परंपरा: पीपल के पत्ते का ताज़िया जिसमें हजारों बंध पर एक भी गांठ नहीं


पहले इस ताजिए की ऊंचाई 40 फीट ऊंची होती थी तब इस पत्ते के ऊपर सेहरा बांधने के लिए शहर की उस समय की सबसे बड़ी इमारत का सहारा लिया जाता था।


अरूण सोलंकी
इन्दौर Published On :

इंदौर। मुस्लिम समाज का मुहर्रम पर्व का महू के लिए एक विशेष महत्व है यहां बनने वाला पीपल पत्ते का ताजिया देश का एकमात्र ऐसा ताजिया है जिसे सैकड़ों पीपल पत्तों की छाल से बनाया जाता है। शहर के इस की सबसे बड़े ताज़िए की विशेषता यह है कि इसमें कम से कम 20 हजार बंध बांधे जाते हैं लेकिन एक में भी गांठ नहीं लगती। इस पर आज तक कभी बिजली की रोशनी नहीं हो की गई।

सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक पीपल पत्ते का ताजिया अपनी एक अनोखी विशेषता लिए हुए हैं। इसका निर्माण सन 1836 के पूर्व से किया जा रहा है जो शाह परिवार द्वारा बनाया जाता है। किसी जमाने में इस पर 2500 से ज्यादा पीपल की छाल का उपयोग किया जाता था।

पहले इस ताजिए की ऊंचाई 40 फीट ऊंची होती थी तब इस पत्ते के ऊपर सेहरा बांधने के लिए शहर की उस समय की सबसे बड़ी इमारत का सहारा लिया जाता था। इस इमारत की छत पर जाकर सेहरा बांधा जाता था लेकिन इसके बाद शहर में तारों के जाल के कारण ऊंचाई कम होती रही और अब वर्तमान में यह ताजिया 14 फुट का ही बनाया जाता है।

इस ताजिये को बनाने वाले नौशाद शाह ने बताया कि वर्तमान में इस राज्य में 525 पीपल पत्तों की छालों का उपयोग किया जाता है तथा इसमें कम से कम 20000 से 25000 सुतली तथा कच्चे सूत का फंदे डाले जाते हैं जिसे लाइ और मिट्टी से बांधा जाता है लेकिन इस पूरे ताजिए में एक भी गांठ नहीं बनती जो अपने आप में सबसे बड़ी विशेषता है। यह ताजिया सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है इसे उठाने के लिए सबसे पहले हिंदू संप्रदाय के लोग कंधा देते हैं और वे जब तक कंधा नहीं देंगे तब तक इसे उठाया नहीं जाता।

 

इस ताज़िए में करीब दो बार बिजली से सजावट करने की कोशिश की गई लेकिन दोनों ही बार यह कोशिश विफल रही।

इस तजिए को बनाने के लिए 5 माह पूर्व पत्तों को एक मटके में रखा जाता है तथा हर चौथे दिन उसका पानी बदला जाता है। इसे बनाने में करीब 15 दिन का समय लगता है और शाह परिवार के सभी लोग इसमें अपना पूरा सहयोग करते हैं। यह ताजिया सबसे बड़ा ताजिया है लेकिन इसमें कभी भी किसी भी सरकार द्वारा अनुदान या सहायता नहीं की गई।

ताजिया बनाने वाले शाह ने बताया कि वर्तमान में लगभग 35 हजार रु तक खर्च होते हैं लेकिन इस बार उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने से कुछ लोगों ने उनकी मदद की है।

कहा जाता है कत्ल की रात नौ बजे ताजिया उठता है और काले सैयद की दरगाह पर सलामी देने के लिए यही एक मात्र ताजिया जाता है और जब तक ये वापस ना आए तब तक कोई भी ताजिया आगे नहीं बढ़ता।


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