बक्सवाहा के जंगलः बुंदेलखंड का गौरव, हीरों की चमक और विकास का संघर्ष


सरसरी तौर पर देखा जाए तो असली हितधारक या अंग्रेजी में कहें तो स्टैक्होल्डर को पुनः छला गया है। जब तक उन्हें सच मालूम पड़ता कि उनकी मांग को एक दूसरी दिशा में मोड़ा जा रहा है तब तक समृद्ध बक्सवाहा की तमन्ना सोशल मीडिया पर अपना अस्तित्व खोती नजर आ सकती है।


ब्रजेश शर्मा
अतिथि विचार Published On :
buxwaha-forest

पुरातन काल से समृद्ध और परिपूर्ण बुंदेलखंड अपने विकास के लिए फिर से संघर्ष कर रहा है। और इस दफा विकास के मंच पर है बुंदेलखंड की रत्नगर्भा वसुंधरा जो कि सदियों से अपने अंदर एक से एक नायाब हीरों को सँजोती आई है। फिर चाहे वो शूरवीर महाराजा छत्रसाल हों या दैदीप्यमान मनीषी ऋषि विश्वामित्र।

चर्चा है मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले में स्थित बक्सवाहा तहसील में मिले हीरों के भंडार की। जैसा कि हीरा अपने नाम से चिर-परिचित है, जिन्होंने निकाले जाने के पहले ही अपनी चमक ऐसी फैलाई है कि इसके तेज ने वाद-विवाद का एक नया संग्राम खड़ा कर दिया है।

एक तरफ इन्हें निकालने के लिए 2.15 लाख पेड़ काटे जाने का विरोध और वन संपदा की दुहाई, वहीं दूसरी ओर दशकों से विकास और सुविधाओं की राह देखता बक्सवाहा और छतरपुर जिला। इस रस्साकसी के बीच दोनों पक्ष मजबूती से अपनी बात लेकर लामबंद हैं।

अतीत के पन्नों पर अगर नजर दौड़ाएं तो हमें मालूम चलता है कि बुंदेलखंड तपस्वियों और वीरों की भूमि रही है,जो समय आने पर अपने अधिकार के लिए प्राणोत्सर्ग करने तक से किंचित भयभीत नहीं हुए। अपने गौरव, सम्मान, संपदा, संस्कृति और अधिकारों के लिए संघर्ष करने में श्लेष मात्र भी संशय नहीं किया।

ऋषि विश्वामित्र, द्वैपायन व्यास, ऋषि वाल्मीकि, गोस्वामी तुलसीदास, आचार्य केशवदास, ईसुरी, ऋषि अगस्त्य, महाराजा छत्रसाल, वीरांगना लक्ष्मी बाई, वीरवर लाला हरदौल, राजा गंड, मदनपाल, वीर सिंह जूदेव, झलकारी बाई और आचार्य चाणक्य इत्यादि की रचनाओं और शौर्य से यह भूमि तपोभूमि और वीरभूमि मे परिपूर्ण हुई है।

और बुंदेलखंड की जनमानस नें इन्हें अपना गौरव मानकर अपने शीश से लगाकर रखा है। इन रत्नों के साथ पन्ना जिले के बाद छतरपुर जिले की बक्सवाहा तहसील में असली हीरों की खोज हुई है। मध्यप्रदेश सरकार ने इन्हें निकालने और इनसे भविष्य के विकास का पथ गढ़ने के लिए तैयारी की है।

प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस साल मार्च के महीने में खजुराहो में केंद्र सरकार के एक कार्यक्रम में अपने उद्बोधन की शुरुआत अजेय महाराजा छत्रसाल के लिए लिखी गई पंक्तियों से करते हुए कहा कि

“छत्ता तेरे राज में,
धक-धक धरती होय।
जित-जित घोड़ा पग धरे,
तित-तित हीरा होय……”.

चौहान ने शूरवीर छत्रसाल के लिए पंक्तियाँ उद्धृत करते हुए उनके द्वारा बुंदेलियों के गौरव रक्षा के प्रयत्नों और उनकी वीरगाथा की मिसाल रखी।

पुनः एक बार रत्नगर्भा बुंदेलखंड की धरा अपने रत्नों की पहचान और उससे जुड़े गौरव के लिए संघर्ष कर रही है। बक्सवाहा तहसील में मिले असली हीरों के लिए बुन्देली मानस एक बार फिर उठ खड़ा हुआ है। प्राकृतिक संपदा हमेशा से मानव जीवन को सरल, और सुगम बनाने के लिए अपना योगदान देती आई है। विषय विशेषज्ञों की मानें तो बक्सवाहा की यह रत्न संपदा समूचे छतरपुर और मध्यप्रदेश की तस्वीर बदल सकती है।

