‘रमज़ान में मौत’ लिखने वाले साहित्यकार मंज़ूर एहतेशाम नहीं रहे


पहली कहानी ‘रमज़ान में मौत’ साल 1973 में छपी, तो पहला उपन्यास ‘कुछ दिन और’ साल 1976 में प्रकाशित हुआ। लेखन के चलते वह वागीश्वरी पुरस्कार, पहल सम्मान, पहल सम्मान और पद्मश्री से अलंकृत हो चुके हैं।


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late Manzoor Ahtesham

भोपाल। सोमवार की सुबह मध्यप्रदेश ही नहीं देश के साहित्य जगत को उदास कर गई। मशहूर साहित्यकार मंजूर एहतेशाम फानी दुनिया को अलविदा कह गए। पदमश्री मंजूर एहतेशाम की तबीयत बीते कुछ दिनों से नासाज़ चल रही थी।

उनके निधन से साहित्य जगत में सन्नाटा छा गया। भोपाल में 3 अप्रैल, 1948 को जन्मे मंजूर एहतेशाम को घरवाले इंजीनियर बनाना चाहते थे सो इंजीनियरिंग मे दाखिला तो ले लिया लेकिन पढ़ाई अधूरी छूट गई। पहले दवा बेचने का काम किया और फिर फ़र्नीचर बेचने लगे। बाद में इंटीरियर डेकोर का भी काम करने लगे पर लेखन हर दौर में जारी रहा।

पहली कहानी ‘रमज़ान में मौत’ साल 1973 में छपी, तो पहला उपन्यास ‘कुछ दिन और’ साल 1976 में प्रकाशित हुआ। लेखन के चलते वह वागीश्वरी पुरस्कार, पहल सम्मान, पहल सम्मान और पद्मश्री से अलंकृत हो चुके हैं।

मध्यवर्गीय मुस्लिम समाज मंजूर एहतेशाम की कहानियों में अपनी समूची चिंता, चेतना और प्रमाणिकता के साथ प्रकट होता रहा। स्थानीयता उनके कथानक का हमेशा अभिन्न हिस्सा बनी रही व्यापक मानवीय संवेदनाओं को वे हमेशा ही अपनी कहानियों और उपन्यासों में पिरोते रहे।

उपन्यास ‘सूखा बरगद’ पर उन्हें श्रीकान्त वर्मा स्मृति सम्मान और भारतीय भाषा परिषद, कलकत्ता का पुरस्कार, ‘दास्तान-ए-लापता’ उपन्यास पर वीरसिंह देव पुरस्कार, तसबीह (कथा-संग्रह) पर वागीश्वरी पुरस्कार तथा 1995 में समग्र लेखन पर पहल सम्मान, 2003 में राष्ट्रीय सम्मान ‘पद्मश्री’ से अलंकृत नवाजा गया।

 

साभारः जोश-होश मीडिया 


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