‘कौन बनेगा करोड़पति’ (केबीसी) सबसे लोकप्रिय टीवी कार्यक्रमों में से एक है। इसमें भाग लेने वालों को भारी भरकम धनराशि पुरस्कार के रूप में प्राप्त होती है। हाल में कार्यक्रम के ‘कर्मवीर’ नामक एक विशेष एपीसोड में अमिताभ बच्चन ने पहले से तैयार स्क्रिप्ट के आधार पर यह प्रश्न पूछा कि उस पुस्तक का क्या नाम है जिसे डॉ अम्बेडकर ने जलाया था। सही उत्तर था ‘मनुस्मृति’। उस दिन के कार्यक्रम के अतिथि थे वेजवाड़ा विल्सन, जो जानेमाने जाति-विरोधी कार्यकर्ता हैं और लंबे समय से हाथ से मैला साफ करने की घृणित प्रथा के विरूद्ध आंदोलनरत हैं।इस प्रश्न पर दर्शकों के एक हिस्से की त्वरित प्रतिक्रिया हुई। कुछ लोगों ने प्रसन्नता जाहिर की कि इस प्रश्न से उन्हें उस पुस्तक के बारे में जानकारी मिली जो भयावह जाति व्यवस्था को औचित्यपूर्ण ठहराती है। परंतु अनेक लोग इस प्रश्न से आक्रोशित हो गए। इन लोगों ने इसे हिन्दू धर्म का अपमान और हिन्दू समुदाय को विभाजित करने का प्रयास निरूपित किया।
यह ट्वीट उनके विचारों को सारगर्भित ढंग से प्रतिबिंबित करती है “ऐसा लगता है कि ये लोग किसी भी तरह बीआर अम्बेडकर को हिन्दू विरोधी बताना चाहते हैं जबकि यह सही नहीं है। ये लोग हिन्दू समाज को जाति के आधार पर विभाजित करने पर उतारू हैं।”
कौन बनेगा करोडपती या कार्यक्रमाद्वारे हिंदू धर्मीयांची भावना दुखावल्याबद्दल तसेच अत्यंत सलोख्याने राहणार्या हिंदू व बौद्ध धर्मीयांमध्ये जाणीवपूर्वक तेढ निर्माण करण्याचा प्रयत्न केल्याबद्दल महानायक श्री अमिताभ बच्चन व सोनी टेलिव्हिजन नेटवर्क विरोधात तक्रार नोंदवली.
1/6 pic.twitter.com/PWnUoWxM2M— Abhimanyu Pawar (Modi Ka Parivar) (@AbhiPawarBJP) November 3, 2020
केबीसी के मेजबान और कार्यक्रम से जुड़े अन्य व्यक्तियों के विरूद्ध हिन्दुओं की भावनाएं आहत करने का आरोप लगाते हुए एक एफआईआर दर्ज करवाई गई है। हिन्दू राष्ट्रवादी विमर्श यह साबित करना चाहता है कि अम्बेडकर के विचार उससे मिलते हैं। ये लोग एक ओर अम्बेडकर का महिमामंडन करते हैं तो दूसरी ओर दलितों की समानता के लिए उनके संघर्ष और उनके विचारों को नकारना चाहते हैं।
KBC has been hijacked by Commies. Innocent kids, learn this is how cultural wars are win. It’s called coding. https://t.co/uR1dUeUAvH
— Vivek Ranjan Agnihotri (@vivekagnihotri) October 31, 2020
आरएसएस और उसके संगी-साथी बड़े पैमाने पर अंबेडकर जयंती मनाते हैं। सन् 2016 में ऐसे ही एक कार्यक्रम में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि वे अंबेडकर भक्त हैं। उन्होंने अंबेडकर की तुलना मार्टिन लूथर किंग जूनियर से की थी। इन्हीं मोदीजी ने एक पुस्तक लिखी थी जिसका शीर्षक था ‘कर्मयोग’। इस पुस्तक में कहा गया था कि वाल्मिीकियों द्वारा हाथ से मैला साफ करना, उनके (वाल्मिीकियों) लिए एक आध्यात्मिक अनुभव है। यह दिलचस्प है कि इस कार्यक्रम के अतिथि डॉ बेजवाड़ा विल्सन, हाथ से मैला साफ करने की अमानवीय प्रथा के विरूद्ध कई दशकों से संघर्ष कर रहे हैं।
यह भी दिलचस्प है कि जो लोग मनुस्मृति दहन की चर्चा मात्र को हिन्दू भावनाओं को ठेस पहुंचाना निरूपित करते हैं वे ही पैगम्बर मोहम्मद का अपमान करने वाले कार्टूनों के प्रकाशन को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बताते हैं। इन कार्टूनों के प्रकाशन के बाद हुए त्रासद घटनाक्रम में फ्रांस में चार लोगों की जान चली गई। इन लोगों की हत्या करने वाले इसलिए उद्धेलित थे क्योंकि कार्टूनों के प्रकाशन से उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची थी।
अंबेडकर एक अत्यंत प्रतिभाशाली और उच्च दर्जे के बुद्धिजीवी थे। उन्होंने पूरे देश में जाति और अछूत प्रथा के खिलाफ लंबा संघर्ष किया और हिन्दू धर्म की खुलकर आलोचना की। वे हिन्दू धर्म की ब्राम्हणवादी व्याख्या के कड़े विरोधी थे। वे कबीर को अपना गुरू मानते थे। उनके जीवन और लेखन से हमें पता चलता है कि वे भक्ति परंपरा के पैरोकार थे परंतु उनका मानना था कि हिन्दू धर्म, ब्राम्हणवाद के चंगुल में फंसा हुआ है। वे हिन्दू धर्म को ब्राम्हणवादी धर्मशास्त्र कहते थे। उन्होंने दलितों को पीने के पानी के स्त्रोतों तक पहुंच दिलवाने (चावदार तालाब) और अछूतों को मंदिर में प्रवेष का अधिकार सुलभ करवाने (कालाराम मंदिर) के लिए आंदोलन चलाए थे। वे मनुस्मृति को ब्राम्हणवादी सोच की पैरोकार और प्रतीक मानते थे और इसलिए उन्होंने इस पुस्तक, जिसे हिन्दुओं का एक तबका पवित्र ग्रंथ मानता है, का सार्वजनिक रूप से दहन किया था। आज कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि अब मनुस्मृति की चर्चा व्यर्थ है क्योंकि इस पुस्तक को न तो कोई पढ़ता है और ना ही उसमें कही गई बातों को मानता है।
