दर्दनाक हादसे की पहली बरसी, हादसा जिसके बाद बिगड़ते चले गए हालात


उन नागरिकों को भी सलाम जिन्होंने  लॉक डाउन की मार झेलकर अपने घरों को जा रहे लाखों प्रवासी मज़दूरों की मदद की उन्हें किसी भी तरह से सहारा दिया। इस साल को चाहे जितना कोसा जाए लेकिन इस साल ने हमारी संवेदनाओं का इम्तेहान ज़रूर लिया है, संवेदनाएं जो इस कठिन इम्तेहान का सामना कर या तो मर गईं या फिर जी उठीं…   


अरूण सोलंकी
इन्दौर Updated On :

साल 2020 किसी भी मायने में ठीक नहीं रहा। ये कहा जा सकता है कि इस साल ने काफी कुछ सिखा दिया लेकिन इस सीख की कीमत काफ़ी बड़ी रही। बाकी देश के लिए तो मार्च में कोरोना महामारी और इसके कारण लगाए गए लॉकडाउन के परिणामों के कारण साल 2020 भारी साबित हुआ लेकिन इंदौर के लिए तो इसकी शुरुआत बीते साल के आख़िरी दिन से ही हो गई थी। साल के उस आख़िरी दिन जब महू में सात ज़िंदगियां बेवक़्त ख़त्म हो गईं।

नामचीन उद्यमी  पुनीत अग्रवाल और उनके परिवार के छह सदस्यों की 31 दिसंबर 2019 की रात को महू के पातालपानी में उनके फार्महाउस पर हुए एक हादसे में मौत हो गई। इनमें उनका चार साल का पोता नव भी था।

पुनीत अग्रवाल अपने पोते नव के साथ (Source: Agarwal family)

पहली जनवरी को महू शहर में फिर नए साल का कोई जश्न नहीं हुआ बल्कि माहौल किसी मातम की तरह था। इस दिन पुनीत और उनके पोते का अंतिम संस्कार किया गया था।

ठीक इसी समय इंदौर में पुनीत की बेटी पलक और दामाद पल्केश का अंतिम संस्कार किया जा रहा था।

पलक और पलकेश अग्रवाल (Source: Agarwal family)

इसके अलावा पलकेश की बहन निधी उनके पति गौरव और इन दोनों के बेटे आर्यवीर की भी इस हादसे में मौत हो गई।

बीते साल के उस आख़िरी दिन हुए इस हादसे ने कई परिवार उजाड़ दिये। ये परिवार आज भी उसी ग़म में जी रहे हैं। परिवार ही नहीं समाज और शहर भी इसे भूल नहीं पाए हैं।

पुनीत की याद में आज भी महू और इंदौर में उनके कई दोस्त रो पड़ते हैं। पुनीत एक बड़े कारोबारी के साथ उतने ही बड़े समाजसेवी और एक ज़िंदादिल इंसान थे। महू शहर में उनकी दरियादिली के सैकड़ों किस्से हैं। जिन्हें आज भी उनके जानने वाले याद करते हैं।

इंदौर के डेली कॉलेज में पढ़े पुनीत ने अपने पिता द्वारा स्थापित कंपनी पाथ इंडिया को नई बुलंदियों तक पहुंचाया। आज उनकी कंपनी देशभर में हज़ारों करोड़ रुपये के दर्जनों प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही है। बड़े सड़क और टोल प्रोजेक्ट्स के लिए पाथ इंडिया देश-विदेश में एक जानामाना नाम है।

उनके जाने के बाद पाथ इंडिया के कारोबार पर कुछ असर ज़रुर पड़ा लेकिन कमज़ोर नहीं हुआ। अब उनके छोटे भाई नितिन अग्रवाल कामकाज संभालते हैं। पुनीत के बेटे निपुण भी अब अपने  पिता की विरासत को आगे बढ़ाने में लगे हैं।

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नितिन अग्रवाल या परिवार का कोई भी सदस्य हादसे के बारे में बात नहीं करना चाहता। अपनों को याद करते हुए इन सभी ने उस भयानक हादसे को हर दिन ही याद किया है।