कुछ महीनों पहले तक बक्सवाहा निवासी यही समझ रहे थे कि देर सबेर ही सही ,उनकी किस्मत का पाँसा जरूर पलटेगा और वो विकास, रोजगार, पढ़ाई, स्वास्थ्य और सुविधाएं जिसका वो दशकों से इंतजार कर रहे थे, देर सबेर उन्हें मिल जाएंगी। पर अकस्मात जंगल बचाओ अभियान ने उनकी उम्मीद आशाओं को जोर का झटका धीरे से दे दिया।

यह अभियान जो कि सोशल मीडिया पर तांडव कर दुनिया भर में पहुंचा उसकी भनक छतरपुर और बक्सवाहा को जरा देर से लगी। बकौल एक स्थानीय निवासी उसे तो पता भी नहीं चला के ये कौन लोग हैं जिन्हें यह अभियान सूझा और एक नई आग पर अलग रोटियाँ सेंकने लगे।

विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर स्थानीय नागरिकों द्वारा अपने हक की आवाज बुलंद की जा रही है, इस मांग के साथ कि बाहरियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाए। कुछ दिनों पहले बक्सवाहा के निमानी गांव के पूर्व सरपंच ने एक वीडियो जो कि सोशल मीडिया पर उपलब्ध है पर व्यथा बताते हुए कहा कि दशकों से संघर्ष के बावजूद वो उन सुविधाओं के मोहताज हैं जो उनका अधिकार हैं। हीरों की यह खोज पूरे समुदाय और संस्कृति को आमूल-चूल रूप से बदल सकती है पर बाहरी तत्वों ने उनके अधिकारों पर विरोध का बट्टा लगाने की कोशिश की है।

दूसरी ओर पर्यावरणविद हीरों को निकालने के लिए 2.15 लाख पेड़ काटने का विरोध कर इसे सर्वनाश करार दे रहे हैं। उनके मुताबिक यह कदम घोर अनुचित होकर पर्यावरण का सौदा है। इसके मुकम्मल- संगोष्ठी, सभाएं, जनजागरण, और अन्य उद्यम इन पर्यावरणविदों द्वारा आयोजित किये जा रहे हैं। हालांकि, इक्के -दुक्के आयोजन को छोड़कर ये आयोजन छतरपुर और बक्सवाहा के बाहर ही आयोजित किये गए हैं।

2 जुलाई 2021 को छतरपुर जिला कलेक्टर शीलेन्द्र सिंह की ट्विटर पोस्ट के मुताबिक डायमंड प्रोजेक्ट में चिन्हित क्षेत्र में पेड़ो को एक साथ काटे जाने की खबर झूठी है बल्कि 12-15 वर्षों में पेड़ों को हटाया या काटा जाएगा। डायमंड प्रोजेक्ट में 2 लाख 15 हजार पेड़ एक साथ काटे जाने और पर्यावरण बिगाड़ने की जानकारी भ्रामक और झूठी है।

पेड़ हटाने अथवा काटने के पूर्व ही 3 लाख 40 हजार पौधे कम्पनी द्वारा लगाये जायेंगे। कम्पनी द्वारा पौधों की देख-रेख एवं पोषण हेतु 16 करोड़ रुपए की राशि जमा की गई है। इसके अलावा विभिन्न क्षेत्रों में कम्पनी द्वारा 200 करोड़ रुपए की राशि वन विकास की समृद्धि के लिए कैम्पा फंड में भी जमा कराई जाएगी।

अब बात करते हैं मध्यप्रदेश में पड़ने वाले छतरपुर जिले की। यह क्षेत्र वैसे तो सांस्कृतिक रूप से काफी समृद्ध रहा है, पर नीति आयोग की एक रिपोर्ट अनुसार यह जिला देश के 115 एस्पायरिंग (आकांक्षी) जिलों की श्रेणी में रखा गया है। नीति आयोग की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, छतरपुर जिले की प्रति व्यक्ति आय मध्यप्रदेश राज्य के औसत से लगभग 39 प्रतिशत और भारतीय औसत से 56 फीसदी कम है।

शासन के अनुसार बक्सवाहा में बंदर डायमंड ब्लॉक के नाम से मशहूर हीरों की खुदाई एक ग्रीनफील्ड खनन परियोजना है। लगभग पंद्रह साल पहले वर्ष 2005 से 2011 के दौरान इस क्षेत्र का पता लगाया गया था। राज्य शासन द्वारा 2012 में दुनिया की दिग्गज खनन कंपनी रियो टिंटो को 954 हेक्टर क्षेत्र में माइनिंग लीज़ के लिए लेटर ऑफ इंटेंट यानि आशय पत्र प्रदान किया गया था।

