आदिवासी गांवों की इन लड़कियों को मज़बूत बनाने आस्ट्रेलिया से लौटी देश की बेटी


अब बालिकाओं की सशक्तिकरण के लिए राष्ट्र सहायक में कैंप


ब्रजेश शर्मा ब्रजेश शर्मा
नरसिंहपुर Updated On :

आदिवासी बहुत गांव भामा, लम्हेटा, गुर्रा की जो बालिकाएं, युवतियां घर से निकलने में झिझकती- डरती थीं, बात करने से बचती थीं ,आज वह बालिकाएं कुछ पल में ही किसी भी व्यक्ति को पलक झपकते धराशायी कर सकती हैं, उन्हें अब किसी से खौफ नहीं है। ये इन लड़कियों में पैदा हुआ आत्मविश्वास ही है कि अब वह पुलिस भर्ती और अग्निवीर जैसी नौकरियों के लिए तैयारी कर रहीं हैं।

विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में अपनी दक्षता को आगे बढ़ाते हुए कंधे से कंधा मिला रही हैं। यह बदलाव आदिवासी बहुल गांव में अचानक नहीं आया है बल्कि इसके पीछे बेहद कड़े प्रयास हैं। ये प्रयास ऑस्ट्रेलिया की राजधानी सिडनी में रहने वालीं मंजुला सुधीर राव के हैं। जो करीब 15 साल पहले शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के संपर्क में आईं आई तो उनके आध्यात्मिक प्रभाव से वह झोतेश्वर पहुंची।

साल में एक या दो बार आकर वह पर परमहंसी गंगा आश्रम में धार्मिक और आध्यात्मिक सत्संग प्राप्त करतीं, इसी बीच उन्होंने आसपास के आदिवासी बहुल गांवों में देखा कि गरीबी का प्रभाव बच्चों की शिक्षा में बहुत बड़ा बाधक है, खास तौर पर लड़कियां इससे ज्यादा प्रभावित हैं। जो कि पांरपरिक तौर पर समाज में पिछड़ती ही जा रहीं थीं। वे कहती हैं कि इसी दौरान निर्भया हत्याकांड ने उन्हें और भी परेशान किया। इसके बाद से ही उन्होंने इस क्षेत्र में लड़कियों को सक्षम बनाने के लिए प्रयास  करने की सोची।

Deshgaon Narsinghpur News: Manjula Rao with school girl
मंजुला राव, स्कूल की छात्राओं के साथ

मंजुला राव बताती हैं कि उन्होंने यह समझ लिया कि बच्चों को आत्मरक्षा के लिए तैयार करना ही इस दिशा में एक ऐसा कदम है जो न केवल उनकी बल्कि समाज की कई बहुत सी पीड़ित शोषित लड़कियों- युवतियों, महिलाओं के लिए एक सशक्त सहारा बन सकता है। उन्होंने शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती से इस विषय पर चर्चा की तो शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जो खुद निर्भया हत्याकांड से बहुत अधिक अंदर से दुखी हो गए थे उन्होंने प्रसन्नता जताई और मंजुला को इस नेक कार्य के लिए आशीर्वाद दिया l मंजुला ने इन बालिकाओं के उन्नयन का जो बीड़ा उठाया तो अब वह भी जारी है।

अब तक मंजुला आदिवासी दलित पिछड़े करीब 6 गांव की बालिकाओं के लिए विशेष कैंप लगाकर 6-6 माह साल भर ताइक्वांडो प्रशिक्षण से इतना निपुण कर दिया है कि वह आत्मरक्षा के साथ-साथ आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ी है। ये लड़कियां अब शिक्षा की मुख्य धारा में शामिल हुई हैं।

जो लड़कियां कभी घर की दहलीज से और गांव की परिधि से बाहर नहीं निकलती थी, गांव की स्कूल में ही ज्यादा से ज्यादा आठवीं पढ़कर पढ़ाई छोड़ देती थी वह अब कॉलेज और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वह गांव से अब जबलपुर या दूसरे महानगरों में जाकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही हैं। कोई पुलिस सेवा तो कोई अग्नि वीर जैसी शारीरिक दक्षता की परीक्षा में आगे जाकर अपना परचम फहरा रही हैं।

मंजुला राव बताती हैं कि उन्होंने जब ऑस्ट्रेलिया में रहते हुए भारत में बार-बार लड़कियों के साथ गलत होने की खबरें पढ़ती सुनती थी तो दुख होता था। उन्हें पीड़ा होती थी, कहती हैं कि वे समझती थीं कि गांव की बच्चियां तो अपने साथ हुए किसी बुरी घटना को लोक लज्जा के कारण कह भी नहीं पाती  होंगी और इसी के चलते उनके मन में कुछ नया करने का विचार आया था।

मंजुला राव न केवल लड़कियों को शिक्षित कर रही हैं बल्कि आदिवासी गांव में बरसात के पानी को रोकने, उसे थामने के लिए भी उन्होंने कई जल संरचनाएं बनवाई हैं। उन्होंने गांव के लोगों को औषधि वाले पौधे लगाने की प्रेरणा देखकर उनका सहयोग भी किया।

लड़कियों को सशक्त करने का यह उनका अभियान जारी है, वह ऐसी बालिकाओं के लिए न केवल शुल्क प्रशिक्षण उपलब्ध करा रही हैं बल्कि गरीब  लड़कियों की शिक्षा और उनके उन्नयन के लिए आर्थिक सहायता भी दे रही हैं, जब भी वह ऑस्ट्रेलिया से यहां आती हैं तो वह इतना कुछ कर जाती हैं कि कई समय तक बालिकाएं उसी के आधार पर संबल प्राप्त कर पाती हैं, उन्होंने पिछले दिनों राष्ट्र सहायक हाई स्कूल में गरीब बालिकाओं के लिए प्रशिक्षण की शुरुआत की। इस मौके पर ब्रह्मचारी अचलानंद , चौ. राजेश जैन, सरदार मंजीत सिंह, एडवोकेट दिनेश सोनी सहित बड़ी संख्या में ग्रामीण जन मौजूद रहे।