हिंदुस्तान के इसी शहर में मिलने जुलने के दिन को भी त्यौहार की तरह मनाते हैं लोग


धोक पड़वा का पर्व महू के सामाजिक जीवन में खास महत्व रखता है। इस दिन लोग एक दूसरे से मिलते- मिलाते हैं। जाने कितने विवाद और मनमुटाव इस एक दिन हंसकर बोलने से ख़त्म हो गए। राजनेताओं के लिए भी यह कभी-कभार बेवजह मिलने का अच्छा मौका होता है।


babasaheb ambedkar smarak in mhow
File Picture


इंदौर। मतभेदों के इस दौर में मिलते-जुलते रहना ज़रूरी है। त्यौहार हमारे देश में इसके लिए एक खा़स मौका होते हैं, लेकिन देश में एक शहर है जो इस मिलने-मिलाने को ही त्यौहार के रुप में मनाता है। यह शहर आंबेडकर की जन्मस्थली महू है और यहां की संस्कृति का हिस्सा बन चुका यह त्यौहार धोक पड़वा कहलाता है। 

धोक देना यानि पैर छूना या सम्मान देना। इस दिन समाजजन एक दूसरे से मिलते हैं। उन्हें दीपावली की शुभकामनाएं देते हैं और उन्हें मिलकर हाल-चाल पूछते हैं। वैसे तो देशभर में यह सामान्य बात है, लेकिन महू ही एक ऐसा शहर है जहां इसे त्यौहार बना दिया है।

महू के लोगों का मानना है कि त्यौहार उनके सामाजिक ताने-बाने को बनाए रखने के लिए ज़रूरी है और कोरोना काल के बाद इस बार धोक पड़वा ने लोगों को एक बार फिर करीब लाने में मदद की है। धोक पड़वा में अब कई बदलाव भी हुए हैं जिससे लोगों में कुछ मायूसी भी है।

धोकपड़वा का त्यौहार महू शहर में सालों पुरानी परंपरा का हिस्सा है। जिसका इंतजार लोगों को सालभर रहता है। धोक पड़वा यानी मिलने मिलाने का दिन गिले शिकवे मिटाने का दिन। धोक पड़वा के दिन महू शहर और तहसील में अलग ही रौनक होती है।

सुबह से देर शाम तक लोग एक दूसरे से मिलते रहते हैं। बड़ों के पैर  छूकर  छोटे आर्शीवाद लेते हैं और बड़े उनका मुंह मीठा करा देते हैं। जाने कितने विवाद और मन-मुटाव धोक पड़वा पर ऐसे ही केवल धोक देने से खत्म हो चुके हैं।

महू में धोक पड़वा पर लोग इसी तरह एक दूसरे से मिलते जुलते हैं

देश-विदेश के कई कोनों में रहने वाले लोग दीपावली के साथ इस पर्व के लिए ख़ास तौर पर पहुंचते हैं। इस दिन दोपहर तक को शहर की सड़कों पर लोगों की भीड़ नज़र आने लगती थी। हालांकि इस बार शायद कोरोना काल के कारण पहले की तरह भीड़ नहीं रही।

इस त्यौहार ने जहां सामाजिक दूरियों को मिटाया है तो वहीं बदलते वक़्त के साथ यह राजनीति करने के लिए भी अच्छा अवसर बन चुका है। महू के राजनेताओं के बीच धोक पड़वा का पर्व हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है। उनके लिए यह बेहतरीन मौका होता है सैकड़ों लोगों से एक साथ बिना किसी कारण के मिलने का।

महू की राजनीति में पिछले कुछ वर्षों से स्थानीय राजनेताओं का वर्चस्व कम हुआ है और इंदौर के राजनेता यहां हावी रहे हैं। चुनाव जीतने के बाद भी इन नेताओं को अपनी स्वीकार्यता बढ़ाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी है। ऐसे में धोक पड़वा उनके लिए एक बड़ा अहम मौका रहा है।

भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय कभी महू से विधायक थे। साल 2013 में मंत्री बनने के करीब एक साल बाद तक वे महू के किसी कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए थे।ऐसे में उन्होंने धोक पड़वा के दिन ही अपनी आमद दी और एक साथ हज़ारों लोगों से मुलाकात हो गई।

इससे पहले पूर्व लोकसभा अध्यक्ष और इंदौर की सांसद सुमित्रा महाजन ने भी धोक पड़वा पर महू आना जारी रखा। अब नई विधायक उषा ठाकुर भी इसे बेहतर अवसर मान रहीं हैं। इस बार धोक पड़वा के दिन वे भी अपने कुछ सर्मथकों के साथ महू की सड़कों में घूमीं।

हालांकि लोगों का मानना है कि इस पर्व पर राजनीति का रंग चढ़ना इस परंपरा के लिए नुकसानदेह भी साबित हुआ है क्योंकि आत्मीय मिलन के इस पर्व राजनीति के आने से दूषित हुआ है।


Related





Exit mobile version