धार-बदनावर। पिछले महीने विधानसभा उपचुनाव में अपने ही पुराने नेता और अब भाजपा के मंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव से हार का सामना कर चुकी कांग्रेस के सामने एक बार फिर परीक्षा की घड़ी आ गई है। इस बार चुनौती नगर परिषद चुनावों की है।
बदनावर क्षेत्र में स्थानीय स्तर पर कांग्रेस लगभग नेतृत्वशून्य नजर आ रही है। ऐसे में दत्तीगांव के सामने कांग्रेस कैसे अपने वोट बचा पाएगी यह स्थानीय नेताओं के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रहा है और फिलहाल क्षेत्र में सबसे ज्यादा चर्चाएं इसी बात को लेकर जारी हैं।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बदनावर से राजवर्धन सिंह दत्तीगांव और सैकड़ों कांग्रेसी भाजपा के हो चुके हैं अब कांग्रेस में बहुत कुछ शेष नज़र नहीं आता। ऐसे में पार्टी के युवा और पुराने नेताओं का समन्वय और जीवटता ही उन्हें बचा सकती है लेकिन फिलहाल पार्टी की हालत ठीक नहीं कही जा सकती है।
कांग्रेस के इस हाल का कारण भी उनकी नीतियां ही बताई जाती हैं। क्षेत्र में बीते 20-22 साल में कांग्रेस में रहते हुए दत्तीगांव के सामने कोई ऐसा नेता तैयार नहीं हो पाया था जो उनके आसपास ही नज़र आता हो। इसी का परिणाम है कि आज कांग्रेस में कोई ऐसा झंडाबरदार नहीं है
हालांकि पार्टी में नेता तो कई है पर ऐसा एक भी नहीं है जो दत्तीगांव का हर स्तर पर दमखम से मुकाबला कर सके और अब भाजपा के साथ आकर उनकी सरकार में मंत्री बनकर दत्तीगांव की ताकत और भी बढ़ चुकी है। उनके कमज़ोर पड़ने की तमाम संभावनाएं और आशंकाएं पिछले विधानसभा चुनावों मे धूमिल हो चुकी हैं।
कांग्रेस में रहते हुए 2018 में दत्तीगांव करीब 41 हजार वोट विधानसभा चुनाव जीते थे। वही दत्तीगांव दो साल बाद भाजपा से उपचुनाव लड़े और तमाम दावों को झूठलाते हुए 31 हजार से अधिक वोट हांसिल किए हैं।
इसी तरह की स्थिति आगामी दिनों में नगरीय निकाय के चुनाव के दौरान भी बनने की संभावना लग रही है। कांग्रेस के चार नेता उप चुनाव के समय धारा 307 के केस में गिरफ्तार होकर पिछले दिनों ही जेल से बाहर आए हैं। वे भी अपनी पार्टी के स्थानीय नेताओं के साथ मिलकर आज हर स्तर पर मजबूती से खड़ी भाजपा का चुनावी मुकाबला किस तरह कर पाएंगे यह उनकी तैयारी पर ही निर्भर है।
दूसरी ओर भाजपा विधानसभा उपचुनाव में मिली बड़ी जीत के कारण उत्साह से लबरेज है। उसके पास आज दत्तीगांव जैसा लोकप्रिय नेता और मजबूत संगठन के साथ कार्यकर्ताओं की फौज खड़ी है और ऐसी अनुकूल राजनीतिक परिस्थिति में नगर परिषद के अध्यक्ष का चुनाव लड़ने की आरज़ू रखने वाले नेताओं की कतार लग गई है। जो किसी भी तरह टिकट लाकर अपनी धर्मपत्नी अथवा बहू या बहन को चुनाव लड़वाना चाहते हैं।
ऐसी हालत में यह देखना भी बहुत दिलचस्प हो गया है कि 8-10 दावेदारों में से टिकट तो किसी एक को मिलेगा लेकिन जो टिकट हांसिल नहीं कर सकेंगे क्या वे ईमानदारी से प्रचार-प्रसार में सहयोग करेंगे! और ऐसे में पार्टी का प्रदर्शन कैसा होगा प्रदर्शन कर पाएगी!
हालांकि धार जिले में केवल बदनावर एवं नवगठित गंधवानी नगर परिषद में ही चुनाव होना है। ऐसी स्थिति में पूरे धार जिले का भाजपा संगठन पहले की तरह बदनावर में ही डेरा डालेगा और कांग्रेस के खिलाफ मज़बूत मोर्चाबंदी होना तय है। वैसे यह भी सही है कि ठीक ऐसी ही मोर्चाबंदी तो पिछले निकाय चुनाव में भी की गई थी लेकिन प्रत्याशी को करीब 1900 मतों से पराजित होना पड़ा था।
उस समय कांग्रेस प्रत्याशी अभिषेक टल्ला मोदी ने भाजपा के धर्मेंद्र शर्मा को मात दी थी। तब वे राजवर्धन सिंह दत्तीगांव के दम पर ही जीते थे। जिनकी विनम्रता से क्षेत्र के लोग प्रभावित रहते हैं लेकिन आज हालात बदल चुके हैं। ऐसे में भाजपा मजबूत नजर आ रही है लेकिन राजनीतिक बिसात पर कब कौन बाज़ी मार ले जाए ये परिणाम से पहले कहना ठीक नहीं कहा जाता।