भोपाल-इंदौर के हाट बाजार में चमक रही बगैर पालिश की दाल और बिना केमिकल का गुड़


भोपाल और इंदौर के हाट बाजार में गाडरवारा की बगैर पालिश की दाल चमक रही है तो नरसिंहपुर करेली का बिना केमिकल का गुड़ जायकेदार बना हुआ है। भोपाल के डीबी मॉल के पीछे एवं इंदौर के तुकोगंज में हाट बाजार में जिले के दोनों उत्पाद आम लोगों की पसंद बने हुए हैं।


ब्रजेश शर्मा ब्रजेश शर्मा
नरसिंहपुर Updated On :
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नरसिंहपुर। भोपाल और इंदौर के हाट बाजार में गाडरवारा की बगैर पालिश की दाल चमक रही है तो नरसिंहपुर करेली का बिना केमिकल का गुड़ जायकेदार बना हुआ है। भोपाल के डीबी मॉल के पीछे एवं इंदौर के तुकोगंज में हाट बाजार में जिले के दोनों उत्पाद आम लोगों की पसंद बने हुए हैं।

गाडरवारा की दाल प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में लजीज जायके के लिए जानी जाती है जबकि नरसिंहपुर करेली का बिना केमिकल का गुड़ तो वैसे ही लोगों की जुबान में भी मिठास घोल देता है।

यहां बगैर पालिश की दाल एक से पांच किलो तक के पैक में है। तुअर की देशी प्रजाति सबसे ज्यादा जायकेदार होती है। यह दाल जल्दी पकती है और सौंधेपन के लिए मशहूर है।

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नरसिंहपुर करेली का गुड़ कई फ्लेवर और स्वाद में है। अदरक, इलायची, आंवला फ्लेवर में गुड़ की पैकिंग की गई है। जिले के गुड़ को करेली ब्रांड के नाम से तैयार किया गया है। गुड़ हर वजन वाले पैक में उपलब्ध है।

उपसंचालक कृषि राजेश त्रिपाठी के मुताबिक, भोपाल और इंदौर मेले में 70 किसान अपना प्रोडक्ट लेकर पहुंचे हैं। इन किसानों में स्वसहायता समूह और एफपीओ से जुड़े किसान हैं। 10 जनवरी तक यह मेला चल रहा है जिसमें जिले के दोनों उत्पाद धूम मचाए हैं।

50 हजार किसान और करीब 25-30 हजार मीट्रिक टन तुअर दाल का उत्पादन – 

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जिले में लगभग 45 हजार हेक्टेयर में तुअर दाल की खेती होती है जिससे 50 हजार किसान जुड़े हैं। करीब 25-30 हजार मीट्रिक टन दाल का उत्पादन होता है। इस मामले में गाडरवारा के एक दाल व्यापारी हंसराज मालपानी का कहना है कि गाडरवारा की दाल में खास बात यह है कि वह 240 दिन तक जमीन से जुड़ी रहती है और फिर उसके पॉलिश में कोई केमिकल का उपयोग नहीं किया जाता बल्कि सोयाबीन के तेल से ऑयलिंग होती है।

गन्ने का 70 हजार हेक्टेयर रकबा – 

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जिले में गन्ने का 70 हजार हेक्टेयर रकबा है। दीपावली से गुड़ भट्टियां चालू हो जाती है। हर सीजन में करीब साढ़े 4-5 हजार गुड़ भट्टियां होती है जिनमें गुड़ बनने का काम शुरू होता है जो होली के आसपास तक अर्थात मार्च तक चलता है। इस दरमियान बाजार में एक लाख मीट्रिक टन विक्रय के लिए उपलब्ध रहता है इसलिए जिले का गुड़ देश-विदेश में भी पसंद किया जाता है।



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