
शहर में छावनी परिषद और पुलिस प्रशासन के सहयोग से पहली बार अवैध निर्माण और अतिक्रमण हटाने की बड़ी कार्रवाई की गई। यह कदम 10 दिन पहले हुए शहर में उपद्रव और हिंसा के बाद उठाया गया, जब कई संगठनों और नागरिकों ने सार्वजनिक स्थानों पर अवैध कब्जे हटाने की मांग की थी। हालांकि, इस कार्रवाई में एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया—क्या असली उपद्रवी बच गए और निर्दोष लोगों को नुकसान झेलना पड़ा?
अवैध निर्माणों पर देर से कार्रवाई, सवालों के घेरे में प्रशासन
शहर में लंबे समय से अवैध निर्माण और अतिक्रमण की समस्या बनी हुई थी, जिससे यातायात और नागरिक सुविधाओं में बाधा आ रही थी। लेकिन जब इन सार्वजनिक स्थलों पर निर्माण हो रहे थे, तब छावनी परिषद और अन्य प्रशासनिक एजेंसियों ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की?
- क्यों प्रशासन ने तब आंखें मूंद लीं, जब सार्वजनिक स्थानों पर कब्जे हो रहे थे?
- अगर समय पर अवैध निर्माण रोके जाते, तो क्या हिंसा के बाद इतने बड़े पैमाने पर कार्रवाई की जरूरत पड़ती?
- क्या यह कार्रवाई सिर्फ खानापूर्ति थी या सच में उपद्रवियों पर नकेल कसने की कोशिश?
पीड़ितों पर गिरी गाज, असली उपद्रवी बच निकले
गुरुवार को हुई इस कार्रवाई में उन लोगों को भी नुकसान झेलना पड़ा, जिनका उपद्रव से कोई लेना-देना नहीं था। कई लोगों ने अपने घरों और दुकानों को मेहनत और पूंजी लगाकर बनाया था, लेकिन प्रशासन ने उन्हें एक झटके में हटा दिया।
“अगर यह निर्माण अवैध थे, तो इन्हें बनने से पहले ही रोका क्यों नहीं गया?” यह सवाल अब स्थानीय नागरिकों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है।
छावनी परिषद की निष्क्रियता उजागर
छावनी परिषद की भूमिका पर सवाल उठना लाजमी है।
- एमजी रोड सहित अन्य सार्वजनिक स्थानों पर ठेले लगाने वालों से ₹40 प्रतिदिन वसूला जाता है, लेकिन इन ठेलों को लगाने की कोई निश्चित नीति नहीं है।
- जब नगर निगम और छावनी परिषद सार्वजनिक जगहों पर अवैध निर्माणों को नजरअंदाज कर रहे थे, तब इन्हें रोकने की कोशिश क्यों नहीं हुई?
- क्या छावनी परिषद सिर्फ घटनाओं के बाद ही हरकत में आती है?
पुलिस प्रशासन का दावा—हम केवल सहायता करते हैं
पुलिस प्रशासन ने इस पूरी कार्रवाई में अपनी भूमिका को सीमित बताया। उनका कहना है कि अतिक्रमण हटाने की जिम्मेदारी कैंटोनमेंट बोर्ड की है।
- पुलिस तभी बल उपलब्ध कराती है, जब छावनी परिषद कार्रवाई की मांग करती है।
- प्रशासन के पास कोई ठोस रणनीति नहीं होती, जिससे बार-बार पुलिस बल की जरूरत पड़ती है।
- “हर बार पुलिस बल देना संभव नहीं है,” यह पुलिस अधिकारियों का बयान था।
एसडीएम को अधूरी जानकारी, कार्रवाई में पारदर्शिता पर सवाल
इस पूरी कार्रवाई की निगरानी एसडीएम कार्यालय द्वारा की जानी थी, लेकिन सूत्रों के अनुसार उन्हें पूरी जानकारी नहीं दी गई या फिर जानबूझकर अंधेरे में रखा गया।
- अगर यह कार्रवाई पूर्व नियोजित थी, तो क्या इसकी जानकारी उच्च अधिकारियों को पूरी तरह दी गई थी?
- क्या यह सिर्फ दबाव में लिया गया फैसला था, जो असली दोषियों को बचाने के लिए किया गया?
जनता की नाराजगी—”हर बार निर्दोषों पर ही क्यों होती है कार्रवाई?”
स्थानीय नागरिकों में इस कार्रवाई को लेकर गहरा आक्रोश है। उनका कहना है कि जब अवैध निर्माण हो रहे थे, तब अधिकारियों ने कोई सख्ती नहीं दिखाई, लेकिन अब निर्दोष दुकानदारों और स्थानीय नागरिकों को अचानक उजाड़ दिया गया।
- “क्या प्रशासन केवल तब कार्रवाई करता है, जब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो जाती है?”
- “क्या यह कार्रवाई केवल कमजोर और बेकसूर लोगों को निशाना बनाने के लिए थी?”
- “क्या भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कोई स्थायी नीति बनेगी?”
महू में पहली बार अतिक्रमण के खिलाफ इतनी सख्त कार्रवाई हुई, लेकिन इसकी निष्पक्षता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। प्रशासन और छावनी परिषद की लापरवाही ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वे घटनाओं के बाद ही हरकत में आते हैं, पहले नहीं।
अगर अवैध निर्माण को पहले ही रोका जाता, तो निर्दोष लोगों को इतनी बड़ी कीमत नहीं चुकानी पड़ती। अब देखना यह होगा कि क्या असली उपद्रवियों पर भी कोई ठोस कार्रवाई होगी, या यह मामला सिर्फ कमजोर लोगों को निशाना बनाने तक ही सीमित रहेगा?