इंदौर। महू में डॉ. बाबा साहेब आंबेडकर की जन्मस्थली स्मारक समिति को लेकर खासा विवाद हो रहा है। इस समिति के खिलाफ आंदोलन की चेतावनी दी जा रही है। बीते शनिवार और रविवार को महू में स्मारक समिति के खिलाफ धरना दिया गया। इस धरने में काफी संख्या में लोग एकजुट हुए। इस धरना कार्यक्रम का आयोजन महू के ड्रीम लैंड चौराहे पर किया गया। इससे पहले पुणे मशाल यात्रा लेकर पहुंचे आंबेडकर अनुयायी महू पहुंचे थे। जो यात्रा और इस विरोध कार्यक्रम के संयोजक थे।
स्मारक समिति के खिलाफ यहां जमकर नारेबाजी हुई। आरोप लगाया गया कि स्मारक समिति द्वारा बाबा साहेब आंबेडकर के नाम पर लगातार भ्रष्टाचार किया जाता रहा है और इस बारे में प्रशासनिक अधिकारियों से भी शिकायत की गई लेकिन वे इसे लेकर गंभीर नहीं रहे। ऐसे में अब आंदोलन के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता है।
पुणे से यात्रा लेकर आए असलम बागवान और उनके साथी सदस्यों ने बताया कि यात्रा शुरु करने से पहले मौजूदा समिति के उपाध्यक्ष राजेश वानखेड़े ने उन्हें यात्रा रोकने के लिए कहा और सामान्य रुप से महू आकर स्मारक व्यवस्थाओं के बारे में जानकारी लेने की बात कही। इस पर यात्रा संयोजकों ने उन्हें आश्वासन दिया था कि वे धरना प्रदर्शन से पहले आकर वानखेड़े से मिलेंगे और अगर उन्हें समिति के द्वारा दी गई जानकारी सही लगती है तो वे प्रदर्शन नहीं करेंगे। यात्रा संयोजकों के मुताबिक उन्होंने धरना शुरु करने से पहले वानखेड़े से मिलने के लिए उन्हें फोन लगाया लेकिन उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला।
धरना प्रदर्शन के दौरान बड़ा निशाना राजेश वानखेड़े ही रहे। यहां विरोध करने वाले वक्ताओं ने उन पर जमकर निशाना साधा। कहा गया कि वानखेड़े पूरी तरह अलोकतांत्रिक तरीके से काम कर रहे हैं और समिति में केवल कुछेक लोगों को लेकर ही सभी निर्णय ले रहे हैं। बताया गया कि समिति के कामकाज पर आपत्ति उठाने वालों को समिति से बाहर निकाल दिया गया है। इनमें पूर्व सदस्य और लंबे समय तक स्मारक की लगभग सभी जिम्मेदारियां निभाने वाले मोहन राव वाकोड़े सहित कुछ और लोग भी शामिल हैं।
यहां समिति में सभी समाजों के सदस्यों की भागीदारी का मुद्दा भी उठा। यहां कहा गया कि जब पहले से तय था कि नई कार्यकारिणी में सभी समाजों के लोग शामिल होंगे तो ऐसा क्यों नहीं किया गया। यही नहीं इस समिति में आंबेडकर साहब के परिजनों तक को जगह नहीं दी गई जबकि यह पहले से प्रस्तावित था।
इस धरना प्रदर्शन में मोहन राव वाकोड़े की अहम भूमिका रही। वाकोड़े ने कहा कि वानखेड़े और उनकी कार्यकारिणी के लोग लगातार भ्रष्टाचार कर रहे हैं और यह भ्रष्टाचार उन आंबेडकर वादियों की भावनाओं का फायदा उठाकर किया जा रहा है जो कई प्रदेशों से आते हैं और बाबा साहेब के स्मारक की बेहतरी के लिए अपनी गाढ़ी कमाई दान कर देते हैं और मौजूदा समिति के लोग आम लोगों की इस राशि का उपयोग अपने ऐशोआराम के लिए करते हैं।
वाकोड़े ने बताया कि मौजूदा समिति ने नियमों को ताक पर रखकर सभी काम किये हैं। इस दौरान स्मारक पर विकास के नाम पर काफी कुछ खर्च दिखाया गया और इस विकास को समिति ने अपने निर्णय पर ही कर लिया जबकि नियमानुसार स्मारक में कोई भी काम करने से पहले स्थानीय प्रशासन की अनुमति जरुरी होती है और इसके साथ ही निर्माण के सभी काम पीडब्ल्यूडी के द्वारा ही किये जाते हैं लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। ऐसे में समिति द्वारा हो रहे काम पर किसी तरह की जानकारी नहीं दी जा रही है। ऐसे में साफ है पारदर्शिता खत्म हो चुकी है जबकि यह खर्च आम लोगों से मिले दान पर हो रहा है।
पुणे से मशाल यात्रा लेकर पहुंचे निखिल गायकवाड़ और सचिन अल्हड़ आदि ने कई और गंभीर आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा है कि स्मारक समिति साल 1971 से पंजीकृत है और इसका बैंक खाता भी खुला हुआ है लेकिन जो नई समिति बनी है उसने बीते साल एक नई संस्था का पंजीयन कराया है और उसका नया बैंक खाता खुलवाया है और अब उसी खाते में आंबेडकर स्मारक के नाम पर पैसा मांगा जा रहा है। यह कैसे हो सकता है।
धरने में संस्था के दूसरे बैंक खाते का यह मुद्दा काफी गंभीरता से उठाया गया। लोगों ने प्रशासन पर भी आरोप लगाया कि जब इस बारे में शिकायत की जा चुकी है तो प्रशासन ने इसकी जांच क्यों नहीं की और अगर जांच की है तो शिकायतकर्ताओं को इसकी जानकारी क्यों नहीं गई। एक सवाल यह भी है कि क्या सहकारिता के नियमों के मुताबिक राष्ट्रीय महत्वर के इस स्थान के नाम पर एक अन्य संस्था और बैंक खाता खोलने की अनुमति मौजूदा समिति के सदस्यों को कैसे दी गई।
आंबेडकर स्मारक समिति में हो रहे इस विवाद ने राजनीतिक हलचल भी पैदा की है। धरना प्रदर्शन के दौरान आरोप लगाया गया कि आंबेडकर स्मारक को भारतीय जनता पार्टी के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है जबकि इसे राजनीतिक विषयों से दूर रखना चाहिए। धरने पर बैठे लोगों ने कहा कि आंबेडकर स्मारक पर सभी दलों के नेता आते रहे हैं लेकिन यहां किसी का प्रभाव कभी देखने को नहीं मिला लेकिन इस बार यह प्रभाव साफ नजर आ रहा है।
धरना प्रदर्शन के दौरान पहले दिन समिति के कुछ सदस्य प्रदर्शन स्थल पर पहुंचे और कार्यक्रम का वीडियो बनाने लगे। इस पर प्रदर्शन करने वालों ने आपत्ति जताई। इस पर भी समिति के लोग जब नहीं गए तो उन्हें जबरदस्ती जाने के लिए कहा गया। इसके बाद धरना समाप्त होने पर समता सैनिक दल के लोग स्मारक पर दर्शन के लिए पहुंचे तो फिर एक बार उनके और समिति के बीच तीखा विवाद हुआ।