्दे को गंभीरता से लेना होगा ताकि समय रहते किसानों की मदद की जा सके और उन्हें नुकसान न उठाना पड़े।

सही मानिए, अब समय आ गया है कि मौसम के मिजाज में तल्खी के कारण हमें फसलों के विविधीकरण पर जोर देना होगा, जो ज्यादा तापमान में कम पानी के साथ उगायी जा सकें। ऐसा करके किसान बार-बार की मौसमी तल्खी से बच सकेगा, वहीं देश की खाद्य शृंखला को भी संरक्षण मिल सकेगा। यह एक गंभीर चुनौती है और सभी दिशाओं में इसके विकल्प तलाशे जाने चाहिए।

(आलेख वेबसाइट मध्यमत.कॉम से साभार)