अकेली लेकिन अडिग: शांति बाई की मेहनत ने बदली तकदीर, हर साल बेच रही हजारों बोरियां जैविक खाद


नरसिंहपुर की आदिवासी महिला शांति बाई गोंड ने अकेले दम पर वर्मी कंपोस्ट बनाने का सफर शुरू किया। स्व-सहायता समूह की सभी महिलाएं पीछे हट गईं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। आज वे हर साल हजारों बोरियां जैविक खाद बेचकर आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश कर रही हैं। उनकी यह कहानी महिला सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता की प्रेरणा है।


ब्रजेश शर्मा
नरसिंहपुर Updated On :

 जब हालात मुश्किल हों और साथी एक-एक कर साथ छोड़ते जाएं, तो अक्सर लोग हार मान लेते हैं। लेकिन जरजोला गांव की शांति बाई गोंड (मुन्नी) ने अपने इरादों को डगमगाने नहीं दिया। उन्होंने अपने दम पर वर्मी कंपोस्ट (केंचुआ खाद) बनाने का सफर शुरू कियाऔर आज हर साल हजारों बोरियां खाद बेचकर आत्मनिर्भर बन चुकी हैं

कभी इस सफर में उनके साथ 24 और महिलाएं थीं, लेकिन समस्याओं और चुनौतियों के कारण सभी पीछे हट गईंशांति बाई ने अकेले ही इस काम को जारी रखा, तमाम अड़चनों के बावजूद उन्होंने इसे अपने जीवन का आधार बना लिया। आज वे गांव में जैविक खेती को बढ़ावा देने वाली एक प्रेरणादायक शख्सियत बन चुकी हैं

कैसे शुरू हुआ सफर?

तीन-चार साल पहले शांति बाई को आजीविका मिशन के तहत वर्मी कंपोस्ट बनाने की ट्रेनिंग मिली। उस समय उन्हें एक स्व-सहायता समूह का हिस्सा बनाया गया, जिसमें 24 महिलाएं थीं। शुरुआती दिनों में सभी महिलाओं ने मिलकर जैविक खाद बनाने का काम शुरू किया। लेकिन धीरे-धीरे जब खरीदार नहीं मिले, संसाधन कम पड़े और काम में कठिनाई आई, तो महिलाएं एक-एक कर समूह छोड़ने लगीं

अकेले बढ़ाया कदम, मिली पहचान

जब समूह की बाकी सभी महिलाओं ने हार मान ली, तो शांति बाई ने ठान लिया कि वे इस काम को किसी भी हाल में आगे बढ़ाएंगी। उन्होंने अपने घर के पिछवाड़े में गोबर इकट्ठा करना शुरू किया और बाजार से केंचुए खरीदकर वर्मी कंपोस्ट बनाना शुरू किया

शुरुआत में लोगों को उन पर भरोसा नहीं था, लेकिन जैसे-जैसे उनकी खाद की गुणवत्ता का पता चला, वैसे-वैसे ग्राहकों की संख्या बढ़ती गई। अब स्थिति यह है कि गांव के किसान और शहरी लोग खुद उनके घर आकर खाद खरीदते हैं

मुश्किलें आईं, लेकिन हौसला नहीं टूटा

शांति बाई के सफर में हर कदम पर मुश्किलें आईं

  • गोबर लाने के लिए कोई साधन नहीं – जिस जगह वे गोबर इकट्ठा करती हैं, वहां ट्रैक्टर नहीं पहुंच सकता। इसलिए उन्हें ट्राली से गोबर तसले में भर-भरकर लाना पड़ता है
  • खाद बनाने के लिए पानी खरीदना पड़ता है – यह उनके लिए एक बड़ा खर्च है, लेकिन उन्होंने इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना लिया।
  • शुरुआत में खरीदार नहीं मिलते थे – लेकिन जैसे-जैसे लोगों को जैविक खाद के फायदों का पता चला, उनकी खाद की मांग बढ़ती गई।

अब हर साल हजारों बोरियां बेच रही हैं जैविक खाद

आज शांति बाई सफलता की नई ऊंचाइयों पर पहुंच चुकी हैं

  • हर साल हजारों बोरियां जैविक खाद बेच रही हैं
  • गांव के किसान जैविक खेती के लिए उनसे खाद खरीद रहे हैं
  • घरों में बागवानी करने वाले लोग भी उनकी खाद को पसंद कर रहे हैं
  • अब वे अपने पूरे परिवार का पालन-पोषण इसी काम से कर रही हैं

संघर्ष से सफलता तक – एक मिसाल

शांति बाई की कहानी सिर्फ उनकी मेहनत की नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता की मिसाल भी है
उन्होंने एक बार भी हार नहीं मानी और अपने दम पर खुद की पहचान बनाई। अब वे गांव की दूसरी महिलाओं के लिए भी प्रेरणा बन चुकी हैं

“जहां चाह, वहां राह” – शांति बाई ने यह साबित कर दिया कि अगर हिम्मत और मेहनत हो, तो कोई भी मुश्किल बड़ी नहीं होती


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