अपने बड़े भाई के बारे में बात करते हुए अक्सर नितिन की आंखें भीगने लगती हैं और फिर वे किसी तरह अपनी डबडबाती आंखों को रोकते हुए गंभीर होते हैं और अपनी आवाज़ संभालते हैं।

वे बताते हैं कि अब सब कुछ पहले जैसा होना मुमकिन नहीं है क्योंकि उनके परिवार और कंपनी ने अपना मुखिया ही खो दिया है लेकिन कारोबार को पुनीत ने इस तरह ढ़ाला था कि उनकी अगली पीढ़ी को शायद कभी परेशानी नहीं होगी।

नितिन कहते हैं कि उस हादसे ने उनके पूरे परिवार-रिश्तेदारों को गहरा दर्द दिया है। जिसे भुला पाना मुमकिन नहीं है लेकिन अब वे चाहते हैं कि अपने बड़े भाई की ही तरह सामाजिक कार्यों में आगे आएं और उस कमी को दूर करें जो उनके बड़े भाई के जाने बाद महसूस की जा रही है।

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वे कहते हैं कि पुनीत जी का उनके जानने वाले हर आदमी से एक व्यक्तिगत रिश्ता था, एक करीबी थी और ऐसे लोगों की संख्या हज़ारों में थी ऐसे में उनका जाना न केवल परिवार बल्कि उन हज़ारों लोगों के लिए भी एक सूनापन है। जिसे भरा नहीं जा सकता लेकिन वे कोशिश करेंगे कि लोग पाथ इंडिया परिवार में पुनीत अग्रवाल की वही छवि देखें।

पुनीत के करीबी दोस्त और रिश्तेदार शैलेंद्र सिम्वल उन्हें याद करते हुए कहते हैं कि इस साल ने उनसे उनका एक सबसे करीबी साथी छीन लिया। जिसकी कमी कभी पूरी नहीं होगी।

कोरोना से कराह उठा देश…

31 दिसंबर को उस हादसे के बाद एक साल ऐसे ही बीता। अगले कुछ महीनों में भारत में कोरोना वायरस आया। इससे इंदौर में करीब 54 हजार लोग संक्रमित हुए हैं  और 871 की मौत हुई है। यहां रोजाना शहर ने दर्जनों अर्थियां देखीं।  छोटे शहरों या तहसील स्तर की बात करें महू में कोरोना का प्रकोप सबसे ज्यादा रहा। अब तक यहां 76 लोग कोरोना से जान गंवा चुके हैं। प्रदेश में महू सबसे ज्यादा प्रभावित तहसील है जहां साढ़े तीन लाख की आबादी में 3374 लोग कोरोना संक्रमित हुए हैं।

कई लोग चले गए…

कोरोना के चलते इस महू शहर ने भी अपने नागरिकों की बेशकीमती जानें खोईं हैं। इनमें होटल कारोबारी शशि कनौजिया और उनके पिता के अलावा डॉ. सुभाष चंद्र और कांग्रेस नेता प्रदीप जैन भी शामिल हैं। इसी साल वकील दिनेश माहेश्वरी भी नहीं रहे।

इनके अलावा भी कई ऐसे लोग रहे जिन्हें इस साल शहर ने कोरोना या किसी दूसरी वजह से खो दिया। लोग ये साल ज़रूर भूलना चाहते होंगे लेकिन इन शानदार लोगों को भुला देना शायद कोई नहीं चाहता। इस गुज़रते साल के साथ इन सभी नागरिकों को श्रद्धांजलि। इसके साथ एक उम्मीद और प्रार्थना कि फिर  ये दिन देखने को ना मिलें।

इस बीच उन नागरिकों को भी सलाम जिन्होंने  लॉक डाउन की मार झेलकर अपने घरों को जा रहे लाखों प्रवासी मज़दूरों की मदद की, उन्हें किसी भी तरह से सहारा दिया। इस साल को चाहे जितना कोसा जाए, लेकिन इस साल ने हमारी संवेदनाओं की परीक्षा ज़रूर ली है, संवेदनाएं जो इस कठिन इम्तेहान का सामना कर या तो मर गईं या फिर जी उठीं और हमें मानवता के मायने समझा गईं…

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