धोक पड़वा का गौरव लौटाने के लिए शुरू हुई मुहिम, परंपरा बचाने के लिए आगे आए शहर के नागरिक


दीपावली के दूसरे दिन केवल महू में मनाया जाता है यह पर्व, मिलने-मिलाने और सौहार्द की परंपरा


अरूण सोलंकी
इन्दौर Updated On :

इंदौर। महू शहर में एक ऐसा त्यौहार मनाया जाता है जो बिल्कुल अनोखा है। अनोखा इसलिए क्योंकि इससे जुड़ी मान्यता केवल अपनों के प्रति आदर और संबल देने की है। जिसे शहर के लोगों ने खुद ही शुरु किया और अब अगली पीढ़ियां इसे आगे बढ़ाती रहीं हैं।

दीपावली के दूसरे दिन मनाए जाने वाले धोक पड़वा को लेकर महू शहर में एक अलग ही रौनक होती है। जब लोग एक दूसरे विशेषकर अपने से बड़ों से मिलने के लिए उनका हालचाल जानने के लिए उनके घर जाते हैं और उन्हें धोक देते हैं यानी उनके पैर छूते हैं। इस तरह तकरीबन सभी लोग एक दूसरे से मिल लेते हैं।

शहर के लोगों ने इस मिलने-जुलने को भी एक पर्व का नाम दिया ताकि मेल-जोल का महत्व कभी कम न हो सके और अपने-अपनों के साथ अपरिचितों से भी मिलते रहें।

हालांकि पिछले कुछ वर्षों में इस उत्साह में कुछ कमी आई है और कोरोना संक्रमण काल के बीते दो वर्षों में तो यह मेलमिलाप बंद ही रहा।

मेलजोल के इस पर्व को राजनीतिक दलों और उनके नेताओं ने भी खूब उपयोग में लिया हालांकि इससे इस पर्व में एक नकारात्मक्ता भी पैदा हुई। ऐसे में इस राजनीतिक मेल-जोल को लोगों ने पसंद नहीं किया।

अब इस पर्व को एक बार फिर और भी उत्साह के साथ शुरु करने की तैयारी की जा रही है ताकि लोग अपनी परंपराओं का सम्मान करें।

मिलने-मिलाने के इस दिन को भी पर्व के रुप में देश में केवल महू में ही मनाया जाता है। इस दिन पूरा शहर सड़कों पर उतर आता है और केवल कुछ ही घंटों में  हजारों लोग एक दूसरे से मिल लेते हैं।

शहर के वरिष्ठ नागरिक कहते है कि यह परंपरा कब से शुरू हुई यह नही मालूम लेकिन जब से हम पैदा हुए तब से ही मना रहे हैं।

हालांकि इस परंपरा के पीछे सनातन धर्म की पुरानी परंपराओं जैसे चरण स्पर्श, आर्शीवाद प्राप्ति, सामाजिक सद्भाव, सकारात्मक्ता का सृजन, तनाव को कम करने जैसे मूल कारण शामिल हैं।

वर्षों से यह पर्व आम नागरिकों का ही था जिसे हर सम्प्रदाय व समाज के नागरिक उत्साह के साथ मनाते थे। यह पर्व एक ही दिन में तीन स्वरूप लेता था सुबह युवाओं व पुरूषों की भीड़ शहर में भ्रमण कर एक दूसरे को धोक देते हुए मिलते थे। वहीं दोपहर के बाद महिलाएं एक दूसरे से मिलने के लिए निकलतीं थीं और शाम के बाद परिवार के सदस्य सामूहिक रूप से एक दूसरे के घर जाते थे।

इस पर्व पर शहर के हर घर के दरवाजे खुले रहते थे तथा आने वालो का मिठाई, स्वल्पाहार से स्वागत किया जाता था।  मेन स्ट्रीट, सांधी स्ट्रीट छोटा बाजार मे रहनेवाले मुस्लिम व बोहरा समाज के लोग भी टाफी, मिठाई रख कर हर आने वाले का स्वागत करते थे।

इस पर्व का सबसे ज्यादा लाभ राजनेताओं ने उठाया क्योंकि इस दिन मात्र कुछ घंटो शहर भ्रमण कर हजारों नागरिकों से एक साथ मिल कर अपनी जमीन तैयार कर ली जाती थी।

नेताओं को यह अच्छा मौका होता था लेकिन इस बीच शहर के लोग अपनी ही परंपरा भूल गए।  इसके कारण आम नागरिक विशेषकर नई पीढ़ी इसका महत्व भूलती गई और इसे केवल राजनीतिक प्रचार के दिन की तरह देखने लगी।

 

 

आगे आ रहे लोग…
इस पर्व को पुराने उत्साह व संस्कारों से मनाने के लिए अब शहर में एक मुहिम शुरू की गई है। जिसमें समाज सेवी, नेता,गणमान्य नागरिक आगे आकर अपील कर रहे हैं कि जिस प्रकार वर्षों पहले यह पर्व मनाया जाता था उसी तरह इस  वर्ष भी उत्साह के साथ इसे मनाया जाए और प्रयास किया जाए कि नई पीढ़ी को इसे वैसे ही बताया जाए जिसके लिए यह शुरु किया गया था ताकि शहर की यह अनूठी और सौहार्द की परंपरा बनी रहे।

 

शहर के नागरिकों ने इसके लिए मुहिम शुरु की है। इसके लिए कपिल शर्मा, व्यवसायी नवीन सैनी, लोकेश शर्मा, केंट बोर्ड के उपाध्यक्ष शिव शर्मा, सुचित बंसल  आदि ने लोगों से आगे आने की अपील की है। शहर में इसे लेकर उत्साह पैदा करने के लिए तरह-तरह की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है और कोशिश की जा रही है कि शहर के लोग बाहर निकलें, लोगों से मिलें और अपनी परंपरा को किसी तरह बचा लें।


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