इंदौर। होली का पर्व हिंदू समाज के लिए सबसे महत्वपूर्ण पर्वों में से एक माना जाता है।
होलिका दहन के पूर्व की जाने वाली पूजा में गुलरिया की माला अनिवार्य सामग्री है जो गोबर से बनाई जाती है लेकिन अब आधुनिकता के इस दौर में इसे बनाने के लिए ना तो गोबर मिलता है न ही अब समय है। साथ ही इसे बनाने में भी लोगों को शर्म सी महसूस की जाने लगी है जिस कारण अब यह बाजार में मिलने लगी है।
गुलेरिया जिसे बडकुले भी कहते हैं। होली का पर्व में यह एक सबसे महत्वपूर्ण सामग्री होती है। कुछ वर्ष पूर्व तक गोबर से बनी यह माला हिंदू समाज के हर घर में बनाई जाती थी लेकिन अब आधुनिकता के इस दौर में इसका महत्व लगातार कम होता जा रहा है।
विगत 4 वर्षों से घर घर बनाई जाने वाली गुलेरिया अब बाजारों में उचित दाम पर मिलने लगी है। गुलेरिया मुख्य रूप से गोबर से बनाई जाती है जो होली के एक सप्ताह पूर्व बनाकर घरों की छतों पर सूखने के लिए जाती थी लेकिन अब इसे बनाने के लिए आसानी से गोबर उपलब्ध नहीं हो पाता इसके अलावा इन्हें बनाने के लिए ना तो किसी के पास समय है और साथ ही शर्म महसूस होने लगी है।
मालवा क्षेत्र में होलिका दहन पर गुलेरिया या बड़कुले का ख़ास महत्व होता है। गाय के गोबर से बनने वाले बड़कुले से होलिका का श्रंगार होता है। इंदौर के एक बाजार में यह बेच रहीं अंतर बाई बताती हैं कि पहले ये हर घर में बनता था लेकिन अब लोगों को गोबर से गंध आती है इसलिए वे यह बनाकर बेचती… pic.twitter.com/qDQTacA2sQ
— Deshgaon (@DeshgaonNews) March 6, 2023
यही कारण है कि गोबर से बनने वाली या गुलेरिया जिसे भी कहा जाता है बाजार में बिकने लगे हैं। इन गुलेरिया का व्यापार मात्र एक दिन का होता है जो अब आम नागरिक इसे एक औपचारिकता मानकर पैसे देकर खरीद रहा है और पूजा की सामग्री में रखकर रात को होलिका दहन की पूजा में चढ़ा रहा है दूर-दराज के गांव से आई अंतर बाई ने बताया कि गुलेरिया अब घरों में नहीं बनती क्योंकि आजकल की महिलाओं को ना तो इसे बनाना आता है और शर्म आने लगी है कि गोबर में हाथ कौन डालें जबकि हम लोग शुद्ध गोबर से बनाते है।
अंतर बाई ने बताया कि यह मात्र एक दिन का व्यापार है जो 4 साल पहले आरंभ किया था शुरू के 2 सालों में तो व्यापार कम मिला लेकिन अब इसकी मांग बहुत ज्यादा हो गई है क्योंकि घर की महिलाओं को आसानी से गोबर उपलब्ध नहीं हो पाता और अगर गोबर मिल भी गया तो इसे बनाने में शर्म आती है और समय भी नहीं है। अंतर भाई ने बताया कि सुबह से लेकर शाम तक गुलरिया की काफी मालाएं बेच चुके हैं जो व्यापार हुआ है उसे हम काफी संतुष्ट है। अंतर भाई के अनुसार होलिका की पूजा में अनिवार्य रूप से लगने वाली या गुलेरिया के माला बाजारों में भी दिखने लगी है ।।
इन गुलरिया को खरीदने वाले ग्राहकों में मीनाक्षी वर्मा ने बताया कि उन्हें बनाना नहीं आता और ना ही गोबर मिल रहा है इस कारण अबे बाजार से खरीद रही है। सुनीता शर्मा ने बताया कि कि कुछ वर्ष पूर्व तक वह अपनी सास के साथ गोबर से गुलरिया घर पर बनाया करती थी लेकिन अब सास नहीं है और हमारे पास समय भी नहीं है इस कारण इन्हें बाजार से खरीद कर पूजा की औपचारिकता पूरी कर रहे हैं।
इस संबंध में महाराज कपिल शर्मा बताते हैं कि होलिका दहन के समय होली का अपने श्रंगार के साथ साथ गोबर की माला पहन कर होली में बैठी थी ताकि ज्यादा आग हो उतनी जल्दी भस्म हो सके , इसके अलावा भगवान विष्णु ने भी यज्ञ में गोबर का ही उपयोग किया था इस कारण होलिका दहन में गोबर से बनाए जाने वाली माला का अपना अलग महत्व है हिंदू समाज के हर घर में इसकी माला बनाई जाना चाहिए पूजा में रखना चाहिए।