यह सही है कि इस संस्कृत पुस्तक को अब शायद ही कोई पढ़ता हो। परंतु यह भी सही है कि इसमें वर्णित मूल्यों में आज भी हिन्दुओं के एक बड़े तबके की आस्था है। गीता प्रेस पर अपनी पुस्तक में अक्षय मुकुल बताते हैं कि गोरखपुर स्थित इस प्रकाशन का हिन्दू समाज की मानसिकता और दृष्टिकोण गढ़ने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। गीता प्रेस के स्टाल देश के अनेक छोटे-बड़े रेलवे स्टेशनों पर हैं और इनमें इस प्रकाशन की पुस्तकें, जिनकी कीमत बहुत कम होती है, उपलब्ध रहती हैं।
गीता प्रेस की पुस्तकें मनुस्मृति के मूल्यों का ही प्रसार करती हैं। महिलाओं के कर्तव्यों पर गीता प्रेस की एक पुस्तक को पढ़कर मुझे बहुत धक्का लगा क्योंकि इसमें मनुस्मृति के मूल्यों को ही आसानी से समझ आने वाली भाषा में वर्णित किया गया था। मुझे यह देखकर और धक्का लगा कि इस पुस्तक का मूल्य मात्र पांच रूपये था और इसकी मुद्रित प्रतियों की संख्या पांच लाख से अधिक थी।
ऐसा दावा किया जाता है कि अंबेडकर हिन्दू-विरोधी थे। इस सिलसिले में हमें उनके स्वयं के शब्दों पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा था “हिन्दू धर्म, जाति की अवधारणा पर केन्द्रित कुछ सतही सामाजिक, राजनैतिक और स्वच्छता संबंधी नियमों के संकलन के अलावा कुछ नहीं है”। अम्बेडकर का यह कथन तो प्रसिद्ध है ही कि “मैं एक हिन्दू पैदा हुआ था परंतु एक हिन्दू के रूप में मरूंगा नहीं”। हिन्दू राष्ट्र, जिसकी स्थापना हमारी वर्तमान सरकार का लक्ष्य है, के बारे में भी अंबेडकर के विचार स्पष्ट थे।
देश के विभाजन पर अपनी पुस्तक में उन्होंने लिखा था, “अगर हिन्दू राज वास्तविकता बनता है तो वह इस देश के लिए सबसे बड़ी विपत्ति होगी। हिन्दू चाहे जो कहें, हिन्दू धर्म स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के लिए बहुत बड़ा खतरा है और इस कारण वह प्रजातंत्र से असंगत है। हिन्दू राज को किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए”।
इन सब मुद्दों पर अंबेडकर के इतने स्पष्ट विचारों के बाद भी नरेन्द्र मोदी और उनके साथी एक ओर अंबेडकर का महिमामंडन कर रहे हैं तो दूसरी ओर उनकी विचारधारा और उनकी सोच को समाज से बहिष्कृत करने के लिए हर संभव यत्न कर रहे हैं। मोदी कैम्प से अक्सर भारतीय संविधान के विरोध में आवाजें उठती रहती हैं। वे चाहते हैं कि इस संविधान के स्थान पर एक नया संविधान बनाया जाए। दलित समुदाय में घुसपैठ करने के लिए वे हर संभव रणनीति अपनाते रहे हैं।
जहां अंबेडकर जाति के उन्मूलन के हामी थे वहीं संघ परिवार सामाजिक समरसता मंचों के जरिए यह प्रचार करता है कि जाति व्यवस्था ही हिन्दू धर्म की ताकत है और यह भी कि सभी जातियां बराबर हैं। दलितों को हिन्दुत्व की विचारधारा से जोड़ने के लिए सोशल इंजीनियरिंग की जा रही है। कई कुटिल तरीकों से दलितों को हिन्दू राष्ट्रवादी राजनीति का प्यादा बना दिया गया है। कुछ दलित नेताओं को सत्ता का लालच देकर हिन्दू राष्ट्रवादी कैम्प में शामिल कर लिया गया है। हाल में चिराग पासवान ने कहा था कि वे मोदी के हनुमान हैं।
अंबेडकर के वैचारिक और सामाजिक संघर्षों से प्रेरणा लेकर दलित नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक हिस्सा दलितों की गरिमा और उनकी सामाजिक समानता के लिए संघर्ष कर रहा है। समस्या यह है कि ऐसे नेताओं / कार्यकर्ताओं की संख्या बहुत कम है। इसके अतिरिक्त, उनमें परस्पर विवाद और बिखराव हैं। अगर इन समस्याओं पर काबू पाया जा सके तो बाबासाहेब के उन सपनों को साकार करने में हमें मदद मिलेगी जिन्हें साकार करने के लिए उन्होंने मनुस्मृति का दहन किया था।
(अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)