खरगोन। सूर्य उपासना का पर्व समूचे जिले में श्रद्धा भक्ति के साथ मनाया गया। सुबह से ही नर्मदा तटों पर स्नान के लिए श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगने लगा। यहां ठंड और कोहरे पर आस्था भारी नजर आई।
महेश्वर, मंडलेश्वर, माकडखेड़ा, नावड़ातौड़ी जैसे नर्मदा तटों पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु स्नान के लिए पहुंचे। नवग्रह मंदिर में भी ग्रहों के राजा सूर्यदेव की अगवानी का महापर्व उत्सवी माहौल में मनाया गया।
यहां मकर संक्रांति के उपलक्ष्य में मंदिर में विशेष साज-सज्जा एवं श्रृंगार किया गया। नवग्रहों के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं का उत्साह चरम पर रहा। नवग्रह मंदिर में दर्शन के लिए सुबह से ही दर्शनार्थियों की भीड़ जुटने लगी थी। हजारों श्रद्धालुओं ने दर्शन लाभ लिया।
यहां दर्शन, पूजन के बाद मंदिर परिसर में ही श्रद्धालुओं ने भगवान सत्यनारायण की कथा भी कराई। इसके बाद जरुरतमंदों को चावल, तिल-गुड़, कंबल आदि का दान भी किया। इसी के साथ हल्दी-कुमकुम की शुरुआत भी हो गई।
ब्रह्म मुहूर्त में हुआ पूजन –
पंडित लोकेश जागीरदार ने बताया कि मकर संक्रांति के महापर्व पर नवग्रह की अधिष्ठात्री बगलामुखी देवी, ग्रहों के राजा सूर्यदेव सहित नवग्रहों का भव्य श्रृंगार किया गया। ब्रह्म मुहूर्त में मंदिर में विराजमान बगलामुखी देवी, ब्रह्मास्त्र, सूर्यचक्र, सूर्यदेव सहित नवग्रहों का महापूजन, महाश्रृंगार कर प्रथम महाआरती सुबह हुई।
मंदिर परिसर में 101 पंडितों द्वारा सत्यनारायण कथा करवाई गई। श्रद्धालुओं के विशाल समूह के लिए अलग-अलग लाइन लगाने, रेलिंग, पार्किंग व जल की व्यवस्था आदि के सारे इंतजाम किए गए थे।
मंदिर में पड़ती है सूर्य की पहली किरण –
माना जाता है कि नवग्रह मंदिर देशभर में एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां सिर्फ मकर संक्रांति के दिन ही सूर्य की पहली किरण, सूर्य प्रतिमा पर पड़ती है। पुजारी जागीरदार का कहना है कि मकर संक्रांति सूर्य की आगवानी का पर्व होता है। नवग्रह मंदिर सूर्य प्रधान है। यहां गर्भगृह में सूर्य की मूर्ति बीच में विराजित है, मूर्ति के आसपास अन्य ग्रह हैं।
ज्योतिष सिद्धांतों से की गई है मंदिर की रचना –
प्राचीन ज्योतिष के सिद्धांतों के अनुसार मंदिर की रचना की गई है। मंदिर में प्रवेश करते समय सात सीढ़ियां हैं जो सात वार का प्रतीक हैं। इसके बाद ब्रह्मा, विष्णु स्वरूप के रूप में मां सरस्वती, श्रीराम और पंचमुखी महादेव के दर्शन होते हैं। फिर गर्भगृह में जाने के लिए जहां 12 सीढ़ियां उतरना होती हैं जो 12 महीने का प्रतीक हैं।
मकर संक्रांति पर सूर्य मंदिर में सूर्य की पहली किरण, मंदिर के गुंबद से होते हुए भगवान सूर्य की मूर्ति पर पड़ती है। गर्भगृह में नवग्रह के दर्शन होते हैं। इसके बाद दूसरे मार्ग पर फिर 12 सीढ़ियों से ऊपर चढ़ते हैं जो 12 राशि का प्रतीक है। इस प्रकार से सात वार, 12 महीने, 12 राशियां और नवग्रह, इनके बीच में हमारा जीवन चलता है और उसी आधार पर मंदिर की रचना की गई है।