वेटिंग के बाद अस्पताल में जगह मिल भी गई तो इलाज महंगा, फिर भी बचने की गारंटी नहीं…


छोटे निजी अस्पतालों में भी एक दिन का न्यूनतम खर्च करीब पंद्रह से बीस हज़ार रुपये तक है ऐसे में समझा जा सकता है कि कोरोना का इलजा फिलहाल कितना महंगा पड़ रहा है लेकिन इसके बाद भी कोई गारंटी नहीं कि मरीज़ की जान बच ही जाए।  


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इन्दौर Updated On :

इंदौर। कोरोना इलाज की स्थितियां सुधरने के कितने भी दावे किये जा रहे हों लेकिन ज़मीनी हालात ठीक नहीं है।  कोरोना संक्रमण के आंकड़े तो रोज़ाना जारी किये जा रहे हैं लेकिन संक्रमितों को अस्पतालों में जगह नहीं मिल रही है। ऐसे में अब इनका इलाज एक मुसीबत बना हुआ है। मरीज़ों के परिजन उन्हें लेकर अस्पतालों में भटक रहे हैं लेकिन उन्हें भर्ती नहीं किया जा रहा है। अस्पतालों में मरीज़ों को साफ कहा जा रहा है कि फिलहाल कोई बैड खाली नहीं हैं।

देश में कोरोना संक्रमण की स्थिति डराने वाली बनी हुई है। इंदौर में दस अप्रैल को 919 नए संक्रमित मिले हैं और पांच लोगों की मौत हुई है। इनमें  कोरोना संक्रमितों का इलाज करने वाले पैंतीस वर्षीय डॉक्टर दीपक सिंह भी हैं। उन्होंने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। वह महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज में इंटर्न थे और संक्रमितों का इलाज करते हुए खुद भी संक्रमित हो गए थे।

डॉ. दीपक सिंह के फेफड़े 90% तक खराब हो गए थे।  अस्पतालों में मरीजों को जगह नहीं है। आलम ये है कि जिन मरीजों का ऑक्सीजन स्तर सत्तर प्रतिशत से भी कम हो चुका है उन्हें अस्पतालों में जगह नहीं मिल रही है।

शहर के अस्पतालों में अब वेटिंग चल रही है। यहां किसी भी संक्रमित को एक बैड लेने के लिए कम से कम तीन दिन तक इंतज़ार करना पड़ रहा है। असप्तालों के आईसीयू में 80 प्रतिशत के आसपास बेड भर चुके हैं। लॉक डाउन के बावजूद भी लोग रेमडेसिविर इंजेक्शन के लिए भटक रहे हैं। बाजारों में इस इंजेक्शन की भारी कमी है।

कुछ लोगों ने अपने मरीजों के लिए सोलह हज़ार रुपये तक में एक डोज़ खरीदा है जबकि इसके पांच डोज़ लगने हैं। हालांकि अब बताया जा रहा है कि रेमडिसिवर इंजेक्शन के करीब पांच हजार डोज़ इंदौर को पहुंचाए गए हैं। यह फिलहाल एमजीएम मेडिकल कॉलेज को मिले हैं  जो जल्दी ही अस्पतालों को दिये जाएंगे जहां से यह मरीज़ों को पहुंचेंगे। हालांकि डॉक्टरों की मानें तो जरुरत के हिसाब से इंजेक्शन की संख्या बेहद कम है।

छोटे निजी अस्पतालों में भी एक दिन का न्यूनतम खर्च करीब पंद्रह से बीस हज़ार रुपये तक है ऐसे में समझा जा सकता है कि कोरोना का इलजा फिलहाल कितना महंगा पड़ रहा है लेकिन इसके बाद भी कोई गारंटी नहीं कि मरीज़ की जान बच ही जाए।

महू की एक महिला को करीब पंद्रह दिन पहले संक्रमण की शिकायत थी। जिसके बाद उन्हें इंदौर के गोकुल दास अस्पताल में भर्ती कराया गया। यहां महिला करीब दस दिनों तक भर्ती रहीं इस दौरान उनका काफी खर्च हुआ। शुरुआत में रिपोर्ट पॉजिटिव थी लेकिन बाद में यह नेगेटिव आ गई। हालांकि इसके बाद भी उनकी जान नहीं बच सकी। इस पूरी कवायद के बाद परिवार को जो दूसरा सबसे बड़ा धक्का लगा वह अस्पताल के बिल का था। जो परिवार के मुताबिक करीब सात लाख रुपये का था। महिला की रिश्तेदार प्रेरणा यादव के मुताबिक उन्होंने यह रकम लोगों से उधार लेकर और अपने गहने गिरवी रखकर है।

 





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