दशहरे पर निकलने वाले अखाड़ों का नेतृत्व करेंगी मातृ शक्ति, महिलाएं-बालिकाएं करेंगी अखाड़ों का संचालन


इन तैयारियों को लेकर लोकेश शर्मा ने बताया कि मातृशक्ति को अपनी शक्ति का अहसास कराना, आत्मरक्षा आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयास किया है। हमारा प्रयास रहेगा कि यह अभ्यास लगातार जारी रहे।


अरूण सोलंकी
इन्दौर Published On :
mhow dussehra celebration

महू। बुधवार को महू शहर में विजयादशमी का पर्व उत्साह के साथ मनाया जाएगा। इस वर्ष इस उत्सव को लेकर एक विशेष तैयारियां की जा रही है जिसमें निकलने वाले 20 अखाड़ों में से एक अखाड़ा मातृशक्ति को समर्पित होगा जिसमें सिर्फ महिलाएं और बालिका शस्त्रों का प्रदर्शन करेंगी व अखाड़े का संचालन करेंगी।

यही नहीं शहर में निकलने वाले इन 20 अखाड़ों का नेतृत्व भी यहीं महिला मातृशक्ति का अखाड़ा करेगी। एक लंबे समय से अखाड़ों की परंपरा लगभग समाप्त सी हो रही है जिसको एक बार फिर जीवित कर महिला शक्ति को आगे लाने का प्रयास इस बार महू शहर में किया जा रहा है।

इस प्रयास में महू शहर के साथ-साथ आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में भी इस उत्सव को लेकर खासा उत्साह बना हुआ है जिसमें समाजसेवी बढ़-चढ़कर सहयोग कर रहे हैं।

पंडित लोकेश शर्मा के नेतृत्व में दशहरे के दिन यानी बुधवार को यह अखाड़े निकाले जाएंगे। तीन साल पूर्व तक यह संख्या पांच या छह: अखाड़ा तक ही सीमित थी। युवाओं का इसके प्रति रुझान कम होता देख पंडित लोकेश शर्मा ने सभी समाजजनों, संस्था संचालकों, उस्तादों व खलीफा को साथ लेकर इस परंपरा को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया।

यही नहीं युवाओं के साथ-साथ इस बार एक अखाड़ा ऐसा भी होगा जो पूरी तरह मातृशक्ति को समर्पित होगा जिसके लिए पिछले एक महीने से महू शहर के अलावा आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी संख्या में बालिका व महिलाएं अस्त्र-शस्त्र चलाने का अभ्यास कर रही हैं जिसका प्रदर्शन बुधवार को अखाड़ों में होगा।

इन तैयारियों को लेकर लोकेश शर्मा ने बताया कि मातृशक्ति को अपनी शक्ति का अहसास कराना, आत्मरक्षा आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रयास किया है। हमारा प्रयास रहेगा कि यह अभ्यास लगातार जारी रहे।

लोकेश शर्मा ने बताया कि मातृशक्ति का अखाड़ा निकालने का मुख्य उद्देश्य बालिकाओं व महिलाओं को शारीरिक व मानसिक रूप से सक्षम बनाने का है ताकि महिलाएं जरूरत पड़ने पर अपने व अपने परिवार तथा समाज की रक्षा कर सकें।

साथ ही साथ अपनी कला को वे निखार सकें क्योंकि एक लंबे समय से बालिकाएं व महिलाएं पूरी तरह दूर हो गई थीं जबकि हमारे देश की गौरवशाली परंपरा के तहत झांसी की रानी, अहिल्याबाई जैसी महिलाएं हैं जिन्हें आज की बालिका आदर्श बना रही हैं।


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