धार। कहने को तो नीति आयोग के अनुसार, प्रदेश में अलीराजपुर जिला गरीबी में सबसे पहले स्थान पर है तो झाबुआ जिला दूसरे स्थान पर। लेकिन इन गरीब आदिवासी क्षेत्रों में शराब से करोडों रुपयों की कमाई की जा रही है।
मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य जिले अलीराजपुर और झाबुआ सरकार के लिए शराब से करोडों रुपयों की कमाई वाले जिले बन गए हैं। यहां अगर आबकारी विभाग के आंकड़े देखें तो अलीराजपुर जिले से वर्ष 2021-22 के लिए दस माह हेतु दिए गए ठेकों से 90 करोड़ रुपयों का राजस्व जुटाया जाएगा।
वहीं झाबुआ जिले की शराब दुकानों से दस माह में 1.70 करोड़ रुपयों का राजस्व जुटाया जाएगा जबकि धार में 240 करोड़ रुपयों के शराब के ठेके के बंदोबस्त हुए हैं।
हैरत करने वाली बात यह भी है कि इन जिलों अलीराजपुर व झाबुआ में 70 प्रतिशत से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन करने वाली है। उनमें से भी 40 प्रतिशत से भी अधिक जनसख्या रोजगार के लिए जिलों से बाहर पलायन हर साल कर जाती है।
ऐसे में किस प्रकार से इन जिलों में करोड़ों रुपयों की शराब बेची जा सकती है। इससे स्पष्ट प्रतीत होता है कि ये आदिवासी बाहुल्य जिले सरकार व शराब माफियाओं के लिए अवैध कारोबार का क्षेत्र बने हुए हैं।
यहां से गुजरात व राजस्थान के जिलों की सीमाएं लगी होने से यहां से बड़ी संख्या में राजस्थान व मध्यप्रदेश के अन्य जिलों से अवैध शराब लाकर गुजरात के जिलों में भेजी जाती है जोकि शराब माफियाओं की कमाई का बड़ा जरिया है।
इसमें किसी न किसी रूप से आबकारी व पुलिस विभाग की मिलीभगत भी रहती है इसलिए इन जिलों में शराब माफिया बड़ी बोलियां लगाकर ठेके लेते हैं। ऐसे ही झाबुआ जिले के गुजरात प्रांत से लगे कई क्षेत्रों की शराब दुकानें करोड़ों रुपयों में जाती है जबकि इन गांवों की जनसंख्या एक हजार से भी कम है और आदिवासियों की आमदनी भी इतनी नहीं।
फिर भी वठ्ठा, मदरानी, बरझर, कठिवाडा आदि क्षेत्रों की दुकानें बड़ी बोलियों में जाती हैं जहां से आसानी से शराब को मध्यप्रदेश से गुजरात अवैध रूप से भेजा जा रहा है इसीलिए इस जिले में आबकारी अधिकारी भी मनचाही फीस देकर अपनी पदस्थापना करवाते हैं और एक बार आने के बाद यहां से वापस जाने का नाम नहीं लेते हैं।
अलीराजपुर के पुलिस अधीक्षक मनोज कुमार सिंह का कहना है कि अवैध शराब माफियाओं के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने के निर्देश दिए गए हैं और उनके खिलाफ एक्शन प्लान बनाकर कार्यवाही की जा रही है।
नीति आयोग की रिपोर्ट – प्रदेश के छह आदिवासी जिलों में आधी से ज्यादा आबादी गरीबी रेखा के नीचे
नीति आयोग के बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) के अनुसार गरीब राज्यों में मध्यप्रदेश चौथे स्थान पर है। सूचकांक के अनुसार, मध्यप्रदेश की 37% आबादी गरीब है यानी प्रदेश के करीब ढाई करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन-यापन कर रहे हैं।
रिपोर्ट का आधार ये तीन मानक –
भारत के एमपीआई के तीन मानक हैं, स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर- जो पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, प्रसवपूर्व देखभाल, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, खाना पकाने के ईंधन, स्वच्छता, पीने के 12 संकेतकों द्वारा दर्शाए जाते हैं।
पानी, बिजली, आवास, संपत्ति और बैंक खाते भी इसमें शामिल हैं। रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड के सभी जिलों में 40% से अधिक आबादी गरीबी की मार झेल रही है।
अलीराजपुर में सबसे ज्यादा गरीब –
अलीराजपुर में सबसे अधिक 71% आबादी गरीब है। इसके बाद पड़ोसी झाबुआ में 69% आबादी गरीब है। बड़वानी में 62% लोग गरीब हैं। ये इलाके कुपोषण के भी शिकार हैं।
2011 की जनगणना के अनुसार भारत का सबसे कम साक्षर जिला अलीराजपुर समग्र विकास के वादे के साथ 17 मई 2008 को झाबुआ से अलग जिला बनाया गया था। गठन के 13 साल बाद भी यह मध्यप्रदेश का सबसे गरीब जिला है।