इस प्रयोग में शामिल ये आठ किसान बदल सकते हैं खेती का तरीका


अगर यह सफल होता है तो केमिकल फर्टिलाइजर वाली खेती का चलन कम होगा


ब्रजेश शर्मा
नरसिंहपुर Updated On :
संकेतात्मक चित्र


नरसिंहपुर। जैविक खेती के बाद एक नया प्रयोग किसानों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। जिले में प्राकृतिक खेती के प्रयोग शुरू किए गए हैं। जिले के 8 किसानों को प्राकृतिक खेती में फसल प्रबंधन के तौर तरीके बता कर उन्हें आवश्यक सामग्री कृषि विज्ञान केंद्र द्वारा उपलब्ध कराई गई है।

जिले में उन्नत तरीके से खेती के अलावा अब जैविक खेती पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। जैविक खाद में गोबर खाद ,वर्मी कंपोस्ट आदि के प्रयोग हो रहे हैं। इन प्रयोगों की वजह से जिले में कई जैविक उत्पाद जैसे जैविक गेंहू, गुड़, सब्जी, दलहन में अरहर , मूंग दाल ,आदि के प्रयोग सफल रहे हैं। वहीं अब प्राकृतिक कृषि के जरिए एक बार फिर प्राचीन खेती पद्धति के प्रयोग के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

प्राकृतिक खेती मिट्टी के मूल एवं प्राप्त स्वरूप को बनाए रखने की पद्धति है। इसमें रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग नहीं होता। इस पद्धति से पर्यावरण न केवल अनुकूल रहेगा बल्कि फसलों की लागत में भी कमी आएगी।

प्राकृतिक खेती में पोषक तत्वों के रूप में गोबर एवं गोमूत्र के जरिए जीवाणु खाद ,फसल अवशेष एवं प्रकृति में उपलब्ध पोषक तत्व उपलब्ध कराए जाने का प्रयोग है। किसानों को प्राकृतिक खेती में प्रकृति में उपलब्ध जीवाणु मित्र कीटों और जैविक कीटनाशकों के द्वारा फसल की सुरक्षा बताई गई है।

 

खेती की पुरानी विधियां

यहां कृषि विज्ञान केंद्र में पादप संरक्षण विशेषज्ञ डॉ एसआर शर्मा ने प्राकृतिक खेती के मुख्य आधार बीजामृत जिसके जरिए बीज उपचार किया जाता है  वहीं जीवामृत जिसमें मिट्टी में पोषक तत्व प्रबंधन होता है, जल प्रबंधन होता है।घनजीवामृत, नीमास्त्र, ब्रह्मास्त्र, अग्नि अस्त्र पद्धतियां किसानों के मुताबिक उनके लिए उत्साहवर्धक रोचक रहीं। उन्हें इस पद्धति की विधि दिखाई गई। उनकी शंकाओं और जिज्ञासाओं का समाधान किया गया। इस दौरान किसानों को सहजीवन और मिश्रित फसल प्रणाली बताई गई है। यहां किसानों को बताया गया कि प्राकृतिक खेती और जैविक खेती में काफी अंतर है।

पहले आठ एकड़ में हो रहा प्रयोग
किसान फिलहाल यह प्रयोग 8 किसान एक-एक एकड़ में कर रहे हैं। यह दावा किया जा रहा है कि यह प्रयोग सफल रहेगा बेहतर उत्पादन देगा। अगर ऐसा होता है तो यह किसान अपना रकबा धीरे-धीरे बढ़ाएंगे। किसानों को बताया गया कि दिनों-दिन महंगी होती जा रही खेती का एक मुख्य कारण यह है कि भारी मात्रा में महंगे रासायनिक खादों का इस्तेमाल। रसायन जिनसे मिट्टी की गुणवत्ता खराब हो रही है और खेत बंजर हो रहे हैं।

इस मौके पर प्राकृतिक खेती में पोषक तत्व प्रबंधन पर जरूरी तथ्य बताए गए। पौधों के अच्छे स्वास्थ्य और अधिक पैदावार के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले जैविक खाद और अन्य चीजों के बारे में बताया गया। यहां किसानों को बताया गया कि मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाने और फसल के अधिक उत्पादन के लिए जीवामृत खेती एक वरदान की तरह है।

इसमें जीवामृत मिट्टी में कार्बनिक अवशेषों को सड़ाने में मदद करता है और मिट्टी को उपजाऊ बनाकर उसकी गुणवत्ता में सुधार करता है इसलिए इस तरह पुराने तरीके की यह खेती को बेहतर तरीके से किया जा सकता है।

केंचुए की विष्टा में 7 गुना नाइट्रोजन ,फास्फोरसः  पादप संरक्षण विशेषज्ञ डॉ. एसआर शर्मा ने प्राकृतिक खेती में उर्वरा शक्ति की वृद्धि, खरपतवार नियंत्रण एवं मिट्टी में नमी की कमी के बचाव के तौर तरीके बताए। उनके द्वारा बताया गया कि देसी केंचुए में उसकी विष्ठा में सामान्य मिट्टी की अपेक्षा 7 गुना नाइट्रोजन, 9 गुना फास्फोरस और 11 गुना पोटाश होता है जो जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है। केंचुए की विष्टा मिट्टी की ऊपरी परत पर होती है तो इससे पानी की बचत होती है और भूमि से कार्बन नहीं उड़ता और हवा की नमी एकत्रित कर पौधों को देती है। इससे सूक्ष्म पर्यावरण का निर्माण होता है।


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