महूः बोर्ड उपाध्यक्ष और पार्षद तक को नहीं वार्ड में हो रहे खर्च की जानकारी, सुनिये इनकी पीड़ा


पार्षद को यह भी नहीं बताया जा रहा है कि उनके वार्ड में परिषद कितना खर्च कर रही है। यहां कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों के पार्षद परिषद के इस रवैये से परेशान नज़र आते हैं। 


अरूण सोलंकी
इन्दौर Updated On :

इंदौर(महू)। सैन्य छावनी महू के निकाय छावनी परिषद में इन दिनों ख़ासी हलचल है। यहां बड़े पैमाने पर विकास कार्य करवाए जा रहे हैं। हर साल की तरह यहां सड़कें बनाई जा रहीं हैं और पेबर ब्लॉक्स लगाए जा रहे हैं। पार्षदों को जहां भी सड़क किनारे खाली जगहें नज़र आ रहीं हैं वे वहां पेबर ब्लॉक लगवा रहे हैं। सड़कें भी इसी तरह बनवाई जा रहीं हैं। जहां कमी या ख़राबी दिखाई दे रही है वहां पार्षद सड़क बनाने के लिये इंजीनियरों को कह रहे हैं।

किसी भी दूसरे निकाय में जिस वार्ड में विकास कार्य करवाए जाते हैं वहां के पार्षद को अलग-अलग मदों में होने वाला खर्च भी बताया जाता है लेकिन महू की छावनी परिषद में ऐसा नहीं है। यहां पार्षद को यह भी नहीं बताया जा रहा है कि उनके वार्ड में परिषद कितना खर्च कर रही है। यहां कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दलों के पार्षद परिषद के इस रवैये से परेशान नज़र आते हैं।

पार्षद कई बार इसे बारे में पूछ चुके हैं लेकिन छावनी परिषद की अधिशासी अधिकारी मनीषा जाट इस बारे में उन्हें नहीं बता रहीं हैं। यही हाल इंजीनियरों का भी है। लिहाज़ा अब सभी पार्षद बिना जानकारी के ही अपने इलाके में काम करवाने को मजबूर हैं। आठ वार्डों के एकाध पार्षद इससे खुश हैं तो ज्यादातर के मुताबिक परिषद द्वारा यह काम करने का सही तरीका नहीं है।

कई पूर्व पार्षद यह तक कहते नज़र आए कि जब पार्षदों तक को सामान्य जानकारी नहीं दी जा रही है तो जनता का हाल क्या होगा इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल नहीं होना चाहिये। इस बारे में एक रिपोर्ट अख़बार में भी प्रकाशित हुई है। जिसमें लगभग पार्षद कह रहे हैं कि उन्हें अपने वार्डों में हो रहे खर्च के बारे में कोई खास जानकारी नहीं है।

पार्षदों के मुताबिक परिषद द्वारा पारदर्शी रवैया नहीं अपनाया गया है और यह काम करने की ठीक प्रणाली नहीं है। अख़बार की रिपोर्ट के मुताबिक इंजीनियर एचएस कोलाया बताते हैं कि पेबर ब्लॉक और सड़क बनाने में क्रमशः तीन-तीन करोड़ रुपये खर्च किये जा रहे हैं।  इस बारे में सीईओ मनीषा जाट से बात करने के प्रयास किए  गए लेकिन उनका जवाब नहीं मिला।

कुछ समय पहले तक  उपाध्यक्ष रहीं रचना विजयवर्गीय को भी नहीं पता कि परिषद उनके वार्ड में कितना खर्च कर रही है कितना बजट खर्च हो रहा है वह उन्हें नहीं पता, ऐसे में वे अपनी प्राथमिकता भी तय नहीं कर पा रहीं हैं। विजयवर्गीय ने कहा कि उन्हें भी आश्चर्य है कि इस बार बजट की जानकारी क्यों नहीं  बताया जा रहा है।

इस बारे में मौजूदा उपाध्यक्ष अरुणादत्त पांडे के मुताबिक उन्हें केवल ये पता है कि परिषद द्वारा उनके वार्ड में काम करवाए जा रहे हैं लेकिन इनमें कितनी राशि खर्च हो रही है ये उन्हें नहीं पता।

शहर के सबसे सीनियर पार्षदों में शुमार कैलाश दत्त पांडे भी परिषद के इस रवैये से परेशान हैं। वार्ड क्रमांक एक की पार्षद कांता सोडानी को भी उनके वार्ड में खर्च किये जा रहे बजट की जानकारी नहीं है। ऐसे में वे तय नहीं कर पा रहे हैं कि कौन से काम कराए जाएं और कौन से नहीं।

शहर के विकास पर नज़र रखना नागरिकों की जिम्मेदारी

सरकारी पैसे का जवाब जनता के नुमाइंदों को भले ही न दिया जा रहा हो लेकिन इस बीच शहर के भूजल का ख्याल भी नहीं रखा जा रहा है। शहर में कई स्थानों पर पेबर ब्लॉक्स लगा दिये गए हैं। देखने पर ऐसा लगता है कि केवल बजट राशि खर्च करने के लिए ही जहां जगह मिल रही है वहां पेबर ब्लॉक्स लगा दिये जा रहे हैं।

ऐसे में यह भी ख्याल नहीं रखा जा रहा है कि इस तरह के सीमेंटीकरण  से जमीन में उतरने वाले पानी पर कितना प्रभाव पड़ेगा। तमाम रिपोर्टों में यह बात साफ हो चुकी है कि पेबर ब्लॉक से जमीनी पानी का तंत्र बिगड़ता है। चंडीगढ़ के लोगों ने तो इस मामले में 2019 में एक जनहित याचिका तक दायर की थी।

इस याचिका में बताया गया था कि कैसे सड़क या पार्क किनारे जहां भी खाली जगह देखी गई वहां पेबर ब्लॉक लगा दिये गए और इससे पानी का टेबल बिगड़ गया और रीचार्जिंग बंद हो गई।

महू में भी इसी तरह विकास कार्य किया जा रहा है। सड़क किनारे की खाली जमीनों को ही नहीं, कई सड़कों और गलियों तक को पेबर ब्लॉक से पाट दिया गया है। बीते महीनों में यहां कुछेक स्थानों पर पुराने पेबर ब्लॉक हटाकर उनकी जगह नए ब्लॉक लगाए जा चुके हैं।

इंदौर शहर पहले ही सबसे ज़्यादा जमीनी पानी का दोहन करने वाले शहरों में शुमार है।  ऐसे में  किसी भी शहर के लिए ज़रूरी है कि जिम्मेदार नागरिक और जनप्रतिनिधि अपने निकाय में हो रहे विकास कार्यों को बारीकी से समझें।


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