आदिवासी किसान पहाड़ पर बिना पानी के ही उगा रहे जिगनी, सोयाबीन का उम्दा और सस्ता विकल्प


खाद्य तेलों के लिए बेहतर विकल्प है राम तिल , कम लागत और कम देखभाल में मिल सकता है मिल सकता है अच्छा मुनाफा


ब्रजेश शर्मा
नरसिंहपुर Updated On :

नरसिंहपुर। नर्मदा किनारे बसे इस ज़िले के आदिवासी इन दिनों सोयाबीन का एक बेहतर विकल्प खोजकर उसकी खेती कर रहे हैं और इसमें उनका साथ स्थानीय कृषि विभाग दे रहा है। नरसिंहपुर के पहाड़ी इलाकों में किसान अब जिगनी यानी रामतिल की फसल उगा रहे हैं। जिले में तिलहन की फसल की मांग बढ़ने के कारण कृषि विभाग ने स्थानीय किसानों के साथ मिलकर यह कदम उठाया है। जिगनी की फसल पहले इलाके में होती थी लेकिन सोयाबीन के आने के बाद इसका उपयोग और इसके प्रति जागरुकता कम होती रही और अब जब सोयाबीन की जगह दलहन ने ले ली है तो एक बार फिर जिगनी की ओर उम्मीद से देखा जा रहा है।

आज से डेढ़ दो दशक पहले नरसिंहपुर जिला खरीफ सीजन का सोयाबीन उत्पादक जिला था। मध्य प्रदेश में सबसे अधिक सोयाबीन की पैदावार नरसिंहपुर में होती थी। अब लगभग डेढ़ लाख हेक्टर क्षेत्र के खरीफ रकबे में 1.60 लाख हेक्टेयर से अधिक रकबा सोयाबीन का होता था।

वहीं इसके बाद तिलहन की फसल जिले में प्रचुरता से बढ़ी और अब हाल यह है कि मौजूदा समय में यह 15 से 20 हज़ार हेक्टर में जाकर सिमट गई है। ज़ाहिर है ऐसे में तेल वाली फसल यानी तिलहन की जरुरत बढ़ी है। ऐसे में कृषि विज्ञान केंद्र ने पहाड़ी इलाकों में आदिवासी किसानों के साथ मिलकर यहां नया प्रयोग किया है और अब तक यह प्रयोग सफल होता भी नजर आ रहा है।

 

सोयाबीन का बेहतर विकल्प जिगनी की फसल भी यहां सिमट रही है। दरअसल इलाके में जिगनी की फसल के प्रति किसानों में जानकारी का अभाव भी इसके सीमित होने की एक वजह है।

जिगनी जिसे रामतिल भी कहा जाता है। तिलहन की यह फसल पहाड़ी इलाकों के लिए खरीफ की मुख्य फसल हो सकती है। जिसके लिए ना तो सिंचाई की जरूरत है ना ही अन्य फसलों की तरह देखभाल की।

जिगनी एक ऐसी फसल है जिसमें न तो कोई खास रोग लगता है और अगर इसमें रोग लगता भी है तो गोबर की खाद या जैविक खाद के साथ लगा रहे हैं।

कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक एसआर शर्मा ने बताया कि इलाके में पचास किसानों को सिवनी से लाकर यह फसल दी गई है। उन्होंने बताया इसकी बुवाई अगस्त में होती है और  नवंबर तक इसकी कटाई हो जाती है। जिगनी में भरपूर तेल पाया जाता है और यह फसल बेहद कम समय में हो जाती है। उन्होंने बताया कि जिन किसानों को यह फसल दी गई है वे इसे सामान्य से भी कम पानी देकर देसी खाद से ही उगा रहे हैं।

 

जिगनी फसल अच्छी पैदावार देती थी और इससे किसानों को आय भी मिलती है लेकिन रामतिल की यह फसल कृषि प्रधान नरसिंहपुर जिले से गायब हो रही है जिसे बचाने की कोशिशें भी लगातार जारी हैं।

नरसिंहपुर जिले के दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्रों में अब यह फसल सिर्फ 10 से 30 – 35 एकड़ में जाकर सिमट गई है। जिगनी या राम तिल की फसल तिलहन का बेहतर विकल्प है। खेती-बाड़ी से लुप्त हो रही इस तरह की जिंस को बचाने की जरूरत है। किसानों को इसके लिए प्रोत्साहन की जरूरत है।

सूरजमुखी की तरह फूल और बीज देने वाली यह फसल इस समय पक कर तैयार हो गई है। मध्य प्रदेश सरकार तिलहन विकास कार्यक्रम में इस तरह की लुप्त हो रही फसलों को अगर प्रोत्साहित करती है तो आने वाले समय में यह खाद्य तेलों के लिए एक बेहतर विकल्प है।

 


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