लेकिन, 2017 में रियो टिंटो ने यह प्रोजेक्ट छोड़ने का फैसला लिया जिसका सुसंगठित कारण पोर्ट्फोलियो सुव्यवस्थित करना बताया गया। वर्ष 2019 में मध्यप्रदेश सरकार ने एमएमडीआर अधिनियम 2015, और खनिज नीलामी नियम 2015 के प्रावधानों के अनुसार एक पारदर्शी प्रतिस्पर्धी नीलामी प्रक्रिया में ब्लॉक की नीलामी की लेकिन इस बार माइनिंग लीज का क्षेत्र घटाकर, एक तिहाई, लगभग 364 हेक्टेयर कर दिया गया। नीलामी प्रक्रिया में पांच प्रमुख खनन कंपनियों ने भाग लिया। ब्लॉक को मध्य प्रदेश सरकार को 30.05% राजस्व हिस्सेदारी का उच्चतम बोली मूल्य मिला। 19 दिसंबर 2019 को उच्चतम बोली लगाने वाली एस्सेल माइनिंग को इसका आशय पत्र प्राप्त हुआ।

मध्यप्रदेश शासन के सरकारी खजाने को इस प्रोजेक्ट से 28,000 करोड़ रुपये प्राप्त होने की गणना है वहीं परियोजना को विकसित करने की पूंजीगत लागत लगभग 2,500 करोड़ रुपये है। आंग्ल भाषा का एक शब्द है “कैपिटल इंफ्यूजन” जिसका सामान्य अर्थ है पूंजी लगाना, और यही पूंजी अब बुंदेलखंड की रत्नगर्भा वसुंधरा के गौरव और सम्मान का मुद्दा बन चुकी है। साथ ही कंपनी द्वारा 12.88% रॉयल्टी, जिला खनिज कोष और अन्य माध्यमों से राज्य के खजाने में जमा कराई जायेगी।

स्थानीय निवासियों का मानना है कि वन थे और रहेंगे, उसकी रक्षा के लिए सदैव हम खड़े हैं पर विकास की वेदी पर मानव विकास का हनन कहाँ तक उचित है। इसका परिचायक यह है कि कुछ दिनों पहले बक्सवाहा निवासियों द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे गए पोस्टकार्ड से। देर से ही सही पर बुन्देलखंडियों ने अपनी आमद दर्ज करा दी है।

सैकड़ों की संख्या में ग्रामवासियों ने एकत्रित होकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा मुख्य न्यायाधीश को पोस्टकार्ड लिखकर बक्सवाहा और छतरपुर के विकास में आ रही बाधाओं को हटाने की मांग करते हुये बंदर हीरा परियोजना को जल्द से जल्द शुरू करने की मांग की है। इस विषय में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लगातार मांग की जा रही है। ग्रामीणों का मानना है कि यह परियोजना एक तरह से उनके द्वारा दशकों से की जा रही मांगो को पूरा करने का एक माध्यम है। तथा इससे जिले की प्रगति, प्रदेश के मानचित्र पर सशक्त उपस्थिति के साथ होगी l जिले का चहुंमुखी विकास होगा।

खजुराहो सांसद एवं मध्यप्रदेश भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदत्त शर्मा ने कुछ दिनों पहले खजुराहो में आयोजित विकासोन्मुखी कार्यक्रम में कहा कि बुंदेलखंड की धरती रत्नगर्भा है। यही बात सूबे के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हाल ही में पन्ना में हुए एक कार्यक्रम के दौरान कही थी।

पर क्या कारण है कि स्थानीय रहवासी इतनी प्रचुर और प्रगाढ़ सांस्कृतिक, भौगोलिक और धरा संपदा होने के बावजूद इस तरह के संघर्षों का सामना कर रहे हैं? एक बार फिर से रुख करते हैं सोशल मीडिया की ओर जो कि इस नए जमाने का द्वि-पक्षीय संवाद का एक सशक्त माध्यम है इस प्रश्न का उत्तर देने में काफी हद तक सक्षम है।

सरसरी तौर पर देखा जाए तो असली हितधारक या अंग्रेजी में कहें तो स्टैक्होल्डर को पुनः छला गया है। जब तक उन्हें सच मालूम पड़ता कि उनकी मांग को एक दूसरी दिशा में मोड़ा जा रहा है तब तक समृद्ध बक्सवाहा की तमन्ना सोशल मीडिया पर अपना अस्तित्व खोती नजर आ सकती है। फ़िर भी देर ही सही, इन ग्रामवासियों ने विकास की नैया पार लगाने का बीड़ा अपने हाथों में ले लिया है।





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